tag:blogger.com,1999:blog-4498814543825595269.post4152529995565609462..comments2023-05-06T06:11:52.946-07:00Comments on प्रेमवाणी: हर बात को आप धार्मिक चश्में से क्यों देखते हैं ?Unknownnoreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4498814543825595269.post-21679026254354491282012-02-07T02:12:42.064-08:002012-02-07T02:12:42.064-08:00आगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है
आ...आगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है <br />आपकी यह रचना charchamanch.blogspot.com पर देखी जा सकेगी ।।<br /><br />स्वागत करते पञ्च जन, मंच परम उल्लास ।<br /><br />नए समर्थक जुट रहे, अथक अकथ अभ्यास । <br /><br /> <br /><br />अथक अकथ अभ्यास, प्रेम के लिंक सँजोए ।<br /><br />विकसित पुष्प पलाश, फाग का रंग भिगोए ।<br /><br /><br />शास्त्रीय सानिध्य, पाइए नव अभ्यागत ।<br /><br />नियमित चर्चा होय, आपका स्वागत-स्वागत ।।रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4498814543825595269.post-7516595616717851322011-12-17T20:31:45.980-08:002011-12-17T20:31:45.980-08:00आदरणीय सफत जी, अभिवादन स्वीकार करें।
मार्ग-दर्शन क...आदरणीय सफत जी, अभिवादन स्वीकार करें।<br />मार्ग-दर्शन करने के लिये आभार व्यक्त हुये,<br />क्षमा माँगते हुये कहना चाहता हूँ कि धर्म के<br />संबंध में मेरा दृटिकोण कुछ प्रथक है। मेरे अनुभव<br />एवं ज्ञान के अनुसार अफीम की गोली, शराब तथा<br />तीब्र जहर की तरह है।<br />धर्म का सेवन करके मनुष्य,<br />मंदिर-मस्जिद तोड़ता है।<br />गोधरा में ट्रेन जलाता है।<br />उसके बाद गुजरात में हिंसा कराता है।<br />धर्म का नाम लेकर उसे सही ठहराता है।<br />मेरा मानना है कि ईश्वर का जन्म डर एवं अज्ञानता<br />से हुआ है, तथा धर्म का निर्माण सामाजिक एवं<br />आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों ने संगठित होकर,<br />सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े हुये लोगों पर<br />अपना अधिपत्य चिर स्थाई रखने के लिये किया <br />होगा। कालान्तर में वह अपना रूप बदल कर,<br />आज साम्प्रदायिक रूप ले चुका है।<br />मैं नहीं मानता कि हमें सुख, शांतिप्रिय एवं नैतिक<br />जीवन जीने के लिये किसी धर्म या ईश्वर की<br />आवश्कता है। मानवीयता हमारा स्वभाविक धर्म है,<br />जो हमें जन्म से ही प्राप्त होता है। हिन्दु मुसलमान<br />तो हम जन्म लेने के बाद बनते हैं। बनतो भी<br />इसलिये हैं कि हमारे माता-पिता उस धर्म के<br />अनुयायी होते हैं। धर्म हमारे सोचने एवं निर्णय लेने<br />के मूलभूत अधिकारों का अपहरण करता है।<br />(समयाभाव के कारण आगे फिर कभी)<br />कृपया मार्ग-दर्शन करेंdinesh aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/18216221541613478194noreply@blogger.com