रविवार, 17 नवंबर 2019

*मेरा प्रोजेक्ट - मेरी संतान है*


जब मैं नफिल नमाज़ों की अदायगी में कोताही करता हूं तो अपनी संतान और दुनिया के संकटों को याद करता हूं और अल्लाह तआला के इस आदेश पर चिंतन मनन करने लग जाता हूं:
"और उन दोनों के बाप नेक थे"
अतः मैं उन पर दया करता हूं और कोशिश में लग जाता हूं।

आपका सफलतापूर्वक प्रोजेक्ट आपकी संतान है और इस प्रोजेक्ट की सफलता हेतु अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबी हजरत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रजियल्लाहु अन्हु के बताए हुए तरीके का अनुसरण करें जबकि वह एक रात नमाज़ पढ़ रहे थे और उनका छोटा बेटा सो रहा था, उसकी तरफ देखकर कहने लगे:
" तेरे लिए ऐ मेरे बेटे! और अल्लाह के इस आदेश की तिलावत करते हुए रोने लगे:
"और उन दोनों के बाप नेक थे"
 सईद बिन मुसैइब रहमतुल्लाहि अलैह के बारे में आता है कि जब कभी भी रात में क्याम करने का इरादा करते तो अपने बेटे की तरफ देखते और कहते:
" मैं अपनी नमाज में ज्यादती करता हूं ताकि अल्लाह तुझे दुरुस्त कर दे और तेरी सुरक्षा करे, फिर रोने लगते और अल्लाह तआला के इस आदेश की तिलावत करते:
"और उन दोनों के बाप नेक थे"
 जी हां! यह जादुई तरकीब है जिसे इख्तियार करके हम अपने बच्चों को नेक और अच्छा बना सकते हैं। अगर बाप रोल मॉडल और नेक हो और उसका संबंध अपने रब के साथ मजबूत हो तो अल्लाह तआला उसकी संतान की सुरक्षा करता बल्कि उसके पोतों और पोतियों की भी सुरक्षा करता है जैसा कि अल्लाह तआला ने सूर: अल-कहफ में दादा के नेक होने की वजह से बाप के जमा किए हुए खजाने की हिफाजत की ताकि दो यतीम बच्चों के काम आ सके।
इस संदर्भ में मुझे एक किस्सा याद आ रहा है कुवैत के एक विद्वान हैं, ऊंचे पद पर हैं और बहुत सारी सरकारी संस्थाओं में काम करते हैं लेकिन उसके बावजूद हर दिन अपना कुछ समय वेलफेयर के कामों के लिए भी निकालते हैं मैंने एक दिन उनसे पूछा आप ऊंचे पद पर आसीन हैं आप अपनी सरगर्मियां सरकारी कामों में क्यों नहीं लगाते? उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा: आज मैं चाहता हूं कि तुम्हारे सामने अपने दिल का राज जाहिर कर दूं, मेरे पास 6 से ज्यादा संतान है अधिकतर उनमें लडके हैं और उनके बिगाड़ का मुझे भय लगा रहता है क्योंकि उनके प्रशिक्षण में मुझसे कोताही होती है लेकिन मैंने अल्लाह ताला की अपने ऊपर यह नेमत देखी कि मैं जितना अपना समय अपने रब के लिए देता हूं अल्लाह तआला उतना ही मेरी संतान को ठीक करता है।"

यह संदेश माता-पिता और संतानों को भेजिए

(डा. नबील अल-अवज़ी)

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

स्वभाव का प्रभाव

जो इंसान जिस स्वभाव का होता है उसका झुकाव उसी स्वभाव के लोगों की ओर होता है। अच्छे लोग अपने जैसे लोगों की ओर ही जाते हैं और बुरे लोग अपने जैसे बुरे लोगों की तरफ ही झुकते हैं।

यही तथ्य मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के एक प्रवचन में बयान की गाई है।

आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि मक्का में एक महिला थी जो बहुत मज़ाक किया करती थी, वह एक दूसरी महिला के पास उतरी जो उसी के स्वभाव की थी, जब आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा को पता चला तो उन्हों ने कहाः

मेरे महबूब ने सही कहा, अल्लाह के संदेष्टा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मैंने कहते हुऐ सुना:

"आत्मायें विभिन्न प्रकार की सेनायें हैं उन में जो आपस में परिचय रखती हैं वे एक दूसरे से घुल-मिल जाती हैं और जो परिचय नहीं रखतीं वे अलग रहती हैं।" (मजमउज़्ज़वाइदः 8/91)

 हदीस का अभिप्राय यह है कि इंसानों का एक दूसरे से परिचय स्वभाव में पाई जाने वेली भलाई और बुराई के अनुपात से होती है। अच्छे लोग अच्छे लोगों की ओर आकर्षित होते हैं और बुरे लोगो बुरे लोगों की ओर आकर्षित होते हैं।

रविवार, 18 अगस्त 2019

इस्लाम को जो जानता है उसका हो कर रह जाता है


इस्लाम और मुसलमानों का विरोद्ध हर युग में इस्लाम को न जानने के कारण ही हुआ है। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पवित्र जीवनी और पूरा इस्लामी इतिहास इस हक़ीक़त पर गवाह है।
जिस समय मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लोगों को एक अल्लाह की ओर बोलाना शुरू किया पूरी दुनिया उनके खेलाफ हो गई। उनको पागल और दीवाना कहा, उनके रास्ते में कांटे बिछाए, उनका और उनके अनुयायियों का बहिष्कार किया, उनको अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। मक्का छोड़ कर मदीना में शरण ली, फिर भी ज़ालिमों ने चैन से रहने न दिया और हर साल उनसे युद्ध करते रहे, अहज़ाब के युद्ध में इस्लाम के सारे शत्रु मुसलमानों के खेलाफ एकजुट हो गए थे, सभी का नारा था कि इस्लाम और मुसलमानों को समाप्त कर दिया जाए, लेकिन फिर भी इस्लाम विरोधी ताकतें अपनी अशुद्ध महत्वाकांक्षाओं में सफल नहीं हुईं। यह टकराव 21 वर्षों तक चलता रहा। हैरानी की बात यह है कि 21 वर्षों की लंबी अवधि के बाद इन्हीं ख़ून के प्यासों को जब इस्लाम का सही ज्ञान हुआ तो उन्हों ने इस्लाम की छाया में शरण ली और इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए अपनी सारी ऊर्जा समर्पित करने लगे।
फिर वह दिन भी आया जब 656 हिजरी में तातारियों ने बग़दाद पर हमला किया तो इस्लामी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी। मुसलमानों के ख़ून से दज्ला का पानी लाल हो गया था, 18 लाख मुसलमानों को मौत के घात उतार दिया गया था, उस समय मुसलमान ऐसे भयभीत हो चुके थे कि जब कोई तातारी महिला किसी मुसलमान को रास्ते से गुजरता हुआ देखती तो उससे कहती थीः "यहीं इंतजार करो मैं तलवार लेकर आती हूँ।" वह सहमा हुआ खड़ा रहता यहाँ तक कि तातारी महिला तलवार लेकर आती और वह बेरहमी से उसका सिर काट देती थी।" ऐसी परीस्थिति में मुसलमान पहुंच चुके थे, लेकिन इतिहास साक्षी है कि वही विजेता जब मुसलमानों के क़रीब रह कर इस्लाम को जानते हैं तो इस्लाम को गले लगा लेते हैं और अपने किए पर पछताते हैं।
इस लिए आज ज़रूरत है कि दुनिया के सामने इस्लाम की सही शक्ल पेश की जाए।

एक मुसलमान को 100% यक़ीन होना चाहिए कि भविष्य इस्लाम का होगा कि यही धर्म सच्चा, सही और सुरक्षित धर्म है और बाक़ी सारे धर्म इंसानों के बनाए हुए फल्सफे हैं। इस्लाम विशेष स्थान और विशेष युग के लिए नहीं बल्कि हर युग और सारी मानव जाति के लिए है, इसकी शिक्षाएं दीन और दुनिया की सभी जरूरतों को अपने अंदर समेटे हुई हैं, इंसान ने जीने के जो जो दर्शन बनाए समय गुज़रने के साथ वे अपनी मौत मर गए, लेकिन इस्लाम ने जिन सच्चाइयों का आह्वान किया है सालों साल गुज़रने के बावजूद यह अटूट है। इस्लामी नियम के सामने इंसानों के बनाए हुए क़ानून दम तोड़ चुके हैं, साम्यवाद को निष्कासित कर दिया गया है, पूंजीवादी व्यवस्था की खामियों से मानवता तबाही की शिकार है, मानव रचित नियम मानवीय समस्याओं को हल करने में असमर्थ लगते हैं, अब दुनिया ऐसे मसीहा की तलाश में है जो उसे इस नरकीय प्रणाली से बाहर निकाले और यह प्रणाली इस्लामी जीवन व्यवस्था है।

रविवार, 4 अगस्त 2019

” जैसी संगत वैसी रंगत ”


दोस्ती हर इंसान की प्राकृतिक और सामाजिक आवश्यकता है, एक व्यक्ति अपने मित्रों से दिल की बातें शेयर कर पाता है, उनके के साथ बेहतर समय बिताता है और उनकी संगत से बहुत कुछ सीखता है। एक समय था दोस्ती डाइरेक्त होती थी, अब सोशल मेडिया के प्रचलन से In Direct दोस्ती होने लगी है, जैसे फेसबुक और ट्वीटर आदि की दोस्ती। 
एक आदमी अपने दोस्त के रास्ते पर होता है, अगर दोस्त अच्छा होगा तो वह भी अच्छा होगा और अगर दोस्त बुरा होगा तो वह भी बुरा होगा, इसी लिए कहते हैं:
” मुझे बता दो कि तुम्हारा दोस्त कौन है मैं बता दूंगा कि तुम कौन हो”
और कहते हैं
” जैसी संगत वैसी रंगत ”
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता हैः
“एक आदमी अपने मित्र के धर्म पर होता है, इस लिए आदमी को देख लेना चाहिए कि वह किससे दोस्ती कर रहा है ” ( अल-जामि अस्सग़ीरः 4516, हसन )

एक शराबी से पूछें कि उसने शराब का सेवन कैसे शुरू किया? एक अश्लीलकर्मी से पूछें कि उसे अश्लीलता की लत कैसे लगी, एक अपराधी से पूछें कि उसके जेल जाने का कारण क्या बना, एक नशाखोर से पूछें कि उसे नशे की आदत कैसे लगी, सभी का जवाब एक ही होगा कि बुरी संगत ने उन्हें यहां तक ​​पहुंचाया। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने एक उदाहरण द्वारा अच्छी और बुरी दोस्ती को प्रकट करते हुए कहा:
“अच्छे और बुरे दोस्त की मिसाल खुशबू बेचने वाले और भट्टी धूंकने वाले के जैसे है कि खुशबू बेचने वाला या तो तुझे ख़ूशबू में से कुछ दे देता है या तुम उस से खरीद लेते हो या उसके पास रहने से तुझे खुशबू मिलती है, और भट्टी धूंकने वाला या तो तेरे कपड़े जला डालेगा या तुझे उसके पास गंध सूंघने को मिलेगा।” ( सही बुख़ारीः 5534 सही मुस्लिमः 2628)
संगत का प्रभाव सब से अधिक बच्चों पर पड़ता हैः
अच्छी या बुरी संगत से सबसे अधिक प्रभावित हमारे बच्चे होते हैं क्यों कि बाल्यावस्था से युवावस्था तक उनका दोस्तों से अधिक संबंध होता है, यह सच्चाई है कि हम अपने बच्चों को बुरी संगत से बहुत कम बचा पाते हैं हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों पर उनके माता पिता, बड़े भाई बहिन और रिश्तेदारों का असर केवल चालीस प्रतिशत होता है,बच्चों पर 60 प्रतिशत प्रभाव उनके मित्रों का होता है. मित्र अच्छा मिला तो बच्चा भी अच्छा बनेगा और यदि मित्र बुरा मिला तो बच्चा भी बुरा बनेगा।.
यदि कोई यह दावा करे कि मेरे बच्चे बुरे बच्चों के साथ रहते हैं लेकिन उनकी बुराई उन पर कोई असर न डाल सकी है तो मैं कहता हूँ कि वह झूठा है। ऐसा हो नहीं सकता कि एक बच्चा बुरे बच्चों के साथ रह कर अच्छा बन सके, अथवा उन से प्रभावित न हो।
अच्छी संगत क्यों नहीं ?
बुरी संगत का परिणाम हमें दुनिया में भी भुगतना पड़ेगा और आखिरत में नरक की पीड़ा के रूप मैं भुगतने वाले हैं. बुरी संगत मानो बुरे परिणाम तक पहुंचना है. और अच्छी संगत अच्छे परिणाम तक।
फिर आपने जो संगत अपनाई है उसका उद्देश्य यही है ना कि आपको शान्ति मिल सके, सवाल यह है कि क्या सुकून बुरे लोगों की संगति में, इंटरनेट पर अश्लील दृश्यों के अवलोकन से, मदिरापान के सेवन में और शराब के अड्डे में है? नहीं और कदापि नहीं. सुकून का सृष्टा हम और आप नहीं बल्कि हमारा मालिक है, तो फिर हमें बताइए कि कया वह चाहेगा कि शान्ति ऐसे लोगों को प्रदान कर दे जो उसके अवज्ञाकारी हैं? नहीं, बल्कि सुकून से उन्हें सम्मानित करता है जो उसके आज्ञाकारी हैं। फिर यहाँ केवल सांसारिक खुशी और भोग विलास का सवाल नहीं महाप्रलय के दिन की मुक्ति उसी संगत पर आधारित है, और यह तभी प्राप्त हो सकती है जब आप बुरी संगत छोड़ेंगे।
कुछ लोग यह कहते हुए नहीं थकते कि नेक बनना चाहता हूँ, बुराई से दूर होना चाहता हूँ, लेकिन नहीं बन पाता. जानते हैं क्यों नहीं बन पाते? इरादा तो है, दिल में बुराई का एहसास भी है लेकिन बुरी संगत नहीं छुटी जिसके कारण नेक काम करना या बुराई से बचना संभव नहीं हो पा रहा है।
आपने सहीह बुखारी की वह प्रसिद्ध हदीस जरूर सुनी होगी कि सौ व्यक्तियों का हत्यारा जब एक विद्वान से अपनी समस्या पूछता है कि क्या 100 व्यक्तियों को क़त्ल करने के बाद भी मेरे लिए पश्चाताप और तौबा का मौक़ा है तो आलिम जवाब देता है कि हां तेरे लिए पश्चाताप का अवसर है, तेरी तौबा के रास्ते में आखिर कौन आड़े आ सकता है. लेकिन तुम जिस क्षेत्र में रहते हो उसे छोड़ कर फलाँ जगह चले जाओ जहाँ नेक लोग रहते हैं ताकि उनके साथ रह कर अल्लाह की इबादत कर सको।
यह वास्तव में सही मार्गदर्शन और अच्छी संगत का प्रभाव है कि संगत अच्छी होगी तो आप अच्छा बन सकेंगे, और संगत अच्छी नहीं होगी तो लाख चाहने के बावजूद आप अच्छा नहीं बन सकते।

बुरे दोस्तों को Delete कीजिएः
आईए संकल्प करें, कागज और क़लम उठायें और अपने दोस्तों की सूची तैयार करें, उनमें जो अनावश्यक हों, जो आपका समय बर्बाद करते हों, जो आप को बुराइयों पर उकसाते हों, जो आपकी इबातों में बाध्य बनते हों, उनको अपने दोस्तों की सूची से Delete करें. और उनसे दोस्ती रखें जो अच्छे हों, जो आपको भलाई के लिए आकर्षित करते हो, जो आपको बुराई से रोकते हों, जो अच्छे व्यवहार के हों, जो समझदार हों मूर्ख न हों, ऐसे लोगों से आपकी संगत होगी तो दुनिया में अच्छे रास्ते पर चलेंगे और क़्यामत के दिन अल्लाह की छाया मिलेगी जिस दिन उसकी छाया के अलावा कोई दूसरी छाया न होगी, फिर आख़िरत के सारे चरण आसान होते जाएंगे। अब हम देखना चाहते हैं कि कितने भाई ऐसे हैं जो बुरे दोस्तों की संगत समाप्त करने का संकल्प करते हैं। (प्रेमवाणी)

गाय क़ुरआन के दर्पण में

एक सज्जन ने बड़े ज़ोरदार तरीक़े से टिप्पणी की है कि क़ुरआन में गौहत्या से रोका गया है, मैं उसकी टिप्पणी पढ़ कर दंग रह गया कि कैसे लोग इतना सफेद झूठ बोलते हैं, और मन में आया कि इस बारे में कुछ लिखा जाए। ज्ञात होना चाहिए कि क़ुरआन सत्य और असत्य को परखने का ऐसा मापदंड है जिसके दर्पण में किसी भी विषय को सरलतापूर्वक जांचा और परखा जा सकता है। क़ुरआन की दृष्टि में गाय सामान्य पशुओं के जैसे एक पशु है जिससे इंसान बहुत सारे फाइदे उठाता है। क़ुरआन में 4 स्थान पर गाय से संबंधित क़िस्सा बयान किया गया है। आइए निम्न में इसे जानते हैं:
क़ुरआन की सब से बड़ी सूरः का नाम सूरः अल-बक़रा है जिसमें एक घटना के संदर्भ में गाय का वर्णन आया है। घटना का सारांश यह है कि बनू-इस्राईल में एक धनी व्यक्ति था जो निःसंतान था। उसके भतीजे ने सोचा कि चाचा को मार कर उसके धन पर सरलतापूर्वक क़ब्ज़ा जमाया जा सकता है। एक दिन इसी इरादा से आया और बेदर्दी से अपने चाचा की हत्या कर दी और शव खुले रास्ता पर डाल दिया। परिवार के सदस्य संदेष्टा मूसा अलैहिस्सलाम के पास उपस्थित हुए और घटना से अवगत कराया और समाधान पूछा तो मूसा अलैहिस्सलाम पर अल्लाह की ओर से प्रकाशना आई कि वे गाय ज़ब्ह करें और उसके गोश्त का लोथड़ा मृतक के बदन पर मारें मृतक जीवित हो जाएगा और अपने हत्यारे का पता बता देगा। परन्तु गाय की विशेषता के विषय में बनू इस्राईल उल्टे सीधे प्रश्न करने लगे। अंततः बड़ी कोशिश के बाद एक गाय मिली जिसे उन्हों ने ज़ब्ह किया और गोश्त का एक भाग लेकर मृतक को मारा को चमत्कारिक रूप में अल्लाह की अनुमति से वह जीवित हो गया और अपने हत्यारे का पता बताया फिर तुरंत मर गया। (क़ुरआनः 2:67-73)
दूसरे स्थान पर गाय का वर्णन संदेष्टा इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़िस्सा के संदर्भ में आया है कि जब फरिश्ते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास मानव के रूप में उपस्थित हुए तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें देखते ही घर गए अपना एक पछड़ा ज़ब्ह किया, उसका गोश्त बनाकर लाये और फरिश्तों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए उन से खाने का अनुरोघ किया। लेकिन वे तो फरिश्ते थे खाते कैसे। फरिश्ते खाने से रुके रहे तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम भय हुआ, तब फरिश्तों ने कहा कि हम फरिश्ते हैं और आपको शूभसूचना देने आए हैं कि अल्लाह की अनुमति से आपको संतान होने वाली है। इस प्रकार बुढ़ापे में इब्राहीम अलैहिस्सलाम को सारा से एक लड़का हुआ जिनका नाम इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पड़ा। (क़ुरआनः 7:69-71)
तीसरे स्थान पर गाय का वर्णन सूरः युसूफ में मिस्र के बादशाह के सपना के संदर्भ में आया है कि युसूफ अलैहिस्सलाम जब जेल में थे तो सम्राट ने स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही हैं। इस समपने का अर्थ जब युसूफ अलैहिस्सलाम से पूछा तो उन्हों ने बताया कि ऐसा समय आने वाला है कि तुम्हारे देश में सात वर्ष तक खूब समृद्धि रहेगी। फिर आगामी सात वर्ष में अकाल पड़ेगा तो इकट्ठा कर के रखे गए सारे अनाज को समाप्त कर देगा। इस लिए तुम समृद्धि के पहले 7 सालों में अनाज उत्पादन करके बोलियों सहित जमा कर लो ताकि अकाल के समय काम आ सके। (क़ुरआनः 12:43-49)
पहले और दूसरे क़िस्से में गाय को ज़ब्ह करने की अनुमति का संदेश मिलता है क्यों कि गाय भी उपयोग में आने वाले पशुओं में से एक है। जबकि तीसरे क़िस्से में सात मोटी और सात दुबली गायें का वर्णन ख़ुशहाली और अकाल को दर्शाने के लिए किया गया है। इस से पता यह चला कि क़ुरआन में गाय का गोश्त खाने की अनुमति दी गई है और कहीं इस से रोका नहीं गया है, क़ुरआन की सूरः अंआम की आयत 143-144 में आठ नर-मादा जानवरों का वर्णन किया गया है (भेड़, बकरी, ऊँट, गाय नर-मादा) जिन में से कुछ को अज्ञानता काल में लोग स्वयं पर अवैध ठहरा लेते थे, क़ुरआन ने कहा कि वे सब वैध हैं।

गौ-पूजा की कहानीः
क़ुरआन में मूसा अलैहिस्सलाम और उनके समुदाय की कहानी के संदर्भ में यह आता है कि जब मूसा अलैहिस्सलाम बनू इस्राईल को फिरऔन के अत्याचार से निकाल कर मिस्र से निकले और समुद्र के पास आये तो पीछे से देखा कि फिरऔन अपनी सेना के साथ उनका पीछा कर रहा है, यह भयानक दृश्य देख कर बनू इस्राईल परेशान हो गए। लेकिन उसी समय अल्लाह के आदेश से मूसा अलैहिस्सलाम ने समुद्र में लाठी मारा और अल्लाह ने उनके लिए बहते समुद्र के मध्य में रास्ता बना दिया जिसे बनू-इस्राईल सरलतापूर्वक पार कर गए और फिरऔन अपनी सेना सहित उसी समुद्र में डूब कर हमेशा के लिए ऐतिहासिक पाठ बन गया। (क़ुरआनः 26:61-67)
समुद्र पार करने के बाद मूसा अलैहिस्सलाम ने बनू इस्राईल को एक अल्लाह की पहचान बताई, उनके हृदय में अल्लाह की महानता बैठाई, यहाँ तक कि सब एक अल्लाह (ईश्रर) की पूजा करने लग गए। फिर वह समय आया कि अपने भाई हारून अलैहिस्सलाम को बनू-इस्राईल की देख-भाल हेतु छोड़ कर चालीस दिन के लिए अल्लाह के आदेशानुसार तूर पर्वत पर चले गए। जब लौटे तो देखा कि बनू-इस्राईल गाय की पूजा करने लगी है। जिसकी कहानी यह है कि “सामरी” नामक एक पथभ्रष्ठ व्यक्ति बनू-इस्राइल के पास आया, और उसने सोने का एक बछड़ा बनाया, बछड़ा तैयार होने के बाद “सामरी” ने लोगों को धोखा में रखने के लिए एक योजना बनाई कि बछड़े के मुंह की ओर से फूंक मारता तो पीछे से एक प्रकार का स्वर निकलता, अब “सामरी” ने लोगों को समझाया कि यह बछड़ा ही तुम्हारा वास्तविक भगवान है जिसकी पूजा होनी चाहिए। अब क्या था ? भौतिकवादी बनू-इस्राइलियों ने एक अल्लाह (ईश्वर) को भूल कर गौ-पूजा शुरू कर दी। मूसा अलैहिस्सलाम जब बनू-इस्राईल के पास लौट कर आए और उन्हें बछड़े की पूजा करते देखा तो बहुत क्रोधित हुए, तुरंत अपने भाई हारून अलैहिस्सलाम की ख़बर लेने लगे कि इतना बड़ा पाप हुआ लेकिन तुम कहाँ थे। तुमने रोका क्यों नहीं। हारून अलैहिस्सलाम ने सच सच बता दिया कि मैंने इन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हों ने मेरी एक न सुनी और “सामरी” के बहकावे में आ गए। तब मूसा अलैहिस्सलाम ने “सामरी” को डांट पिलाई और तुरंत वहाँ से निकाल भगाया। और गाय की उस मूर्ति को जला कर उसकी राख समुद्र में फेंक दिया। (कुरआन 20: 85 – 98)
सूरः आराफ में अल्लाह ने उनकी बुद्धि को ललकारते हुए कहाः "क्या उन्होंने देखा नहीं कि वह न तो उनसे बातें करता है और न उन्हें कोई रास्ता दिखाता है? " ( क़ुरआनः7:148) फिर उनकी पूजा क्यों कर हो सकती है। 
गाय की पूजा कब से होती आ रही है इसका कोई इतिहास नहीं परन्तु इतना अवश्य जान लें कि पुराने मिस्र के गैर-मुस्लिम निवासी इसकी पूजा करते रहे हैं और फिर भारत में शताब्दियों से गाय की पूजा होती आ रही है। परन्तु जब हम बौद्धिक दृष्टि से गौ-पूजा का विश्लेषण करते हैं तो पता पचला है कि यह मात्र अंधविश्वास का परिणाम है वरना गाय अन्य पशुओं के समान एक पशु है।

यह कड़वी सच्चाई है कि मनुष्य धार्मिक मूल्यों की ओर बिना सोचे समझे आकर्षित हो जाता है, धार्मकि प्रथाओं और रीति रेवाजों का बौद्धिक विश्लेषण नहीं करता और यह समझता है कि धार्मिक मूल्य विचार योग्य नहीं होते। चाहे वे बुद्धि और विवेक के खिलाफ ही क्यों न हों। एक व्यक्ति अपने बाल्यावस्था से माता पिता को जो काम करते हुए देखता आता है उसके विरोद्ध कोई बात सुनना नहीं चाहता। ऐसी बहुत सारी धार्मकि प्रथायें हमारे समाज में प्रचलित हैं जिन पर हम इस कारण अमल कर रहे हैं कि हमारे पूर्वज एक ज़माना से ऐसा करते आ रहे हैं। उन्हीं प्रथाओं में से एक प्रथा गौ-पूजा है। कोई व्यक्ति यह सोचने की चेष्टा नहीं करता कि गौ-पूजा क्यों की जाती है और क्या वास्तव में एक पशु पूजा योग्य हो सकता है।
अंत में मैं कुछ शब्द एक हिन्दु भाई से लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूं जो उसने गौ-पूजा के सम्बंध में लिखी हैः 
" मैं उस गाय को माता कैसे कह दूं जिसका जन्म मेरी आँखोँ के सामने हुआ। क्या माँ का जन्म बेटे के सामने होता है? अगर गाय माँ है तो नाक में नकेल क्योँ डालते हैँ? गाय माँ है तो खुंटे मे क्योँ बांधते हैं? अपनी माँ को खुंटे मे बांधना कौनसा संस्कार है? गाय को डंडे क्योँ मारते हैं? गाय अगर माँ है तो आपकी माँ उसकी बहन लगेगी और गाय का बेटा आपका भाई लगेगा लेकिन यहाँ तो सब माँ हीँ कहते हैँ। भैँस और दूसरे दुध देने वाले जानवर माँ क्योँ नही जब इनसान में काले गोरे का भेद नहीं तो जानवरो में कयोँ? त्रृगवेद में गाय की बलि का जिक्र क्योँ है? इनसान गाय के प्रजनन हेतु खुद सांढ के पास ले जाता है और तमाशा देखता है तो क्या सांढ बाप है?।"

शनिवार, 3 अगस्त 2019

इस्लाम शांति का धर्म है या हिंसा का?


अरबी भाषा में शांति को अम्न कहते हैं, और अम्न शब्द का प्रयोग क़ुरआन में 48 स्थान पर हुआ है, और अम्न का विपरीत शब्द फसाद है इसकी निंदा में कुरआन की कम से कम 50 आयतें मिलती हैं, उसी प्रकार क़ुरआन में शान्ति के लिए अस्सलाम का शब्द आया है जो अनुमांतः 50 स्थान पर प्रयोग किया गया है। जिसका अभिप्राय यह है कि इस्लाम शांति पर आधारित धर्म है। इस्लाम के शांति और सलामती पर आधारित धर्म होने का प्रमाण उसके नाम से ही विदित है। इस्लाम का अर्थ होता है हुक्म मानना, आत्मसमर्पण (Surrender) एवं आज्ञापालन (Submission)। इसी से सलाम निकला है। जिसका अर्थ शांति एवं सलामती होता है। 
उसी तरह शब्द "ईमान" भी अम्न से बना है, और इस धर्म को मानते वाला मोमिन कहलाता है। अल्लाह तआला का एक गुणात्मक नाम भी अल-मुमिन (निश्चिन्तता प्रदान करने वाला) है। उसी तरह अल्लाह का दूसरा गुणात्मक नाम "अस्सलाम" (सर्वथा सलामती) भी है।
इस्लाम के अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुरआन के अनुसार " सारे संसार के लिए बस एक सर्वथा दयालुता " (अल-अंबियाः 107) हैं, इस्लाम के धार्मिक ग्रन्थ कुरआन का आरंभ ही "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" से होता है, जिसका अर्थ है: "शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु अत्यंत कृपाशील है।". इस्लाम मनुष्य को जिस स्वर्ग की ओर बुलाता है उसका नाम" अस्सलाम" अर्थात् सलामती का केंद्र है। और मुसलमान मुलाकात के समय " अस्सलामु-अलैकुम" के माध्यम से जिस वाक्य का परस्पर आदान-प्रदान करते हैं उस में तीन प्रकार की दुआ है, अल्लाह तुझ से हर प्रकार की बुराई दूर करे, तुझे हर प्रकार की अच्छाइयाँ प्रदान करे और फिर तुम्हारी अच्छाइयों को हमेशगी और स्थायीकरण प्राप्त हो जाए।

इस्लाम की दृष्टि में शांति का क्या महत्व है इसका सही अनुमान उसी समय लगाया जा सकता है जब हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नबी बनाए जाने से पूर्व संसार की क्या स्थिति थी उसे ध्यान में रखें फिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नबी बनाए जाने के बाद स्थितियाँ कैसे परिवर्तित हुईं इन को सामने रखें, आख़िर यह कैसा परिवर्तन था कि खून के प्यासे और जान के शत्रु दिल और जान से गले लग गए, जानों से खेलने वाले जानों के रक्षक बन गए, परदेसियों को लूटने वाले उन पर सब कुछ लुटाने के लिए तैयार हो गए, बच्चियों को ज़िंदा दफन करने वाले बच्चियों की आंखों में आंसू देखना गवारा नहीं करते, अपने स्वार्थ के लिए जीने वाले दूसरों के लिए जीने लगे, तात्पर्य यह कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आने के बाद ऐसा शांतिपूर्ण, संतोषजनक और इत्मीनान बख्श समाज बना जिसका उदाहरण पूरी मानवता पेश करने से आजिज़ है। 
इस्लाम की दृष्टि में मानव जीवन का सम्मान इतना महत्वपूर्ण है कि किसी व्यक्ति की अकारण-हत्या को पूरी मानवता की हत्या सिद्ध किया है। क़ुरआन कहता हैः


مَن قَتَلَ نَفْسًا بِغَيْرِ نَفْسٍ أَوْ فَسَادٍ فِي الْأَرْضِ فَكَأَنَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِيعًا وَمَنْ أَحْيَاهَا فَكَأَنَّمَا أَحْيَا النَّاسَ جَمِيعًا ۚ  سورة المائدة : 32 

"जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली।"
यह है इस्लाम का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट कि एक व्यक्ति की अकारण हत्या इस्लाम की दृष्टि में सम्पूर्ण मानवता की हत्या ठहरती है। और किसी इंसान की जान को बचा लेना मानो सारी मानवता को जान प्रदना करना है। इस्लामी आतंकवाद का हल्ला मचाने वाले ज़रा इस्लाम की इस शिक्षा पर विचार करें, अब हमें कोई बता सकता है कि क्या दुनिया में कोई ऐसा धर्म या नियम है जिसने एक व्यक्ति की हत्या को सारी मानवता की हत्या करार दिया हो? नहीं और कदापि नहीं, तो फिर बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इस्लाम ने मानव जीवन का सम्मान जितने ठोस शब्दों में शिक्षा दी है, इसका उदाहरण दुनिया का किसी कानून में नहीं मिलता।
इस्लाम शांति का इतना इच्छुक है कि वह ग़ैर मुस्लिम जो इस्लामी शासन में अच्छे पड़ोसियों की तरह रहने के पाबंद हों इस्लाम उन्हें भी जान, माल इज़्ज़त की पूरा आज़ादी प्रदान करता है।
सही बुखारी की रिवायत के अनुसार अल्लाह के संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: 

من قتل مُعاهَدًا لم يَرَحْ رائحةَ الجنَّةِ ، وإنَّ ريحَها توجدُ من مسيرةِ أربعين عامًا - صحيح البخاري: 3166 

" जो कोई अनुबंध किये गए ग़ैर मुस्लिम को क़त्ल कर दे, वह स्वर्ग का सुगंध भी न पा सकेगा जब कि उसका सुगंध चालीस वर्ष की गति में आ रहा होगा।"
और क्या आप जानते हैं कि मुसलमान की परिभाषा क्या है? सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत के अनुसार मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमान की परिभाषा करते हुए कहा:

ألا أُخْبِرُكُمْ بالمؤمنينَ ؟ مَنْ أَمِنَهُ الناسُ على أَمْوَالِهمْ و أنْفُسِهمْ ، والمسلمُ مَنْ سَلِمَ الناسُ من لسانِهِ ويَدِه - السلسلة الصحيحة549 

"क्या मैं तुम्हें मोमिन के सम्बन्ध में न बताऊँ ? (मोमिन वह है) जिससे लोग अपने मालों और जानों के प्रति सुरक्षित रहें, और मुसलमान वह है जिसकी ज़ुबान और हाथ से लोग सुरक्षित हों।" ( सहिहाः 549)

ये हैं बहुमूल्य प्रवचन दया के प्रतिक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के। जिन पर उचटती सी दृष्टि डालने से यह बात बिल्कुल निखर कर सामने आ जाती है कि आप की शिक्षाओं का खुलासा शांति ही है, एक मोमिन की शान नहीं कि वह रक्तपात करे और समाज में दंगा मचाए। ईमान और रक्तपात में विरोधाभास है। ईमान और कष्ट पहुंचाने में कोई तालमेल नहीं। दोनों कभी एकत्र नहीं हो सकते।
शांति-दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को शांति कितनी प्रिय थी, उसका व्यावहारिक नमूना देखना हो तो नुबूवत से पहले के जीवन पर भी एक दृष्टि डाल ली जाए। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नबी बनाए जाने से पूर्व शांति और अम्न की बहाली के लिए हल्फुलफ़ुज़ूल नामक एक संगठन की स्थापना की जिसमें बनू हाशिम, बनू मुत्तलिब, बनू असद, बनू ज़ुहरा और बनू तमीम को शामिल किया। अतः आप की कोशिश से संगठन के सदस्यों ने इन बातों पर सहमति जताई कि "हम देश से अशांति को दूर करेंगे, हम यात्रियों की रक्षा करेंगे, हम गरीबों की सहायता करते रहेंगे, हम शक्तिशाली को अधीन पर जुल्म करने से रोका करेंगे।" इस प्रकार आपकी दूरदर्शिता से समाज में शांति स्थापित हुई और लोगों के जान माल और इज़्ज़त की सुरक्षा होने लगी।
फिर एक समय आया कि आप को नुबूवत से सम्मानित किया गया, और आप नुबूवत के दायित्वों में लग गए, इधर आतंकियों का आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया तो अल्लाह की अनुमति से मदीना की ओर हिजरत की। यहा आकर आप ने शांति की स्थापना हेतु बहुत प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप औस और ज़िज़रज का लंबा गृहयुद्ध समाप्त हुआ, भाईचारगी का वातावरण बना, सब परस्पर सहमत हो गए, यहां पर आप ने शांति के लिए समझौते भी किए, अनुबंध के प्रावधानों पर मदीने के सभी निवासियों के हस्ताक्षर लिए गए, उसके बाद सफर करके आस पास के क़बीलों को भी इस समझौते में शामिल किया। उद्देश्य मात्र यह था कि समाज में शांति बनी रहे।
फिर मदीना में बसने के बाद बहुदेववादियों के साथ जो युद्ध हुए उनका उद्देश्य भी स्थाई अम्न की स्थापना था, जिनका स्लोगन था “इस्लाम अम्न का प्रतिक धर्म है, इस्लाम अल्लाह का दीन और अम्न का संदेश है, अम्न की स्थापना के लिए ही आप हुदैबिया की संधि के लिए सहमत हुए, यहाँ तक कि वह दिन भी आया कि दस हज़ार की संख्या में मुसलमान सैनिक मक्का में दाख़िल हुए, आज शांति की पहचान हो रही थी, विश्वव्यापी अम्न का नींव डाला जा रहा था, क्या इंसानियत इस महान व्यक्ति की मिसाल पेश कर सकती है कि जिन को निरंतर 21 वर्ष तक कष्ट पहुंचाया गया था, आज अपने शत्रुओं पर विजय पाने के बाद उन्हीं को अम्न का परवाना बांट रहा है। अल्लाह! अल्लाह! क़ुरबान जाइए आप पर और दुश्मनों के हित में आपकी क्षमा पर आपकी घोषणा होती है:

لاتثریب علیکم الیوم اذھبوا وأنتم الطلقاء - ضعفه الألباني في الضعيفة 3/ 307 

"तुम्हारी आज कोई पकड़ नहीं की जाएगी, जाओ तम सब मुक्त हो"।

नम्बर बोलते हैं:
लेकिन इतिहास की कितनी बड़ी विडम्बना है कि जिनके हाथ खून से रंगे हुए हैं वही आज शान्ति के प्रचारक बने हुए हैं और जिन्हों ने मानवता बल्कि सृष्टि के हित के लिए काम किया उनका सम्बन्ध आतंक से जोड़ा जा रहा है और इतिहास को तोड़ मड़ोर कर उन्हें खलनायक सिद्ध किया जा रहा है। देखिए कैसे नम्बर बोलते हैं:
 प्रथम विश्व युद्ध में दो करोड़ आदमी मारे गए और दो करोड़ घायल हुए।
 द्वितीय विश्व युद्ध में छ करोड़ मनुष्य युद्ध और दो करोड़ बीमारियों और भूख से मारे गए।
 सलीबी धर्मयुद्ध में लगभग ढाई करोड़ मनुष्यों की हत्या की गई।
 महान सिकंदर, जो ग्रीस का ईसाई शासक था उसने लगभग दस लाख से अधिक मनुष्यों की हत्या की।
 चंगेज खां कोई मुसलमान नहीं था जिसने चार करोड़ इंसानों का नरसंहार किया।
 हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने वाला कोई मुसलमान नहीं था जिसके परिणाम में 88 हजार लोग मारे गए और सत्तर हजार लोग घायल हुए।
 स्टालिन कोई मुसलमान नहीं था जिसके शासनकाल में 6 करोड़ लोगों को मार डाला गया।
 लेनिन कोई मुसलमान नहीं था जिसके शासनकाल में दो करोड़ इंसानों का नरसंहार किया गया।
 नेपोलियन कोई मुसलमान नहीं था जिसके शासनकाल में पचास लाख लोग मारे गए।
 बोसीनिया में ईसाइयों ने एक लाख मुसलमानों को मार डाला, दो लाख को निर्वासित और बीस हजार से अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार किया।
 इन दिनों इस्राएल को देखें जो अपने वजूद में आने से अब तक 51 लाख फिलिस्तीनियों को शहीद कर चुका है, शाम में बशश्शार को देखें जो अब तक पांच लाख मुसलमानों को शहीद कर चुका है। 
जबकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दस वर्षीय मदनी जीवन में पेश आने वाले सात प्रसिद्ध युद्ध में दुश्मनों के मृतकों की संख्या 286 थी। फिर भी आरोप लगाया जाता है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला। 
सारांश यह है कि इस्लाम अम्न और शांति का व्यापक और सम्पूर्ण संदेश है, जो एसे समाज का गठन करता है जिसके निवासी अम्नपसंद हों और शान्ति के रक्षक भी हों, मुस्लिम क़ौम हर युग में और हर स्थान पर अम्नपसंद होती है, शांति की स्थापना के लिए जीती है और उसी के लिए मरती है, इस्लाम में और उसके मानने वालों में आतंकवाद नहीं आ सकता और अगर आ जाए तो उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

ट्विट्स संग्रह (1)



1- मुसलमान वह समुदाय है जिसने हर ज़माने में नफरत का जवाब प्रेम से दिया है। पूरी इंसानी तारीख़ इस पर गवाह है। इस लिए नफरत का जवाब हमेशा मोहब्बत से दीजिए आपका दुश्मन दोस्त बन जायेगा। कुरआन कहता है:

" तुम (बुरे आचरण की बुराई को) अच्छे से अच्छे आचरण द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति तुम्हारे और जिसके बीच दुश्मनी थी, वह जैसे कोई जिगरी दोस्त बन गया है।" ( सूरः फुस्सिलतः 34)
एक सामान्य व्यक्ति मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र जीवनी का अध्ययन करके भली भांति इस तथ्य का अनुभव कर सकता है कि जिन लोगों ने विश्व नायक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को 21 वर्ष तक अपना दुश्मन समझा था जब आप को पहचान गए तो बड़े लज्जित हुए, आपके अनुयाई बन गए और आपके संदेश का दुनिया वालों के सामने परिचय कराया।


2- सत्य और असत्य के बीच युद्ध कोई नई बात नहीं, हर युग में असत्य ने सत्य को दबाने की कोशिश की है परन्तु कभी उसकी जीत न हुई, इस जंग में सत्य को कभी चोटें खाना पड़ी हैं, कष्ट झेलना पड़ा है पर सत्य हारा नहीं हमेशा ग़लिब रहा है और महाप्रलय के दिन तक ग़ालिब रहेगा। इस सच्चाई पर सम्पूर्ण मानव इतिहास साक्षी है। क़ुरआन ने कहाः

" कह दो, सत्य आ गया और असत्य मिट गया; असत्य तो मिट जाने वाला ही होता है।" ( सूरः अलइस्राः 81) " फिर जो झाग है वह तो सूख कर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचाने वाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है।" (सूरः अल-रादः17)


3- ज़ुल्म चाहे किसी पर हो घोर पाप है, ज़ालिम देर या सवेर ज़ुल्म का परिणाम पा कर रहता है, इस लिए अपनी ताक़त, अपने धन, अपने पद और अपनी जाति के नशे में चूर हो कर किसी पर ज़ुल्म मत कीजिए और न ज़ालिम का साथ दीजिए कि ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है। विश्व नायक ने कहाः 
"मज़्लूम की शाप चिंगारियों के समान आसमान पर जाती है।" ( सहीहुल जामेः118) 

आपने यह भी कहाः 
मज़लूम के शाप से डरते रहना, कि इसके और अल्लाह के बीच कोई पर्दा नहीं। (सही बुख़ारीः 2448)


सोमवार, 8 जुलाई 2019

आओ क़ुरआन की ओर

आज इस धरती पर ऊपर वाले की अगर कोई सुरक्षित और सत्य वाणी पाई जाती है तो वह क़ुरआन है, जो मुक्ति-मार्ग है, जिसे ऊपर वाले ने केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि सारे इंसानों के मार्गदर्शन हेतु उतारा है। यह बात 100% सही है, इसमें कोई संदेह नहीं, डाऊट नहीं, शक नहीं, लेकिन सवाल यह है कि हम मुसलमान जिनके पास पवित्र क़ुरआन है, क्या हमने इसे पहचाना है ? सच्ची बात यह है कि हम मुसलमान ही क़ुरआन के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं, आज दुनिया की सारी किताबों में सब से मज़्लूम किताब क़ुरआन है। 
क़ुरआन ज़ींदगी गुज़ारने का सही तरीक़ा है, हिदायत है, समाधान है, औषधि है , इस लिए आइए क़ुरआन से अपना सम्बंध मज़बूत कीजिए क़ुरआन पढ़िए, सुनिए, सीखिए, उसका अर्थ समझिए, उसकी शिक्षायें अपने व्यवहार में लाइए ताकि आपकी जींदगी बदले, आपका परिवार बदले, आपका समाज बदले और दुनिया के इंसानों को पता चले कि वास्तव में क़ुरआन मानव समस्याओं का समाधान और सुखी जीवन प्रदान करने वाला स्रोत है।