शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

इस्लाम एक रूठीवादी धर्म है

क्या इस्लाम अपने मानने वालों को दूसरों से मिलने से रोकता है। दुसरे धर्मों की धार्मिक संस्कृति को अपनाने में बाधा डालता है। जबकि हिन्दु धर्म प्रत्येक धर्मों का सम्मान करना सिखाता है इसका स्पष्ट उदाहरण यह है कि एक हिन्दू किसी भी धार्मिक स्थल से जुग़रे चाहे दर्गाह ही क्यों न हो उसके समक्ष झुक जाता है क्यों कि वह जानता है कि भगवान हर जगह है। ?

इस्लाम के सम्बन्ध में यह जो बात कही गई है, इस्लामी सिद्धांत से अज्ञानता का परिणाम है। यह मात्र एक प्रकार का संदेह है। आइए इस संदेह का हम निम्न में निवारण कर रहे हैं। आशा है कि हम पर सत्य का आभास होगा।

क्या इस्लाम दूसरों से कट कर जीना सीखाता है?

इस्लाम दूसरों से कट कर जीना नहीं अपितु मिल कर जीना सीखाता है। इस्लामी सिद्धांत का अध्ययन करने वाले जानते हैं कि इस्लाम में (1) एकेश्वरवाद (2) और मानव बंधुत्व दो ऐसे सिद्धांत हैं जो सारे मानव को एक कर सकते हैं।

एकेश्वरवाद का अर्थ यह हुआ कि सारी सृष्टि का सृष्टिकर्ता मात्र एक अल्लाह है अतः सम्पूर्ण मानव के लिए आवश्यक है कि मात्र उसी की पूजा करे। जब सारे मानव का पैदा करने वाला एक ठहरता है और प्रभु भी एक ही है तो इस से मित्रता बनेगी अथवा बिगड़ेगी ? उसके विपरीत यदि कोई किसी की पूजा करे, कोई किसी की पूजा करे तो इसमें असमानता के साथ साथ शत्रुता का भाव भी पाया जाता है। इसी लिए लोग अलग अलग जातियों और धर्मों में बट जाते हैं। जबकि इस्लामी सिद्धांत सारे मानव को एक समुदाय बनाने का प्रयास करता है।

दूसार सिद्धांत मानव बंधुत्व है जिसका अर्थ यह हुआ कि सारे मानव की असल एक है। सारे मानव एक ही माता पिता अर्थात् आदि पुरुष आदम और हव्वा की संतान हैं। इसलिए इस्लाम हर प्रकार के भेद-भाव और छूत-छात का खंडन करता है। मानव को जाति और वंश के आधार पर बांटने की निंदा करता है। जिससे सारे मानव एक बन्धुत्व में बंध जाते हैं।

इन दो सिद्धांतों को सामने रखें फिर सोचें कि जो धर्म सारे मानव को परस्पर भाई भाई सिद्ध करता है उनमें जाति अथवा समुदाय के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करता। और उनका पूज्य भी एक ही सिद्ध करता है। ऐसे धर्म के सम्बन्ध में यह कैसे कल्पना किया जा सकता है कि वह रुठिवाद की शिक्षा देता है।

रही यह बात कि इस्लाम "हर चीज़ की पूजा" का खंडन करता है, तो यह सिद्धांत मात्र इस्लाम का नहीं अपितु सारे धार्मिक ग्रन्थों की शिक्षाओं का यही सार है कि मात्र एक अल्लाह की पूजा की जाए। इस लिए यदि कोई हिन्दु एक अल्लाह के इलावा किसी अन्य की पूजा करता है तो वह सब से पहले अपने धार्मिक ग्रन्थ की शिक्षाओं की अवहेलना करता है। हर चीज़ भगवान नहीं हो सकती। अल्लाह तो मात्र एक है वह किसी का रूप नहीं लेता, न किसी की शक्ल में अवतार लेता है। हाँ! उसने मानव मार्गदर्शन हेतु हर देश और हर युग में मानव में से ही संदेष्टाओं को भेजा जिनका अन्त मुहम्मद सल्ल0 पर हुआ। मुहम्मद सल्ल0 ने लोगों को उसी एक अल्लाह की ओर बुलाया जिसकी ओर सारे संदेष्टा बुलाते आ रहे थे। आज अल्लाह का अवतरित किया हुआ मार्ग क़ुरआन और मुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों में पूर्ण रूप में सुरक्षित है।

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