गुरुवार, 24 मई 2012

हाथी वालों का परिणाम

मक्का एक प्रतिष्ठित शहर है. जहाँ काबा स्थित है। प्राचीन समय से काबा इबादत गाह है, लोग दूर और नजदीक से इबादत और काबा की ज़ियारत के लिए आते थे।
यमन का अबरहा नामक हाकिम ईसाई था,उसके दिल में काबा से  ईर्ष्या पैदा हुआ अतः उसने ईर्ष्या के कारण यमन में एक बहुत अच्छा गिर्जाघर बनाने का आदेश दिया. उसके दर और दीवार को सोने और चांदी और बहुमूल्य पत्थरों से बनाया गया और बहुत कीमती फर्श इसमें बिछाए गए.  उसमें सुंदर दीप जलाए गये। इसके बाद उसने घोषणा की कि सभी लोगों को इसके दर्शन  के लिए आना चाहिए। अब किसी को अधिकार नहीं पहुंचता कि वह मक्का की ज़ियारत के लिए जाए लेकिन लोगों में इन बातों का कोई असर नहीं हुआ और लोग उसके बनाये हुए गिर्जाघर की ओर आकर्षित नहीं हुए बल्कि उसका अपमान भी किया.
अबरहा इससे क्रोधित हुआ और कहने लगा कि जब तक काबा है हमारे गिर्जाघर की ज़ियारत करने कोई नहीं आएगा, आवश्यक है कि काबा को गिरा दिया जाए ताकि लोग मायूस हो और समूह दर समूह लोग हमारे गिर्जाघर आने लगें.लोगों ने उससे कहा कि तुम लोगों के धर्म और आस्था से सरोकार न रखो. काबा अल्लाह के आदेश से  इब्राहिम (अलै0) के मुबारक हाथों  से बना है. लोगो को उसकी उपासना और ज़ियारत के लिए स्वतंत्र रहने दो लेकिन लोगों के उपदेश का अबरहा के दिल पर कोई असर न हुआ। एक बहुत बड़ा लश्कर तैयार किया। लश्कर का एक हिस्सा युद्ध हाथियों पर सवार हुआ।स्वयं अबरहा भी युद्ध हाथी पर सवार हुआ और मक्का की ओर रवाना हुआ। मक्का वालों ने देखा कि अबरहा सेना का मुकाबला नहीं कर सकते इसलिए पहाड़ों और बियाबानों में भाग गये। जब अबरहा सेना मक्का के पास पहुंची तो अबरहा का एक हाथी जमीन पर लेट गया बहुत कोशिश के बाद भी हाथी ज़मीन से न उठा।उसी हालत में बहुत पक्षी आसमान पर दिखाई दिए। प्रत्येक पक्षी एक भारी और गर्म पत्थर चोंच में और दो पत्थर पंजे में ले रखे थे। पक्षियों का झुन्ड धीरे धीरे अबरहा सेना पर आ पहुंचा और एक बार सबने अबरहा सेना पर पत्थर बरसाना शुरू  कर दिया। अबरहा की सेना हार गई और वे सब मारे गए। हम सब के संदेष्टा  हज़रत मुहम्मद ()भी इसी साल पैदा हुए थे.

2 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

ek jaankari deti hui post achhi lagi

Safat Alam Taimi ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद डा0 साहब और राजेश कुमारी जी का।