सोमवार, 24 नवंबर 2008

कल्की अवतार कौन?

मुहम्मद सल्ल0 वह अन्तिम संदेष्टा हैं जिनके आगमन की भविष्यवाणी उनके पूर्व प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की है।
हम यहाँ संक्षिप्त में कुछ उदाहरण प्रस्तुत करने पर बस करेंगे।
महात्मा बुद्ध की भविष्यवाणीः महात्मा बुद्ध ने मरते समय अपने शिष्य नन्दा को कान में (मैत्रेय) के नाम से बुद्ध के आने की सूचना दी जिसका अर्थ (मुहम्मद) होता है।
नराशंस और मुहम्मदः वेदों में नराशंस के नाम से 31 स्थान पर और पुराणों में (कल्की अवतार) के नाम से मुहम्मद सल्ल0 का वर्णन मिलता है। नराशंस (नर) और (आशंस) दो शब्दों से मिल कर बना है, नर का अर्थ होता है (मनुष्य) और (आशंस) का अर्थ होता है (प्रशंसित) अर्थात ( मनुष्यों द्वारा प्रशंसित) और मुहम्मद का अर्थ भी (प्रशंसित मनुष्य) ही होता है। और आप पानी को हिन्दी में जल कहते हैं, अंग्रेज़ी में वाटर कहते हैं, फारसी में आब कहते हैं, और अरबी में माअ कहते हैं पर शब्द एक ही है वैसे ही मुहम्मद को संस्कृत में नराशंत कहा गया है।
मुहम्मद तथा अहमद का उल्लेखः भविष्य पुराण (323/5/8) में है (ऐक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आयेगा उनका मान महामद होगा वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे)
और यजुर्वेद (18/31) में है (वेदामहेत पुरुष महान्तमादित्तयवर्ण तमसः प्रस्तावयनाय) वेद अहमद महान व्यक्ति हैं, सूर्य के समान अंधेरे को समाप्त करने वाले,उन्हीं को जान कर प्रलोक में सफल हुआ जा सकता है, उसके अतिरिक्त सफलता तक पहुंचने का कोई दूसरा मार्ग नहीं।)जन्म तिथि का उल्लेखः कल्कि पुराण (2/15) में अन्तिम संदेष्टा के जन्म तिथि का भी उल्लेख किया गया है (जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शम्भल पक्ष और रबी फस्ल में चन्द्रमा की 12वीं तिथि को होगा) मुहम्मद सल्ल0 का जन्म भी 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता है (मधुमास के हर्षोल्लास का महीना)
जन्म भूमि तथा माता पिता का उल्लेखः
श्रीमद-भगवद महापुराण (12/2/18) में कल्की अवतार की जन्मभूमि शम्भल बताया गया है, शम्भल का शाब्दिक अर्थ है (शान्ति का स्थान) औ मक्का जहाँ मुहम्मद सल्ल0 पैदा हुए उसे अरबी में (दारुल अम्न) कहा जाता है, जिसका अर्थ (शान्ति का घर) है।
विष्णुयश कल्कि के पिता का नाम बताया गया है और मुहम्मद सल्ल0 के पिता का नाम अब्दुल्लाह था और जो अर्थ विष्णु का होता है वही अर्थ अब्दुल्लाह का भी होता है। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा अर्थात अल्लाह का बन्दा (अब्दुल्लाह)
उसी प्राकार कल्की की माँ का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ होता है (शान्ति एवं मननशील स्वभाव वाली) और मुहम्मद सल्ल0 की माता का नाम भी (आमना) था जिसका अर्थ है (शान्ति वाली) ।
डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपनी पुस्तक ( कल्की अवतार और मुहम्मद सल्ल0 ) में कल्की तथा मुहम्मद सल्ल0 की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए बताया है कि आज हिन्दु भाई जिस कल्की अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं वह आ चुके और वही मुहम्मद सल्ल0 हैं।

40 टिप्‍पणियां:

Aadarsh Rathore ने कहा…

मित्र
क्या इस प्रकार की तुलना करना हास्यास्पद नहीं है?
ईश्वर के आस्तित्व को झुठलाना मेरे या किसी के वश की बात नहीं है, लेकिन क्या इन अवतारों और पैगम्बरों की प्रामाणिकता पर उठने वाले सवाल जायज़ नहीं हैं?
कृपया अपनी अगली पोस्ट में इस शंका का समाधान करें।

Safat Alam Taimi ने कहा…

आदर्श राठौर भाई !
मैंने यह तुलना इसलिए पेश किया है क्योंकि बहुत सारे लोग मुहम्मद साहिब के सम्बन्ध में यह समझते हैं कि वह केवल मुसलमानों के संदेष्टा हैं हालांकि बात यह नहीं है उनको सम्पूर्ण संसार के लिए संदेशवाहक बना कर भेजा गया था। और हिन्दू धर्म के विभिन्न विद्वानों ने जैसा कि मैंने बयान किया है अपनी खोज द्वारा सिद्ध किया कि आज जिन कल्कि अवतार की हिन्दू समाज में प्रतिक्षा हो रही है वह आ चुके।
जहाँ तक पैग़म्बरों की प्रमाणिकता पर शंका की बात है तो इस सम्बन्ध में मेरा अगला पोस्ट देखें।

Saleem Khan ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Saleem Khan ने कहा…

राठौर जी, आपका कहना आधा सही है कि अवतार की प्रामाणिकता पर सवाल क्यूँ उठ रहे हैं, मैं आपको बता दूं कि आपकी शंका हद दर्जे तक सही है क्यूंकि वेदों में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि ईश्वर अवतार लेता है बल्कि इस बात का वेदों में कई जगह उल्लेख है कि ईश्वर के सन्देश को ऋषि लोग जन-जन तक पहुंचाते थे और मार्गदर्शित करते थे | अवतार की कल्पना केवल मानव की कल्पना है जबकि पैगम्बर/ऋषि की कल्पना, कल्पना नहीं है बल्कि एक सत्य है जिसकी तस्दीक़ वेदों और क़ुरान में भी है और इसके साथ साथ दुनियाँ के सभी धर्म ग्रंथो ने की है|

Sanjeev ने कहा…

Main jab bhi kkisi muslim ka blog dekhta hoon to hut phir kar ye hi pata hoon ki woh baat to sabhi dharmo ki samanta ki karta hai lekin har blog entry me ye sabit karne ki koshish se baaz nahin aata ki muslim dharm, muhammad, kuraan sabse upar hai. Inhi vichron ki wajah se hi aur dharmon ke log, khas kar hindu unke paas nahin aate. Tum apni badhai hi kare jaoge to kese chalega. kalki avtar ko paigamber se milane walon ko ye batana jaroori hai ki, aise hi kutsit vicharo se, jisme kuraan, muslim, muhhamad ko hindu ya isai bataya gaya hai, net aur kitaben bhari padi hai. Main dono ko hi galat manta hoon. Tum muhammad ko sirf muhammad hi rahne do use kuchch aur sabit kar ke us ki baizzati na karo. Aise tum hindu ko nicha nahin dikha rahe khud muhammd ko nicha dikha rahe ho.Mujhe to muhammd ko koi hindu avtaar sabit karke dikhane mein koi interest nahin hai.
Kuraan ek achi pustak hai. Isme samye ke anusar kuchch chain ho jate to aur achi ho jati. Ise allah ka likha hua bataya jata hai parantu shuru hoti hai "Bismillah ul rahmano rahim se" yani aarbh sath nam allah ke jo kshma karne wala aur dyalu hai. Allah apne hi naam se kaise shuru karta hai is bare mein koi gyani sajjan mujhe jagruk karwaye ya ye bataye ki meri soch mein kaya kami hai. Duniya mein aur bhi achi pustke hain jo mene padhi hain. bahut si mujhe kuraan se kafi darje zyada achchi lagi to tum mujhe batane wale kaun ki kuraan hi sabse achi hai ya koi hindu ye kyon sabit kare ki Gita se bhadkar kuchch nahin. Agar samaj ko unnat karna hai to is sub se upar uthna hoga

Safat Alam Taimi ने कहा…

भाई Sanjeev साहिब!
जी हाँ मुस्लिम हर धर्म का सम्मान करता है, उनके गुरुओं को भी बुरा भला नहीं कहता लेकिन सत्य को बताने से भी नहीं चुकता क्यों कि यदि सत्य को न बताया जाए तो लोग अंधकार में पड़े रहेंगे। इस सम्बन्ध में ध्यान दें-
(1) इस्लाम ही सत्य है क्योंकि यही सारे संसार का धर्म है, हर युग में संदेष्टा इसी की ओर बोलाने हेतु आते थे, जिसे लोग अपनी अपनी भाषा में जानते थे, अरबी में आज उसी धर्म का नाम इस्लाम है। इस धर्म का मूल सार है एक ईश्वर की पूजा...और यह पूजा आज के युग में अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुआ नियमानुसार होगी।
(2) आपका कहना कि मुहम्मद को मुहम्मद ही रहने दो उनके समर्थन के लिए अन्य धार्मिक ग्रन्थों का हवाला न पेश करो... तो इस सम्बन्ध में जानने की बात यह है कि वह अन्तिम अवतार हैं... जिनके आने की भविष्यवाणी केवल हिन्दू ग्रन्थ ही नहीं अपितु प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी। क्योंकि ईश्वर ने एक लाख चौबीस हज़ार संदेष्टाओं को अलग अलग देशों में एक ही संदेश पहुंचाने के लिए मात्र इस लिए भेजा था कि उस समय मानव अलग अलग टोलियों में बटे हुए थे, यातायात के साधन भी नहीं थे, एक देश का दूसरे देश से सम्पर्क भी नहीं था...एक दूसरे की भाषा को सीखने का प्रचन भी नहीं था। अतः आवश्यकता थी कि ईश्वर मानव के मार्गदर्शन हेतु हर भाषा तथा हर देश में अलग अलग संदेष्टा भेजे...परन्तु सब का संदेश एक ही रहा। और सारे संदेष्टाओं ने अपने अपने अनुयाइयों को अन्तिम अवतार के आने की सूचना दी जो अब तक उनके ग्रन्थों में मौजूद है। जब सातवी शताब्दी ईसवी में भौतिक, सामाजिक और राजनीतिक उन्नति ने दुनिया को एक कर दिया तो सब से अन्त में ईश्वर ने मुहम्मद सल्ल0 पर अन्तिम संदेश उतारा। इसी लिए वह जगत गरु हैं, सारे धर्मों के गुरू। मेरे भाई! स्वयं निष्पक्ष हो कर इस्लाम का अध्ययन करने की ज़रूरत है पता चल जाएगा कि यह हमारी धरोहर है जिसका हम विरोद्ध करने बैठे हैं। हम आपके शुभचिंतक हैं,स्वार्थी नहीं, हमें इस से आखिर क्या लाभ होने वाला है, बस हमें सहानुभूति प्रिय है, सच्ची हमदरदी का हक़ अदा करना हमारा कर्तव्य है। मानना न मानना आपके हाथ में है।
(3) कुरआन ईश्वर की वाणी है यह मानव रचना नहीं, न हो सकता है,क्योंकि आज तक क़ुरआन स्वयं चैलेंज कर रहा है (यदि तुम क़ुरआन के सम्बन्ध में संदेह में पड़े हो तो उसके समान एक सूरः ही ले आओ यदि तुम सच्चे हो )(2:23) पर इतिहास साक्षी है कि आज तक कोई क़ुरआन के समान न एक टूकड़ा बना सका है और न बना सकता है। जबकि मुहम्मद सल्ल0 जिन पर क़ुरआन उतरा न लिखना जानते थे न पढ़ना। मुहम्मद सल्ल0 की बातें जिनको हदीस कहा जाता है उनमें और क़रआन में आसमान और ज़मीन का अंतर है। ज्ञात यह हुआ कि क़ुरआन कोई मानव रचना नहीं कि उसमें समयानुसार परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़े क्यों कि इंसान अपने युग के अनुसार सोचता है इसी लिए मानव रचित ग्रन्थों में इसकी आवश्यकता पड़ सकती है लेकिन क़ुरआन उस ईश्वर की वाणी है जो स्वयं संसार का सृष्टा है। और आज उसका एक एक शब्द भी सुरक्षित है।
आपका यह संदेह कि यदि क़ुरआन ईश्वर की वाणी होती तो बिस्मिमिल्लाह से शुरू न किया जाता... यह जान लें कि यहाँ ईश्वर ने अपने शब्दों में मानव को सिखाया है कि उसकी प्रशंसा कैसे की जाए ताकि मानव उसी प्रकार ईश्वर की प्रशंसा करें।
ईश्वर की आप पर दया हो।

बेनामी ने कहा…

safat Islam sahab,
Kuran main kai jagah kafiro ko bahut bura bhala kaha gaya hai. kya yeh jaroori hai sab apna dharam chodkar islam kabool kar le.
Sikh dharam ka janam kyun hua apne dharm ki raksha ke liye. mujhe ye bataiye agar islam itna hi acha dharam hai to iraq aur iran main kitne vershon tak yudh karte rahe jab ki dono hi muslim country hain.
pakistan to muslim country hai wahan per kyon namajio ko maszid ke ander bum se mara ja ra hai. salellaho aleh vassalam hajrat muhammad sahab ne farmaya ki sachha musalman woh hai jo apni juban se dusre musalman ki hifazat kare. lekin asal main aisa ho nahin raha. kya hamari kom vaisi hi taiyaar ho rahi jaisa ki muhammad sahib chahte thhe. Muslman bhi isaiyat ke raste per chal rahe hain. kitne musalman subah jaldi uthakar namaz padte hain. wo bhi der raat tak t.v. dekhte hain aur subah der tak sote hain. muslamano main sharab peena sakth mana hai. lekin musalman na keval pee rahe hain balki sharab bech bhi rahe hain. Islam main byaz lena sakht mana hain lekin aaj musalman apna paisa byaz per chala raha hai. muslim ladkiya aurtain hotho per lipistic lagati hain. aap jor jabrdasti sabko musalman bana sakte hain lekin uski bhasha nahin badal sakte. bhasha badlne ki kuwwat aap main nahin hai agar aap main yeh kuwwat hoti to pakistan aur bangladeh alag nahi hote. aaj punjabi musalman sindhi musalman ka haq nahin maar raha hota. pakistan main jitni tarakki punjab ni ki utni dusre sindhi, baluch yeh kyon pichad gaye jab ki musalman sab ek hain. musalmano ko bus kafiro ki chinta jyada rahti. jabki allah ne musalmano per kai ferz ayad kiye hain wah unhe pura karne ki chinta kyun nahin karta. mere pass aur bhi bahut hai. aap se puchne ke liye.

http://kavyalya.aimoo.com ने कहा…

nice blog with open discussion

बेनामी ने कहा…

Really nice...

par mai sirf 1 he baat kehan chahuga ki...jis prakar VED, BHAGWAT GEETA ka example liya ja raha hai avtar ko proof karnai mai.. to base kya liya yahi VED & BHAGWAT GEETA. iska matlab HINDUTATV (Vaishanav Dharm) aaj he nahi prachin sai chala aa raha hai.

Aaj jitnai bhi naye dharm aye hai wo sabhi isi sai nikal kar aye hai...

To phir kyu HINDUTATV ki burai or comparision kar rahe ho..... Vaishanv dharm kal bhi tha aaj bhi hai or hamesha rehaga...

Last but not least ki PARMATMA 1 hai

Safat Alam Taimi ने कहा…

प्रिय मित्र! सर्वप्रथम हम आपकी भावना का सम्मान करते हैं अतएवं प्रेमवाणी में आपका स्वागत करते हैं।
आपका संदेह बहुत अच्छा है कि जब आप हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों से अन्तिम अवतार का प्रमाण पेश कर रहे हैं जो सब से पुराना धर्म है तो फिर बाद में आने वाले धर्म की ओर निमणत्रन क्यों ?
भाई जान!हम आपके साथ हैं कि हिन्दू ध्रम बहुत पुराना धर्म है। परन्तु उसी धर्म ने कल्कि अवतार के आने की सूचना दी जिनको माने बिना मुक्ति नहीं मिल सकती और आज कल्कि अवतार की सारी विशेषताएं मुहम्मद साहब में पाई जाती हैं जिसका वर्णन डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय और डा0 एम ए श्री वास्तव ने अपनी अपनी पुस्तकों में किया है।
इस प्रकार वेदों की शिक्षाओं के आधार पर सारे हिन्दु भाइयों को चाहिए कि यदि वह मुक्ति चाहते हैं तो मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को ग्रहण कर लें।

Safat Alam Taimi ने कहा…

प्यारे मित्र ! दूसरे बात यह कि इस्लाम कोई नवीन धर्म नहीं जैसा कि अधिकांश लोगों में भ्रम पाया जाता है अपितु यह उसी समय से है जिस समय से प्रथम मनुष्य की उत्पत्ति हुई है। हर युग में संदेष्टा आते रहे जिनकी संख्या 124000 तक पहुंचती हैं। परन्तु सब अपने अपने समाज के लिए भेजे जाते थे। अन्त में कल्की अवतार विश्व नायक बन कर आए जिनको माने बिना किसी मानव को मुक्ति नहीं मिल सकती।
आज हिन्दू धर्म जिसे कहा जाता है वास्तव में वही सनातन धर्म अर्थात् इस्लाम है जिसकी शिक्षा सारे संदेष्टाओं ने दिया था और उसी शिक्षा का अन्तिम स्वरूप क़ुरआन है। जिसकी शिक्षाओं का सार मात्र एक ईश्वर की पूजा, समानता, भेदभाव का खंडन और मरने के बाद जीवन पर विश्वास रखना है। बस आवश्यकता है कि हम सत्य की खोज का कष्ट करें। ईश्वर की आप पर दया हो।
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी हेतु प्रेमवाणी के अन्य लेखों का अध्ययन उचित होगा।

Ayaz ahmad ने कहा…

अच्छी पोस्ट

Hindustan ki Aawaj ने कहा…

Jo maante h ki islam sab se accha dharam h to wo ye baat kyon bhul jaate h ki sab se purana dharam sanatan dharam h or jo ugarvadi h vo kon h hindu ya musalman jara in bato par gor karo ansar khud hi mil jayega

बेनामी ने कहा…

भाई जान!हम आपके साथ हैं कि हिन्दू ध्रम बहुत पुराना धर्म है। परन्तु उसी धर्म ने कल्कि अवतार के आने की सूचना दी जिनको माने बिना मुक्ति नहीं मिल सकती और आज कल्कि अवतार की सारी विशेषताएं मुहम्मद साहब में पाई जाती हैं जिसका वर्णन डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय और डा0 एम ए श्री वास्तव ने अपनी अपनी पुस्तकों में किया है।
इस प्रकार वेदों की शिक्षाओं के आधार पर सारे हिन्दु भाइयों को चाहिए कि यदि वह मुक्ति चाहते हैं तो मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को ग्रहण कर लें।

बेनामी ने कहा…

इस्लाम कोई नवीन धर्म नहीं जैसा कि अधिकांश लोगों में भ्रम पाया जाता है अपितु यह उसी समय से है जिस समय से प्रथम मनुष्य की उत्पत्ति हुई है। हर युग में संदेष्टा आते रहे जिनकी संख्या 124000 तक पहुंचती हैं। परन्तु सब अपने अपने समाज के लिए भेजे जाते थे। अन्त में कल्की अवतार विश्व नायक बन कर आए जिनको माने बिना किसी मानव को मुक्ति नहीं मिल सकती।
आज हिन्दू धर्म जिसे कहा जाता है वास्तव में वही सनातन धर्म अर्थात् इस्लाम है जिसकी शिक्षा सारे संदेष्टाओं ने दिया था और उसी शिक्षा का अन्तिम स्वरूप क़ुरआन है। जिसकी शिक्षाओं का सार मात्र एक ईश्वर की पूजा, समानता, भेदभाव का खंडन और मरने के बाद जीवन पर विश्वास रखना है। बस आवश्यकता है कि हम सत्य की खोज का कष्ट करें। ईश्वर की आप पर दया हो।
इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी हेतु प्रेमवाणी के अन्य लेखों का अध्ययन उचित होगा।

बेनामी ने कहा…

धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना भी अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।

rs.purushotam ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
rs.purushotam ने कहा…

मित्र ..
आपने मेरी कमेंट हटा दी .. लेकिन मैं मुहम्मद साहब जैसे महान प्रोफेट के विषय में कोई भी टिपण्णी देने से बचूंगा ... इसलिए कृपया आप भी उनकी तुलना कल्कि अवतार से न करे ... एक और बात कल्कि अवतार से बाद सतयुग का आगमन कहा गया है .. परन्तु 1500 वर्षो के बाद भी कलयुग नहीं आया ! मुहम्मद साहब का आने का प्रयोजन कुछ और था !

اداره ने कहा…

मेरे भाई! आपने असल में मुहम्मद साहब की जीवनी का अध्ययन नहीं किया है, यदि किया होता विशाल हृदय से तो अवश्य उसके संदेश को अपनाने की भावना पैदा होती आपके अंदर। वह तो सब के लिए आए हैं और बड़े बड़े पंडितों ने भी इस सत्य को बयान किया है।

(1) भारतीय धर्म ग्रन्थ और मुहम्मद सल्ल0 लेखक डा0 एम ए श्रीवास्तव
(2) कल्कि अवतार और मुहम्मद सल्ल0 लेखक डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय

सर्व प्रथम इन दोनों पुस्तकों का कृपया अध्ययन करें

बेनामी ने कहा…

तो आप के मुहम्द साहब ने जीव हत्या के बारे मे क्यु कहा.जबकी कोइ भी अवतार हीन्दु (सनातन)धर्म मे जीव हत्या को वर्जीत की या गया है,?

Safat Alam Taimi ने कहा…

मुहम्मद सल्ल. ने कोई अकेले इसकी अनुमति नहीं दी, स्वयं आपके वेदों में भी इसकी अनुमति है।

जिव हत्या के बिना इनसान तड़प तड़प कर मर जाएगा।
आप लोग साग सब्ज़ी खाते हैं उसमें भी तो जीव हत्या है जैसा कि विज्ञान ने सिद्ध किया।

Safat Alam Taimi ने कहा…

1.एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं है।

2.मांसाहारी खाने भरपूर उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। इनमें आठों आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी ज़रूरी है। मांस में लोह, विटामिन बी-1 और नियासिन भी पाए जाते हैं।

3. बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मांस-सेवन धर्म विरुद्ध है। परंतु सत्य यह है कि हिन्दू धर्म ग्रंथ इंसान को मांस खाने की इजाज़त देते हैं। ग्रंथों में उन साधुओं और संतों का वर्णन है जो मांस खाते थे।
(क) हिन्दू क़ानून पुस्तक मनुस्मृति के अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि—
‘‘वे जो उनका मांस खाते हैं जो खाने योग्य हैं, कोई अपराध नहीं करते हैं, यद्यपि वे ऐसा प्रतिदिन करते हों, क्योंकि स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के लिए पैदा किया है।’’
(ख) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5 सूत्र 31 में आता है—
‘‘मांस खाना बलिदान के लिए उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का नियम कहा जाता है।’’
(ग) आगे अध्याय 5 सूत्र 39 और 40 में कहा गया है कि—
‘‘स्वयं ईश्वर ने बलि के जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अतः बलि के उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं।’’
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठिर और पितामह भीष्म के मध्य वार्तालाप का उल्लेख किया गया है कि कौन से भोजन पूर्वजों को शांति पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिएँ।
प्रसंग इस प्रकार है—
‘‘युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘हे महाबली! मुझे बताइए कि कौन-सी वस्तु जिसको यदि मृत पूर्वजों को भेंट की जाए तो उनको शांति मिलेगी? कौन-सा हव्य सदैव रहेगा? और वह क्या है जिसको यदि पेश किया जाए तो अनंत हो जाए?’’
भीष्म ने कहा, ‘‘बात सुनो, ऐ युधिष्ठिर कि वे कौन-सी हवि हैं जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना उचित हैं। और वे कौन से फल हैं जो प्रत्येक से जुड़े हैं? और श्राद्ध के समय सीसम बीज, चावल, बाजरा, माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाए तो पूर्वजों को एक माह तक शांति रहती है। यदि मछली भेंट की जाएँ तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती हैं। भेड़ का मांस तीन माह तक उन्हें शांति देता है। ख़रगोश का मांस चार माह तक, बकरी का मांस पाँच माह और सूअर का मांस छः माह तक, पक्षियों का मांस सात माह तक, ‘प्रिष्टा’ नाम के हिरन के मांस से वे आठ माह तक और ‘‘रूरू’’ हिरन के मांस से वे नौ माह तक शांति में रहते हैं। Gavaya के मांस से दस माह तक, भैंस के मांस से ग्यारह माह और गौ मांस से पूरे एक वर्ष तक। पायस यदि घी में मिलाकर दान किया जाए तो यह पूर्वजों के लिए गौ मांस की तरह होता है। वधरीनासा (एक बड़ा बैल) के मांस से बारह वर्ष तक और गैंडे का मांस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्य वर्ष पर भेंट किया जाए तो यह उन्हें सदैव सुख-शांति में रखता है। क्लास्का नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियाँ और लाल बकरी का मांस भेंट किया जाए तो वह भी अनंत सुखदायी होता है।
अतः यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने पूर्वजों को अनंत सुख-शांति देना चाहते हो तो तुम्हें लाल बकरी का मांस भेंट करना चाहिए।’’

Safat Alam Taimi ने कहा…

जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो कर कुछ हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना ली है।

Unknown ने कहा…

Sir apko lagta hay hindu vado ka koi gayan nahi hay acha hoga aap kuh bhi tulna karna chod days vase bhe ham sa ak aur vievad nahi chatay hamnay kabhi bhi islam kay uper swale nahi uthay hay.acha hoga aap jhut ko sach dabit karnay ki kossi na karay .asay blogs say aur nafrat falte hay dono dharmo may aao apana kam kary . Dharm jasa vishay n uthay tacnologay aur education par blog liekhay .is vishay par nahe jis par aap ka knowlodge kame hay. I hope you understand me

Unknown ने कहा…

Sir apko lagta hay hindu vado ka koi gayan nahi hay acha hoga aap kuh bhi tulna karna chod days vase bhe ham sa ak aur vievad nahi chatay hamnay kabhi bhi islam kay uper swale nahi uthay hay.acha hoga aap jhut ko sach dabit karnay ki kossi na karay .asay blogs say aur nafrat falte hay dono dharmo may aao apana kam kary . Dharm jasa vishay n uthay tacnologay aur education par blog liekhay .is vishay par nahe jis par aap ka knowlodge kame hay. I hope you understand me

बेनामी ने कहा…

हिन्दू धर्म मे कल्की अवतारको भगवान विष्णुका रुप बताया गया है । जव जव इस पृथ्वी पर धर्मका विनास होता है तो धर्म के रक्षार्थ भगवान ने अवतार लेके पृथ्वी पर जनम लिया है । कल्की अवतार भि इसी कारण हूवा है और हिन्दू धर्म ग्रन्थ इस बातको बताता है । इस लेखमे बताया गया है की हिन्दू ग्रन्थ मे भी मूहमदका उल्लेख है । तो एक वात बताए कि क्या आप भगवान विष्णू को मानते है ? क्यो कि कल्की यानी हजरत मूहम्मद भि तो भगवान विष्णु है । जिस धर्म ग्रन्थ यह बता रही है कि भगवान अवतारलेके आरहेहै फीर यदी आप यह मानते है और दिखाना चाहते है कि हिन्दू धर्म ग्रन्थमे भी यही लिखा है तो फीर आप हिन्दू ग्रन्थमे उल्लेख भगवानको क्यो नही मानते ?

satyadev ने कहा…

safat alam taimi जी,
इसलाम धर्म नहीं है। यह एक सम्प्रदाय है। इसलिए हिन्दू सनातन धर्म की इससे तुलना करना अनुचित है। क्योंकि हिन्दू सनातन धर्म मानव निर्मित नहीं अपितु ईश्वर प्रदत्त है। हिन्दू सनातन धर्म के 10 नियम प्रकृति (ईश्वर) प्रदत्त हैं। जबकि इसलाम तथा उसके नियम मनुष्य (मुहम्मद) द्वारा बनाये गये हैं। हिन्दू सनातन धर्म के नियम मानवीय सद्गुणों से युक्त हैं। जबकि इसलाम के नियम अमानवीय हैं। यथा- हिंसा करना, लुट-पाट करना, असत्य बोलना, अपवित्रता, इन्द्रिय अनिग्रह आदि-आदि। ये सभी नियम मानवीय गुणों के विपरीत हैं। इनका साक्षात् उदाहरण आप मुगल शासकों के शासन में देख सकते हैं। इसलिए इसलाम को अधर्म कहा जाए तो कोई अनुचित नहीं। आप कुरान और हदीस की बात करते हैं तो कुरान में 24 आयतें हिंसा की जन्मदात्री हैं। जो प्रायः मस्जिदों मदरसों मे बच्चों को विशेष रूप से पढायी जाती हैं। जिनमें स्पष्ट लिखा है कि काफिरों (हिन्दुओ, ईसाईयों आदि ) को मारो काटो। हदीस में केवल अश्लील चर्चा है। यथा- स्त्रियाँ केवल पुरुषों की कामेच्छा पूर्ति के लिए हैं। स्त्रियों के साथ अत्याचार आदि विषयों का उल्लेख है। इसलिए इसलाम धर्म कहने के योग्य नहीं है। इसी प्रकार अल्लाह की ईश्वर से तुलना करना भी उचित नहीं। शब्दों को तोड-मरोड कर तथा उनका अनर्थ कर मुहम्मद की कल्कि से तुलना करना घोर अनुचित है। आप मुगल कालीन इतिहास से परिचित होते हुए भी असत्य बोल रहे हैं। यदि आप सत्य बोलेंगे तो आपके भाई बन्धु आपको मार डालेंगे। यह इसलाम की सच्चाई है। हिन्दू सनातन धर्म की दया भावना का दुरुपयोग ही मुसलमानों ने सदा किया है। इसलाम मे यदि कहीं दया शब्द का प्रयोग हो भी तो वह मात्र दिखावे के लिए है। उनकी कथनी – करनी केवल हिंसा के लिए है। इस सत्यता को आप नकार नहीं सकते। अपनी आत्मा से पूँछें।

बेनामी ने कहा…

जय श्रीराम....
सभी भाईओंको मेरा नमस्कार...
आप अगर इतनाही वेद,पुराण और मनुस्मृति को मानते है तो उसके हर उपदेश का पालन करे और रही बात कल्कि और मुहम्मद के साम्य की तो मुहम्मद साहब जैसे ही समझदार होते वे कोईभी धर्म एक धर्म नहीं अपनाते.....
अतः वे सनातनी कहलाते और अगर वो किताब आसमानी होती तो उसकी कोई बात झूट साबित नहीं होती, जबकि "कुरान" की बहोत साडी बातें झूट साबित हो चुकी है।
वो बाते कोनसी है ये आप कुरान पढ़कर समझ जायेंगे पर पढ़ते समय खुदको मुसलमान मत समझना तभी समझ आएगी।
यदि आप विष्णुजी को अल्लाह मानते है तो सनातनी बन जाये और उनकी बातोंको आचरण में लाये।
मुसलमान एक जीवन प्रणाली है जो की सिर्फ रेगिस्तान में उपयुक्त है।
यदि आप सायन्स को मानते है तो उसके मुताबिक पृथ्वी गोल है....और जहाँतक मुझे मालूम है की किसी भी गोल चीझ का कोई एक केंद्रबिंदु नहीं होता तो मक्का दुनिया के बीचोबीच है ये बात भी गलत है।
जब की हिन्दुस्थान में कोई भी हिन्दू किसी भी दर्गा या मजार पर जा सकता है तो मक्का में क्यू नहीं। ये बात ...मक्का में शिवलिंग है इस बात की पुष्टि करती है।
जब आपका मानना है की मुहम्मद साहब कल्कि का अवतार है जो की दुनिया का दुःख दूर करके शांति लाने के लिए आये थे।
तो अरब कंट्री में आपस में ऐसी भयंकर लड़ाईया क्यू।जब की मुसलमान में ही आपस में कई विभाग है तो दूसरा कैसे खुश रहेगा??
आपसे उत्तर की अपेक्षा करता हूँ।
जय श्रीराम

Safat Alam Taimi ने कहा…

बेनामी जी!
अल्लाह की आप पर दया हो।

इस्लाम आपका भी धर्म है, परन्तु आपके जो संदेह हैं उनके उत्तर मैं इस लिए दे रहा हूं ताकि आप इन पर विचार करें।

(1) इ्स्लाम कोई नया धर्म नहीं बल्कि इतना ही पुराना है जितना कि स्वयं मानव हैं। और हर युग में संदेष्टा इसकी शिक्षाओं को अपनी अपनी भाषा में बयान करते रहे हैं। सब से अन्त में आपके ईश्वर (अल्लाह) ने मुहम्मद सल्ल. द्वारा संसार के लिए अन्तिम उपदेश उतारा जिसे अरबी में इस्लाम कहते हैं। इस विषय पर आप यह लेख पढ़ें http://safatalam.blogspot.com/2009/09/blog-post_30.html

Safat Alam Taimi ने कहा…

(2) आपको पंडित जी ने जैसे उल्टा सीधा समझाया है वैसे ही समझ कर वार्ता कर रहे हैं, पहले सच्चाई की खोज की आवश्यकता होती है। आपसे हमारा अनुरोध होगा कि सत्य की जानकारी हेतु आप इस्लाम का पहले अध्ययन करें। सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करें।

Safat Alam Taimi ने कहा…

(3) क़ुरआन में आज तक कोई विरोधाभास पाया गया है और न पाया जा सकता है। क़ुरआन की बहुत सी शिक्षायों तक विज्ञान की पहुंच न हो सकी है। याद रखें साइंस और कुरआन में कोई विरोधाभास नहीं। क़ुरआन के ईश-वाणी होने के लिए यह प्रमाण काफी है कि उसने आज से साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व उन वैज्ञानिक बातों की भी चर्चा की है जिसकी खोज विज्ञान आज के युग में कर सका है इस प्रकार के विभिन्न वैज्ञानिक तथ्य क़ुरआन में बयान किए गए हैं। "पवित्र क़ुरआम कोई विज्ञान की पुस्तक नहीं है अपितु मार्गदर्शक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में छ हज़ार से अधिक आयतें हैं उनमें से एक हज़ार से अधिक आयतों का सम्बन्ध विज्ञान से है।" (क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान डा0 ज़ाकिर नाइक पृष्ठ 12)

हम निम्म में कुछ प्रमुख उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं:

भ्रूण का विकासः
पवित्र क़ुरआन में मानव भ्रूण के विकास की विभिन्न अवस्थाओं को इस प्रकार बयान किया गया हैः
" हमने इनसान को मिट्टी के सत से बनाया, फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बुंद बना कर रखा। फिर हमने उस बूंद को लोथड़ा का रूप दिया। फिर हमने उस लोथड़े को बूटी का रूप दिया। फिर हमने बोटी की हड्डियाँ बनाईँ। फिर हमने उस हड्डियों पर मास चढ़ाया। फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप दे कर खड़ा किया।" ( सूरः 23 आयत 12-14)

कनाडा यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर मूरे इस आयतों के सम्बन्ध में लिखते हैं:
"अत्यधिक अनुसंधान के पश्चात जो तथ्य हमें क़ुरआन और हदीस से प्राप्त हुए हैं वास्तव में वह बहुत चौंकाने वाले हैं क्योंकि यह तथ्य सातवीं ईसवी के हैं जब भ्रूणकी के बारे में बहुत कम अध्ययन हुआ था। भ्रूण के सम्बन्ध में सब से पहला अनुसंधान जो ऐरिक स्टेट द्वारा टिकन के अण्डे पर किया गया उसमें भी इस अवस्थाओं का बिल्कुल उल्लेख नहीं है।"


इसके बाद प्रोफेसर मूरे ने अपना निष्कर्ष कुछ इस प्रकार दिया हैः
"हमारे लिए स्पष्ट है कि यह तथ्य मुहम्मद सल्ल0 पर अल्लाह की ओर से ही आया है क्योंकि इस (भ्रुणकी) सम्बन्ध की खोज हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की मृत्यु के बहुत बाद में हुई। यह हमारे लिए स्पष्ट करता है कि मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के भेजे हुए संदेष्टा हैं।"
( Moore, K.L, The Development Human, 3th Edition, W.B Saunders co. 1982)


यातनाएं खाल को होती हैं शरीर को नहीं:
प्रोफेसर तेगासान ने जब सन्1995 में रियाज़ (सऊदी अरब) में होने वाली सभा में निम्न आयत पर चिन्तन मनन कियाः
" जिन लोगों ने हमारी आयतों का इन्कार किया उन्हें हम जल्द ही आग में जोंकेंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल दिया करेंगे ताकि वह यातनाओं का मज़ा चखते रहें"।
तो अन्त में उन्होंने अपना विचार इन शब्दों में व्यक्त किया :
" मैं विश्वास करता हूं कि क़ुरआन में जो कुछ भी 14-00 वर्ष पूर्व लिखा जा चुका सत्य है जो आज अनेकों वैज्ञानिक स्रोतों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है। चूंकि हज़रत मुहम्मद सल्ल0 पढ़े लिखे न थे अतः वह अल्लाह के संदेष्टा ही हैं और उन्होंने योग्य सृष्टा की ओर से अवतरित ज्ञान को ही समस्त मनुष्यों तक पहुंचाया, वह योग्य सृष्टा अल्लाह ही है। इस लिए लगता है कि वह समय आ गया है कि मैं गवाही देते हुए पढ़ूं: " ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं और मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के भेजे हुए (अन्तिम) संदेष्टा हैं।"
यही वह वैज्ञानिक तथ्य था जिस से प्रभावित हो कर उसी समय उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया।


पहाड़ों की सृष्टि की हिकमतः
विज्ञान ने आधुनिक खोज द्वारा यह सिद्ध किया है कि पहाड़ों की जड़ पृथ्वी के नीचे हैं जो पृथ्वी को डुलकने से बचाता है और पृथ्वी को स्थिर रखने के लिए महत्वपूर्ण भुमिका अदा करता है। इस तथ्य की ओर क़ुरआन ने आज से साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व संकेत कर दिया थाः "क्या हमने पृथ्वी को बिछौना और पर्वतों को मेख़ नहीं बनाया?" । ( सूरः 78 आयत 6-7) एक दूसरे स्थान पर फरमायाः " और हमनें ज़मीन में पहाड़ जमा दिए ताकि वह इन्हें ले कर ढुलक न जाए"। ( सूरः 21 आयत 31)

Safat Alam Taimi ने कहा…

(4) गोल चीज़ का केंद्र बिंदु नहीं होता यह किसने कहा। यह किस विज्ञान ने सिद्ध किया है। बुद्धि लगाएं तो साफ ज़ाहिर होगा कि गोल चीज़ का भी केंद्र बिंदु होता है। केंद्र बीच के भाग को कहते है,पृथ्वी गोल है तो उसका भी बीच का भाग है।

Safat Alam Taimi ने कहा…

(5) आज से साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व अन्तिम अवतार मुहम्मद सल्ल0 ने कहा था कि हज्रे अस्वद (काला पत्थर) स्वर्ग से उतरा है (तिर्मिज़ी) और आज विज्ञान ने भी खोज करके सिद्ध कर दिया कि वास्तव में यह पत्थर जन्नती पत्थर है। इस खोज का सिहरा ब्रीटेन के एक वैज्ञानिक रिचर्ड डिबर्टन के सर जाता है जो स्वयं को मुस्लिम सिद्ध करते हुए काबा का दर्शन करने के लिए मक्का आया, वह अरबी भाषा जानता था। जब मक्का पहुंचा तो काबा में दाखिल हुआ और हज्रे अस्वद से एक टुकड़ा प्राप्त करने में सफल हो गया। उसे अपने साथ लंदन लाया और ज्यूलोजी की लिबार्ट्री में उस पर तजर्बा शुरू कर दिया। खोज के बाद इस परिणाम पर पहुंचा कि हज्रे अस्वद धरती के पत्थरों में से कोई पत्थर नहीं बल्कि आसमान से उतरा हुआ पत्थर है। और उसने अपनी पुस्तक (मक्का और मदीना की यात्रा) में इस तथ्य को स्पष्ट किया। यह पुस्तक 1956 में अंग्रेजी भाषा में लंदन से प्रकाशित हुई।
देखिए (www.wathakker.com) पर प्रकाशित एक लेख।

इसी से यह बात सिद्ध हो गई कि किसी ने उसे आस्था से वहां ले जाकर नहीं डाल दिया कि वह शिवलिंग कहलाए बल्कि यह स्वर्गीय पत्थरों में से एक है। जिसे एक मुस्लिम प्रेम से चूमता है जैसे एक माता अपने बच्चे को, इसे पूजा का भी नाम नहीं दिया जा सकता। क्योंकि इसे चूमते समय किसी को लाभ की आशा अथवा हानि का भय नहीं होता। इसी लिए एक बार जब मुहम्मद सल्ल0 के एक प्यारे साथी और मुसलमानों के शासक अबूबक्र रज़ि0 काबा के पास आए तो हज्रे अस्वद को चूमते हुए कहा (मैं जानता हूं कि तू मात्र एक पत्थर है। तू न लाभ पहुंचा सकता हैं और न हानि, यदि मैं ने मुहम्मद सल्ल0 को चूमते हुए न देखा होता तो मैं तुझे न चूमता) ज्ञात यह हुआ कि आज एक मुसलमान उस पत्थर को केवल पत्थर मान कर ही चूमता है क्योंकि वह पत्थर स्वर्गीय पत्थर है और हमारे अन्तिम संदेष्टा
मुहम्मद सल्ल0 ने उसे चूमा था उन्हीं का अनुसरण करते हैं.और बस।

Safat Alam Taimi ने कहा…

(6) मक्का में गैरमुस्लिमों का प्रवेश निषेध नहीं है, कितने गैर मुस्लिम हैं जो मक्का में रहते हैं परन्तु मक्का हरम की सीमा के अंदर कोई गैर मुस्लिम नहीं प्रवेश कर सकता। क्यों कि हर देश में कुछ स्थान ऐसे होते हैं जहाँ सब को प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती, जैसे फोजी छावनियाँ, मंत्रियों के निवास स्थल, आदि स्थान पर जाने के लिए प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है। और मक्का में हरम की सीमा वर्जित स्थल है परन्तु जो प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेगा वह मक्का की सीमा में भी प्रवेश कर सकता है। और यह प्रमाण पत्र दिल से इस्लाम स्वीकार करना है।

Safat Alam Taimi ने कहा…

(7) जब दुनिया में इस्लामी नियम पूरे तौर पर लागू हुआ था तो सम्पूर्ण संसार में शान्ति का वातावरण बना था। आज भी उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब को देख सकते हैं जहाँ शान्ति ही शान्ति है।

अरब देशों में जो लड़ाईयाँ हो रही हैं इस्लाम का अनुसरण न करने के कारण हो रही हैं। और याद रखें कि किसी भी धर्म को उसके सिद्धांत द्वारा जाना जाता है उसके मानने वालों द्वारा नहीं जाना जाता।

Safat Alam Taimi ने कहा…

(7) जब दुनिया में इस्लामी नियम पूरे तौर पर लागू हुआ था तो सम्पूर्ण संसार में शान्ति का वातावरण बना था। आज भी उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब को देख सकते हैं जहाँ शान्ति ही शान्ति है।

अरब देशों में जो लड़ाईयाँ हो रही हैं इस्लाम का अनुसरण न करने के कारण हो रही हैं। और याद रखें कि किसी भी धर्म को उसके सिद्धांत द्वारा जाना जाता है उसके मानने वालों द्वारा नहीं जाना जाता।

Unknown ने कहा…

भाई मेरा एक मुस्लिम मित्र है वह मुझे कहता है कि मोहम्मद साहब के 1 लाख 80 हजार शिष्य थे लेकिन उन्होंने कभी मांसाहार का पान नहीं किया तो मैं यह जानना चाहता हूं कि इस्लाम में मास खाना किसने प्रारंभ किया और एक मेरी बात है कि आप मोहम्मद साहब को कल्की अवतार से जोड़ रहे हैं यह बात मेरी समझ से परे हैं अभी स्वर्णयुग शुरु हुआ है और कल्कि अवतार कलयुग के अंत में होगा जब धरती पर पर्लय अर्थात qayamat का दिन जब आएगा तब अच्छे और सच्चे लोगों की रक्षा कौन करेगा मैंने वेद पडा हैं उसमें मोहम्मद साहब के आने की भविष्यवाणी कि हे परंतु कल्कि अवतार की भविष्यवाणी अलग से की गई इसीलिए मैं आपकी बात से पूर्ण रूप से सहमत नहीं हूं।

Safat Alam Taimi ने कहा…

Omesh Jat जी, आपका मुस्लिम मित्र नाम का मुसलमान होगा, उसे तनिक भी धर्म का ज्ञान नहीं है। यदि होता तो ऐसी बात करता ही नहीं। मुहम्मद सल्ल. और उनके साथियों ने भी गोश्त खाया है। हाँ यह बात भी याद रखें कि इस्लाम में गोश्त खाना मुसलमान रहने के लिए आवश्यक नहीं, एक कट्टर मुस्लि शाकाहारी हो सकता है। लेकिन इस्लाम मांस की अनुमति क्यों देता है, इसे जानने के लिए इस विडियो को देखने का कष्ट करें।

Safat Alam Taimi ने कहा…

https://youtu.be/l6OOrvGrPPE

Unknown ने कहा…

कल्कि अवतार ओर मोहम्मद साहब वेद पकाश उपाधयाय की किताब है उस में इस बात का जवाब है कि अवतार का क्या मतलब है