(3) क़ुरआन की शैली और मुहम्मद सल्ल0 की शैली में अन्तरःमुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों को हदीस कहा जाता है। आपके इन प्रवचनों की शैली और क़ुरआन की शैली दोनों को मिला कर देखें तो दोनों सर्वथा भिन्न देखाई देंगे। कोई भी व्यक्ति जो क़ुरआन और हदीस को पढ़ेगा दो चार वाक्य पढ़ कर ही इस परिणाम पर पहुंच जाएगा कि यह दोनों वाणियाँ किसी एक व्यक्ति की नहीं हो सकतीँ। क्योंकि क़ुरआन का स्वर अत्यन्त मनमोहक है अपितु क़ुरआन की शैली मानव शैली से सर्वथा भिन्न है। यही कारण था कि जब मक्का वाले मुहम्मद सल्ल0 को क़ुरआन पढ़ते हुए सुनते तो आश्चर्यचकित रह जाते थे।
मुहम्मद साहिब का कट्टर शत्रु वलीद बिन मुग़ीरा ने जब आपको क़ुरआन पढ़ते हुए सुना तो बोल पड़ाः " ईश्वर की सौगंध! उसमें मिठास है, उसमें ताज़गी और हरापन है (मानो यह ऐसा वृक्ष है ) जिसका निचला भाग छाँव वाला है और ऊपरी भाग फलदार है। यह मानव रचित हो ही नहीं सकता।"हम भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि वह अरब जिनके अन्दर मानवता नाम की कोई चीज़ नहीं थी जब क़ुरआनी शिक्षाओं को ले कर उठे तो थोड़े ही दिनों में चीन की सीमाओं से लेकर फ्रांस तक पहुंच गए और क़ुरआन के आधार पर एक ऐसी संस्कृति की स्थापना की जिस से प्रभावित हो कर गाँधी जी को कहना पड़ाः " जब हमारा देश स्वतंत्र होगा तो हम उसमें अबू-बक्र तथा ऊमर जैसी शासन लाएंगे।"
(4) क़ुरआन हर प्रकार के विभेदों से मुक्त हैः
मानव कितना बड़ा विद्वान क्यों न हो जाए उस से ग़लतियाँ और कोताहियाँ हाती ही रहती हैं। उसका लेखन और भाषण त्रुटियों से सुरक्षित नहीं रह सकता। ईसी लिए क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर का कथन हैः " क्या यह लोग क़रआन में चिंतन मनन नहीं करते, यदि यह ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की ओर से होता तो अवश्य उसमें बहुत कुछ मतभेद पाते।" (सूरः 4 आयत 82)परन्तु क़ुरआन हर प्रकार की ग़लतियों आपत्तियों और कमियों से सुरक्षित है। यदि किसी को क़ुरआन में किसी प्रकार की आपत्ति नज़र आ रही हो तो वास्तव में ऐसा क़ुरआन का ज्ञान न होने के कारण होगा जिसके निवारण हेतु उसे क़ुरआन के विद्वानों से सम्पर्क करना चाहिए। क़ुरआन का आदेश हैः
" यह अत्यन्त महान ग्रन्थ है जिसके पास असत्य फटक भी नहीं सकता, न उसके आगे से, न उसके पीछे से, यह है अवतरित किया हुआ हिकमत वाले तथा गुणों वाले अल्लाह की ओर से" ( सूरः49 आयत 41-42)
मुहम्मद साहिब का कट्टर शत्रु वलीद बिन मुग़ीरा ने जब आपको क़ुरआन पढ़ते हुए सुना तो बोल पड़ाः " ईश्वर की सौगंध! उसमें मिठास है, उसमें ताज़गी और हरापन है (मानो यह ऐसा वृक्ष है ) जिसका निचला भाग छाँव वाला है और ऊपरी भाग फलदार है। यह मानव रचित हो ही नहीं सकता।"हम भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि वह अरब जिनके अन्दर मानवता नाम की कोई चीज़ नहीं थी जब क़ुरआनी शिक्षाओं को ले कर उठे तो थोड़े ही दिनों में चीन की सीमाओं से लेकर फ्रांस तक पहुंच गए और क़ुरआन के आधार पर एक ऐसी संस्कृति की स्थापना की जिस से प्रभावित हो कर गाँधी जी को कहना पड़ाः " जब हमारा देश स्वतंत्र होगा तो हम उसमें अबू-बक्र तथा ऊमर जैसी शासन लाएंगे।"
(4) क़ुरआन हर प्रकार के विभेदों से मुक्त हैः
मानव कितना बड़ा विद्वान क्यों न हो जाए उस से ग़लतियाँ और कोताहियाँ हाती ही रहती हैं। उसका लेखन और भाषण त्रुटियों से सुरक्षित नहीं रह सकता। ईसी लिए क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर का कथन हैः " क्या यह लोग क़रआन में चिंतन मनन नहीं करते, यदि यह ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की ओर से होता तो अवश्य उसमें बहुत कुछ मतभेद पाते।" (सूरः 4 आयत 82)परन्तु क़ुरआन हर प्रकार की ग़लतियों आपत्तियों और कमियों से सुरक्षित है। यदि किसी को क़ुरआन में किसी प्रकार की आपत्ति नज़र आ रही हो तो वास्तव में ऐसा क़ुरआन का ज्ञान न होने के कारण होगा जिसके निवारण हेतु उसे क़ुरआन के विद्वानों से सम्पर्क करना चाहिए। क़ुरआन का आदेश हैः
" यह अत्यन्त महान ग्रन्थ है जिसके पास असत्य फटक भी नहीं सकता, न उसके आगे से, न उसके पीछे से, यह है अवतरित किया हुआ हिकमत वाले तथा गुणों वाले अल्लाह की ओर से" ( सूरः49 आयत 41-42)
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