शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

टैगोर ने कहा


महाकवि टैगोर के साथ एक बार रेल में यात्रा कर रहे थे मौलाना सय्यद सुलैमान नदवी, इस्लाम के इतिहासकार, इन दोनों महान विद्वानों को एक साथ देख कर किसी व्यक्ति ने यूं प्रश्न कर दिया कि:
" आज इस्लाम इतनी तेज़ी से क्यों न फैल रहा है जितनी तेज़ी से मुहम्मद साहब और उनके बाद के युग में फैला ?"
सय्यद साहिब ने टैगोर से इस प्रश्न का उत्तर देने की प्रार्थना की, तब टैगोर ने बताया कि:
" तब सत्य धर्म की अच्छाइयों और भलाइयों को जानने के लिए लोगों को पुस्तकालयों का रुख़ नहीं करना पड़ता था, वह हर मुसलमान के जीवन ही में मौजूद था।"
अर्थात् शुरू ज़माने में लोग मुसलमानों के व्यवहार को देख कर सच्चे धर्म का पता लगा लेते थे कि जिनके व्यवहार इतने अच्छे होंगे उनका धर्म कितना अच्छा होगा, लेकिन आज लोगों को इस्लाम पुस्तकों में ढूंढने की ज़रूरत पड़ती है और वही इस्लाम की सच्चाई को जानने में सफल होगा जो इस्लाम का अध्ययन करेगा।
क्या हम मुसलमान टैगोर की बात पर ध्यान देंगें ? जी हाँ। आज सब से बड़ी बाधा हमारे देशवासियों के लिए कुछ मुसलमानों के घृणित कर्तव्य हैं। आज वे अपने ही धर्म इस्लाम का इस कारण विरोध कर रहे हैं कि वे कुछ मुसलमानों को उसके अनुसार चलते नहीं देखते।

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