एक सज्जन ने हमारी अंजुमन के एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि तुम अल्लाह को ईश्वर क्यों कहते हो? क्या इस से तुम्हारा अभिप्राय मुर्तियाँ हैं अथवा ऊपर वाला अल्लाह?
सवाल बड़ा अच्छा है। सत्य यह है कि मुसलमान जिस अल्लाह पर विश्वास रखते हैं वह मात्र मुसलमानों का पैदा करने वाला नहीं अपितु सम्पूर्ण संसार का सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता तथा प्रभु है। उसका सम्बन्ध किसी विशेस जाति अथवा वंश से नहीं। वह एक है, उसके पास माता पिता नहीं, उसके पास संतान नहीं । उसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसका कोई भागीदार भी नहीं है। क़ुरआन में कहा गया है
" ऐ लोगो! अपने प्रभू की पूजा करो जिसने तुम को पैदा किया तथा तुम से पहले के लोगों को भी पैदा किया ताकि तुम्हारे अन्दर ईश्-भय आ जाए। जिस ने तुम्हारे लिए धरती को बिझौना बनाया और आकाश को छत बनाया तथा आसमान से वर्षा उतारी जिसके द्वारा धरती से विभन्ना प्रकार के फल और दाने पैदा किए। (यह सब उसी ने किया है तो ) फिर जानते बूझते उस अल्लाह के साथ किसी को भागीदार मत बनाओ। "
यह गुण उस ईश्वर का है जो सारे संसार का रचयिता है। लेकिन आज के युग में लोगों ने अपने अपने समाज और रीति-रेवाज के आधार पर अलग अलग धर्म बना लिया है और उसके लिए गुरू भी निश्चित कर लिए हैं जिन्हें अल्लाह के पद पर आसीन कर दिया गया है। कारणवश संसार के सृष्टिकर्ता को लोग भुला बैठे हैं, ऐसी स्थिति में अब हम अल्लाह का परिचय कराने बैठते हैं तो चूंकि लोग मानव को ही भगवान समझ रहे होते हैं इस लिए हम "ईश्वर" नाम लेकर उनके समक्ष वास्तविक ईश्वर अर्थात् अल्लाह का परिचय कराते हैं। यह विश्वास रखते हुए कि मानव ने अपने अपने संदेष्टाओं की कुछ चमत्कारियों से प्रभावित हो कर ही उन्हें ईश्वर समझ लिया।
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