शनिवार, 8 मार्च 2014

नारी और इस्लाम


वेनगताचिल्लम अडियार
वरिष्ठ तमिल लेखक; न्यूज़ एडीटर: दैनिक ‘मुरासोली’
120 उपन्यासों, 13 पुस्तकों, 13 ड्रामों के लेखक

‘‘औरत के अधिकारों से अनभिज्ञ अरब समाज में प्यारे नबी (सल्ल॰) ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया। औरत का जायदाद और सम्पत्ति में कोई हक़ न था, आप (सल्ल॰) ने विरासत में उसका हक़ नियत किया। औरत के हक़ और अधिकार बताने के लिए क़ुरआन में निर्देश उतारे गए।
माँ-बाप और अन्य रिश्तेदारों की जायदाद में औरतों को भी वारिस घोषित किया गया। आज सभ्यता का राग अलापने वाले कई देशों में औरत को न जायदाद का हक़ है न वोट देने का। इंग्लिस्तान में औरत को वोट का अधिकार 1928 ई॰ में पहली बार दिया गया। भारतीय समाज में औरत को जायदाद का हक़ पिछले दिनों में हासिल हुआ।
लेकिन हम देखते हैं कि आज से चौदह सौ वर्ष पूर्व ही ये सारे हक़ और अधिकार नबी (सल्ल॰) ने औरतों को प्रदान किए। कितने बड़े उपकारकर्ता हैं आप।
आप (सल्ल॰) की शिक्षाओं में औरतों के हक़ पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है। आप (सल्ल॰) ने ताकीद की कि लोग कर्तव्य से ग़ाफ़िल न हों और न्यायसंगत रूप से औरतों के हक़ अदा करते रहें। आप (सल्ल॰) ने यह भी नसीहत की है कि औरत को मारा-पीटा न जाए।
औरत के साथ कैसा बर्ताव किया जाए, इस संबंध में नबी (सल्ल॰) की बातों का अवलोकन कीजिए:
1. अपनी पत्नी को मारने वाला अच्छे आचरण का नहीं है।
2. तुममें से सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी से अच्छा सुलूक करे।
3. औरतों के साथ अच्छे तरीक़े से पेश आने का ख़ुदा हुक्म देता है, क्योंकि वे तुम्हारी माँ, बहन और बेटियाँ हैं।
4. माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
5. कोई मुसलमान अपनी पत्नी से नफ़रत न करे। अगर उसकी कोई एक आदत बुरी है तो उसकी दूसरी अच्छी आदत को देखकर मर्द को ख़ुश होना चाहिए।
6. अपनी पत्नी के साथ दासी जैसा व्यवहार न करो। उसको मारो भी मत।
7. जब तुम खाओ तो अपनी पत्नी को भी खिलाओ। जब तुम पहनो तो अपनी पत्नी को भी पहनाओ।
8. पत्नी को ताने मत दो। चेहरे पर न मारो। उसका दिल न दुखाओ। उसको छोड़कर न चले जाओ।
9. पत्नी अपने पति के स्थान पर समस्त अधिकारों की मालिक है।
10. अपनी पत्नियों के साथ जो अच्छी तरह बर्ताव करेंगे, वही तुम में सबसे बेहतर हैं।
मर्द को किसी भी समय अपनी काम-तृष्णा की ज़रूरत पेश आ सकती है। इसलिए कि उसे क़ुदरत ने हर हाल में हमेशा सहवास के योग्य बनाया है जबकि औरत का मामला इससे भिन्न है।
माहवारी के दिनों में, गर्भावस्था में (नौ-दस माह), प्रसव के बाद के कुछ माह औरत इस योग्य नहीं होती कि उसके साथ उसका पति संभोग कर सके।
सारे ही मर्दों से यह आशा सही न होगी कि वे बहुत ही संयम और नियंत्रण से काम लेंगे और जब तक उनकी पत्नियाँ इस योग्य नहीं हो जातीं कि वे उनके पास जाएँ, वे काम इच्छा को नियंत्रित रखेंगे। मर्द जायज़ तरीक़े से अपनी ज़रूरत पूरी कर सके, ज़रूरी है कि इसके लिए राहें खोली जाएँ और ऐसी तंगी न रखी जाए कि वह हराम रास्तों पर चलने पर विवश हो। पत्नी तो उसकी एक हो, आशना औरतों की कोई क़ैद न रहे। इससे समाज में जो गन्दगी फैलेगी और जिस तरह आचरण और चरित्रा ख़राब होंगे इसका अनुमान लगाना आपके लिए कुछ मुश्किल नहीं है।
व्यभिचार और बदकारी को हराम ठहराकर बहुस्त्रीवाद की क़ानूनी इजाज़त देने वाला बुद्धिसंगत दीन इस्लाम है।
एक से अधिक शादियों की मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा है और इस तरह हमारी दृष्टि में इस्लाम बिल्कुल एक वैज्ञानिक धर्म साबित होता है। यह एक हक़ीक़त है, जिस पर मेरा दृढ़ और अटल विश्वास है। —‘इस्लाम माय फ़सिनेशन’ एम॰एम॰आई॰ पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, 2007

(श्री वेनगाताचिल्लम अडियार ने बाद में (6 जून 1987 को) इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। और ‘अब्दुल्लाह अडियार’ नाम रख लिया था।) 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

aaj se hazaron lakhon saal pehle hamare shri krishan ne yawano ke haathon barbaad hui 16100 auraton ke punaruthan ke liye unke saath bhavnatmak vivah kiya tha matlab apne naam ke mangalsutra diye the. Baad main dwarka aane par jo bhi aurat vivah karna chahti thi uska vivah karwayatha aur kade nirdesh diye the ki unka koi apmaan ka kare, varna woh aurat to dwarka main hi rahegi, parantu doshi aadmi ko desh nikala de diya jaayega