रविवार, 26 जनवरी 2014

राष्ट्र से प्रेम और इस्लाम



अपनी मातृभूमि से प्रेम, स्नह और मुहब्बत एक ऐसी प्राकृतिक भावना है जो हर इंसान बल्कि हर ज़ीव में पाई जाती है। जिस धरती पर मनुष्य पैदा होता है, अपने जीवन के रात और दिन बिताता है, जहां उसके रिश्तेदार सम्बन्धी होते हैं,वह धरती उसका अपना घर कहलाती है, वहाँ की गलयों, वहाँ के दरो-दीवार, वहां के पहाड़,घाटियां, चट्टानें,जल और हवाएं नदी नाले, खेत खलयान तात्पर्य यह कि वहां की एक एक चीज़ से उसकी यादें जुड़ी होती हैं। जहां उसक दोस्तों, माता पिता, दादा दादी का प्यार पाया जाता है। प्रवासी होने के नाते हमें इसका सही अनुभव है। किसी को यदि भारत के किसी कोने में कमाने के लिए जाना होता है तो उसका इतना दिल नहीं फटता जितना एक प्रवासी का फटता है जब वह विदेश जा रहा होता है। यह एक प्राकृतिक भावना है, इसी लिए जो लोग देश से विश्वासघात करते हैं उन्हें कभी अच्छे शब्दों से याद नहीं किया जाता बल्कि दिल में उनके खिलाफ हमेशा नफरत की भावनाएं पैदा होती हैं। उसके विपरीत जो लोग देश के लिए बलिदान देते हैं उसके जाने के बाद भी लोगों के हृदय में वह जीवित होते हैं। 
मातृभूमि से प्रेम की इस प्राकृतिक भावना का इस्लाम न केवल सम्मान करता है अपितु ऐसा शान्तिपूण वातावरण प्रदान करता है जिस में रह कर मानव अपनी मातृभूमि की भलीभांति सेवा कर सके। 
 "हे मक्का तू कितनी पवित्र धरती है... कितनी प्यारी है मेरी दृष्टि में....यदि मेरे समुदाय ने मुझे यहां से न निकाला होता तो मैं कदापि किसी अन्य स्थान की ओर प्रस्थान कदापि न करता।"  (तिर्मिज़ी)
यह वाक्य उस महान व्यक्ति की पवित्र ज़बान से निकला हुआ है जिन्हें हम मुहम्मद सल्ल. कहते है। और उस सयम निकला था जबकि अपनी मातृभूमि से उन्हें निकाला जा रहा था। मुहम्मद सल्ल. मक्का से न निकलते अगर निकाला न जाता, आपने हर प्रकार की यातनाएं झेलीं पर अपनी मातृभूमि में रहना पसंद किया। परन्तु जब पानी सर से ऊंचा हो गया तो न चाहते हुए भी मक्का से निकलने के लिए तैयार हो गए, जब वहाँ से प्रस्थान कर रहे थे तो विदाई के समय दिल पर उदासी छाई हुई थी। और ज़बान पर उपर्युक्त वाक्य जारी था। जब मदीना आए तो मदीना में ठहरने के बाद मदीना के लिए इन शब्दों में प्रार्थना कीः
"  हे अल्लाह हमारे दिल में मदीना से वैसे ही प्रेम डाल दे जैसे मक्का से है बल्कि उस से भी अधिक। " (बुख़ारी, मुस्लिम)  
मातृभूमि से प्रेम केवल भावनाओं तक सीमित नहीं होता अपितु हमारी कथनी और करनी में भी आ जाना चाहिए इस में सब से पहले अपनी मातृभूमि की शान्ति और सलामती के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए क्योंकि दुआ में दिल की सच्चाई का प्रदर्शन होता है। इस में  झूठ, अतिशयोक्ति, या पाखंड नहीं होता और अल्लाह के साथ सीधा संबंध होता हैः 
अल्लाह के रसूल ने मदीना के लिए दुआ कीः हे अल्लाह मक्का से मदीना में दो गुनी बर्कत प्रदान कर। (बुखारी, मुस्लिम)
मक्का के सम्बन्ध में स्वयं इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने प्रार्थना की थी कि हे अल्लाह इस धरती को शान्ति केन्द्र बना और भोजन हेतु यहाँ के निवासियों को विभिन्न प्रकार के फल प्रदान कर। (अल-बकरः 126)
ईब्राहीम अलै0 ने मक्का में अम्न और रिज़्क़ में वृद्धि के लिए दुआ की जो जीवन सामग्रियों में महत्वपूर्ण भुमिका अदा करता है। यदि वह दोनों या उनमें से एक खो जाए तो शान्ति भंग जाती है।
इस्लाम ने देश की शान्ति को भंग करने वालों के लिए सख्त से सख्त सज़ा सुनाई है मात्र इस लिए कि किसी को राष्ट्र में अशान्ति फैलाने का साहस न हो सकेः क़ुरआन ने कहाः 
जो लोग धरती में फसाद मचाते हैं (अर्थात् आतंक, बलात्कार, हत्या आदि) उनकी सज़ा यह है कि उनकी हत्या कर दी जाए, या उनको फ़ांसी पर लटका दिया जाए या उनका दायां हाथ और बायां पैर या बायां हाथ और दायां पैर काट दिया जाए, अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाए। (माइदा 33)

देशवासियों में प्रेम और इस्लामः
 इस्लाम हर उस काम का आदेश देता है जिस से राष्ट्र के लोगों के बीच सम्बन्ध मजबूत रहे। इस्लाम ने मातृभूमि से प्यार के अंतर्गत ही रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है। इसे बहुत बड़ी नेकी बताया गया है और उसे नष्ट करना फसाद का कारण सिद्ध किया है। सम्बन्ध बनाने की सीमा इतनी विशाल है कि हर व्यक्ति के साथ अच्छे व्यवहार का आदेश दिया गया। इसी लिए मुहम्मद सल्ल. ने फरमायाः तुम में का एक व्यक्ति उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक अपने भाई के लिए वही न पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हैं। बल्कि इस्लाम ने विश्व बंधुत्व की कल्पना देते हुए सारे मानव को एक ही माता पिता की संतान सिद्ध किया और उनके बीच हर प्रकार के भेद भाव का खंडन करते हुए फरमाया कि ईश्वर के निकट सब से बड़ा व्यक्ति वह है जो अल्लाह का सब से अधिक भय रखने वाला हो। इसी लिए मुहम्मद सल्ल. ने आदेश दिया कि
" जिस किसी ने किसी अम्न से रहने वाले गैर-मुस्लिम पर अत्याचार किया, या उसके अधिकार में किसी प्रकार की कमी की, या उसकी शक्ति से अधिक उस पर काम का बोझ डाला, या उसकी इच्छा के बिना उसकी कोई चीज़ ले ली तो में कल क्यामक के दिन उसका विरोधी हुंगा।
बल्कि इस्लाम ने पशु पक्षी, पौधे, और पत्थर सब के साथ अच्छे व्यवहार का आदेश दियाः आपने ने फरमाया कि यदि क़यामत होने होने को हो और तुम्हारे हाथ में पैधा हो तो उसे लगो दो कि इसमें भी पुण्य है।

स्वतंत्रता अभियान और मुसलमानः
भारत का इतिहास साक्षी है कि जब तन के गोरे और मन के काले भारत में कारोबार के नाम पर आए तो सर्वप्रथन इस्लामी विद्वानों ने अंग्रेज़ों के विरोद्ध में युद्ध करने की घोषणा की थी। सब से पहले शाह अब्दुल अज़ीज़ दिहलवी ने अंग्रेज़ों से युद्ध का फतवा दिया और फिर इस सोच को भारत के कोने कोने में फैलाया, 1857 से पहले मुसलमान ही इस अभियान में शरीक थे, बाद में मुस्लिम विद्वानों ने ग़ैरमुस्लिम भाइयों तक भी अपनी भावनाएं पहुंचाईं यहां तक कि स्वतंत्रता का अभियान देश के कोने कोने में चलने लगा। अंततः 1947 में हमारा भारत स्वतंत्र हो गा। मुसलमानों ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए जो बलिदान दिया है वह भारत के इतिहास का एक रौशन बाब है।
चप्पा चप्पा बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने हैं।
आज भी हमें अपने देश से प्रेम है और उसके लिए हम कट मरने तब की भावना रखते हैं। परन्तु भारत में साम्प्रदाइकता का बुरा हो कि आज़ादी के बाद ही कुछ लोग ऐसे पैदा हुए जिन्होंने अंग्रेज़ों की पालीसी " फूट डोलो हुकूमत करो" को अपनाते हुए देश में घृणा फैलाने की कोशिश की। मुसलमानों को हमेशा देश में सौतेला सिद्ध करने का प्रयास करते रहे।

हम देश प्रेमी हैं देश भक्त नहीं: 
कुछ सज्जन पूछते हैं कि आप अपने धर्म को पहले मानते हैं या अपने देश को... ऐसे लोगों से हम कहना चाहेंगे कि आप हमसे मानो यह पूछ रहे हैं कि तुम अपने बाप का बेटा हो या मां का। इसका उत्तर यह है कि मैं अपने बाप का भी बेटा हूं और मां का भी। मुसलमान होने के नाते मेरा धर्म इस्लाम है और भारतीय होने के नाते मेरा देश भारत है.. इस लिए किसी के देश प्रेमी होने पर संदेह करना स्वयं को देश द्रोंही सिद्ध करना है। हम अपने देश से इतना प्यार करते हैं कि उसके लिए जान देने के लिए भी तैयार हैं परन्तु इसके बावजूद हम देश प्रेमी ही रहेंगे देश भक्त नहीं हो सकते। क्यों कि भक्ति मात्र एक अल्लाह की होनी चाहिए। भक्ति में उसके साथ अन्य को भागीदार ठहराना वैध नहीं। जिसका राज है उसी का चलना चाहिए, जिस कम्पनी के कर्मचारी हैं उसी का काम करना चाहिए। यह धरती ईश्वर की है इस लिए धरती की पूजा नहीं अपितु धरती के बनाने वाले ईश्वर( अल्लाह) की पूजा होनी चाहिए।  
   
राष्ट्र से प्रेम करने वाला कौनः 
राष्ट्र से प्रेम करने वाला वही हो सकता है जो राष्ट्र हित के लिए काम करे, जो प्रेम और स्नेह का वातावरण बनाए, जो बंधुत्व और भाईचारा को बढ़ावा दे। वह देश प्रेमी नहीं हो सकता जो देश की शान्ति को भंग करे, जो देश की एकता का विरोद्ध करे, जो देश में घृणा फैलाए, जो देश की सम्पत्ति का दुर्उपयोग करे। 
राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्यः 
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर हमें अपना जाइज़ा लेने की ज़रूरत है कि हमने अब तक अपने देश के लिए क्या क्या है। देश की प्रगति में कितना भाग लिया है। जन-कल्याण के लिए क्या क्या है। जाग्रुकता अभियान में किस हद तक भाग लिया है। आज हमारा कर्तव्य बनता है कि भारत की प्रगति हेतु शिक्षा और जन-कल्याण के लिए जो भी भुमिकाएं हो सकती हों अदा करने का वचन दें।   


1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
वन्देमातरम् !
गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ!