मंगलवार, 18 नवंबर 2008

क्या आप ईश्वर को मानते है ?

हाँ ईश्वर है और 100 प्रतिशत है, यदि हम कहें कि ईश्वर नहीं है तो हमें स्वयं को कहना होगा कि हम भी नहीं हैं, यदि हम हैं तो हमारा कोई बनाने वाला अवश्य होना चाहिए क्योंकि कोई भी चीज़ बिना बनाए नहीं बनती,और न ही वह स्वयं बनती है
(1) मैं अभी कम्प्यूटर पर लिख रहा हूं, यदि मैं कहूं कि कम्प्यूटर को किसी ने नहीं बनाया, स्वयं बन कर हमारे सामने आ गया है तो क्या आप हमारी बात पर विश्वास कर लेगें?।
(2) उसी प्रकार यदि मैं आपसे कहूं कि एक कम्पनी है जिसका न कोई मालिक है, न कोई इन्जीनियर, न मिस्त्री । सारी पम्पनी आप से आप बन गई, सारी मशीनें स्वंय बन गईं, खूद सारे पूर्ज़े अपनी अपनी जगह लग गए और स्वयं ही अजीब अजीब चीज़े बन बन कर निकल रही हैं, सच बताईए यदि में यह बात आप से कहूं तो क्या आप मेरी बात पर विश्वास करेंगे ? क्यों ? इस लिए कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि बिना बनाए कोई कम्पनी बन जाए या स्वयं कम्प्यूटर तैयार हो कर आ जाए।
जब बात यह ठहरी तो अब हमें उत्तर दीजिए कि क्या यह संसार तथा धरती और आकाश का यह ज़बरदस्त कारख़ाना जो आपके सामने चल रहा है, जिसमें चाँद, सूरज और बड़े बड़े नक्षत्र घड़ी के पुर्ज़ों के समान चल रहे हैं क्या यह बिना बनाए बन गए? यही प्रमाण जब एक ग्रामीण के हृदय में पैदा बैठा तो उसके तुरन्त कहा " पैरो के निशानात चलने वाले को बताते हैं तो यह सय्यारों वाला आकाश और यह विभिन्न चीज़ों को समेटी धरती क्या अपने पैदा करने वाले के लिए प्रमाण नहीं?"
(3) स्वयं हम तुच्छ वीर्य थे, नौ महीना की अवधि में विभिन्न परिस्थितियों से गुज़र कर अत्यंत तंग स्थान से निकले,हमारे लिए माँ के स्तन में दूध उत्पन्न हो गया,हम आग और पानी में अन्तर नहीं कर सकते थे कुछ समय के बाद हमें बुद्धि ज्ञान प्रदान किया गया, हमारा फिंगर प्रिंट सब से अलग अलग रखा गया इन सब परिस्थितियों में माँ का भी हस्तक्षेप न रहा, क्योंकि हर माँ की इच्छा होती है कि होने वाला बच्चा गोरा हो लेकिन काला हो जाता है, लड़का हो लेकिन लड़की हो जाती है। अब सोचिए कि जब कोई चीज़ बिना बनाए नहीं बना करती जैसा कि आप भी मान रहे हैं तथा यह भी स्पष्ट हो गया कि उस में माँ का भी हस्तक्षेप नहीं होता तो अब सोचें कि क्या हम बिना बनाए बन गए ???????
कभी हम संकट में फंसते हैं तो हमारा सर प्राकृतिक रूप में ऊपर की ओर उठने लगता है शायद आपको भी इसका अनुभव होगा—ऐसा क्यों होता है ? इसलिए कि ईश्वर की कल्पना मानव के हृदय में पाई जाती है, पर अधिकांश लोग अपने ईश्वर को पहचान नहीं रहे हैं।
फलसफी बास्काल कहता है "ईश्वर को छोड़ कर कोई चीज़ हमारी प्यास बुझा नहीं सकती" शातोबरीन लिखता है "ईश्वर के इनकार की साहस मानव के अतिरिक्त किसी ने नहीं की"
लायतीह यहाँ तक कहता है कि "जो शब्द सृष्टा का इनकार करे उसके प्रयोग करने वाले के होंट आग में जलाए जाने योग्य हैं"

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