रविवार, 18 अगस्त 2019

इस्लाम को जो जानता है उसका हो कर रह जाता है


इस्लाम और मुसलमानों का विरोद्ध हर युग में इस्लाम को न जानने के कारण ही हुआ है। मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पवित्र जीवनी और पूरा इस्लामी इतिहास इस हक़ीक़त पर गवाह है।
जिस समय मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लोगों को एक अल्लाह की ओर बोलाना शुरू किया पूरी दुनिया उनके खेलाफ हो गई। उनको पागल और दीवाना कहा, उनके रास्ते में कांटे बिछाए, उनका और उनके अनुयायियों का बहिष्कार किया, उनको अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। मक्का छोड़ कर मदीना में शरण ली, फिर भी ज़ालिमों ने चैन से रहने न दिया और हर साल उनसे युद्ध करते रहे, अहज़ाब के युद्ध में इस्लाम के सारे शत्रु मुसलमानों के खेलाफ एकजुट हो गए थे, सभी का नारा था कि इस्लाम और मुसलमानों को समाप्त कर दिया जाए, लेकिन फिर भी इस्लाम विरोधी ताकतें अपनी अशुद्ध महत्वाकांक्षाओं में सफल नहीं हुईं। यह टकराव 21 वर्षों तक चलता रहा। हैरानी की बात यह है कि 21 वर्षों की लंबी अवधि के बाद इन्हीं ख़ून के प्यासों को जब इस्लाम का सही ज्ञान हुआ तो उन्हों ने इस्लाम की छाया में शरण ली और इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए अपनी सारी ऊर्जा समर्पित करने लगे।
फिर वह दिन भी आया जब 656 हिजरी में तातारियों ने बग़दाद पर हमला किया तो इस्लामी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी थी। मुसलमानों के ख़ून से दज्ला का पानी लाल हो गया था, 18 लाख मुसलमानों को मौत के घात उतार दिया गया था, उस समय मुसलमान ऐसे भयभीत हो चुके थे कि जब कोई तातारी महिला किसी मुसलमान को रास्ते से गुजरता हुआ देखती तो उससे कहती थीः "यहीं इंतजार करो मैं तलवार लेकर आती हूँ।" वह सहमा हुआ खड़ा रहता यहाँ तक कि तातारी महिला तलवार लेकर आती और वह बेरहमी से उसका सिर काट देती थी।" ऐसी परीस्थिति में मुसलमान पहुंच चुके थे, लेकिन इतिहास साक्षी है कि वही विजेता जब मुसलमानों के क़रीब रह कर इस्लाम को जानते हैं तो इस्लाम को गले लगा लेते हैं और अपने किए पर पछताते हैं।
इस लिए आज ज़रूरत है कि दुनिया के सामने इस्लाम की सही शक्ल पेश की जाए।

एक मुसलमान को 100% यक़ीन होना चाहिए कि भविष्य इस्लाम का होगा कि यही धर्म सच्चा, सही और सुरक्षित धर्म है और बाक़ी सारे धर्म इंसानों के बनाए हुए फल्सफे हैं। इस्लाम विशेष स्थान और विशेष युग के लिए नहीं बल्कि हर युग और सारी मानव जाति के लिए है, इसकी शिक्षाएं दीन और दुनिया की सभी जरूरतों को अपने अंदर समेटे हुई हैं, इंसान ने जीने के जो जो दर्शन बनाए समय गुज़रने के साथ वे अपनी मौत मर गए, लेकिन इस्लाम ने जिन सच्चाइयों का आह्वान किया है सालों साल गुज़रने के बावजूद यह अटूट है। इस्लामी नियम के सामने इंसानों के बनाए हुए क़ानून दम तोड़ चुके हैं, साम्यवाद को निष्कासित कर दिया गया है, पूंजीवादी व्यवस्था की खामियों से मानवता तबाही की शिकार है, मानव रचित नियम मानवीय समस्याओं को हल करने में असमर्थ लगते हैं, अब दुनिया ऐसे मसीहा की तलाश में है जो उसे इस नरकीय प्रणाली से बाहर निकाले और यह प्रणाली इस्लामी जीवन व्यवस्था है।

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