इस्लाम के सम्बन्ध में सब से बड़ा संदेह जो लोगों में पाया जाता हैं यह है कि इस्लाम एक नया धर्म है जिसे सब से पहले मुहम्मद साहिब ने सातवीं शताब्दी में मानव के समक्ष प्रस्तुत किया-
हालांकि यह बात सत्य के बिल्कुल विरोद्ध है, मुहम्मद सल्ल0 अवश्य सातवीं शताब्दी में पैदा हुए परन्तु उन्होंने इस्लाम की स्थापना नहीं किया बल्कि उसी संदेश की ओर लोगों को आमंत्रित किया जो सारे संदेष्टाओं के संदेशों का सार रहा।
ईश्वर ने मानव को पैदा किया तो एसा नहीं है कि उसने उनका मार्गदर्शन न किया जिस प्रकार कोई कम्पनी जब कोई सामान तैयार करती हैं तो उसके प्रयोग का नियम भी बताती है उसी प्रकार ईश्वर ने मानव का संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य ने अवगत करने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें परन्तु सब से अन्त में ईश्वर ने मुहम्मद सल्ल0 को भेजा।
अब आप पूछ सकते हैं कि उन्हों ने किस चीज़ की ओर बुलाया ? तो इसका उत्तर यह है कि उन्होंने मानव को यह ईश्वरीय संदेश पहुंचाया कि
(1) ईश्वर केवल एक है केवल उसी ईश्वर की पूजा होनी चाहिए उसके अतिरिक्त कोई शक्ति लाभ अथवा हान का अधिकार नहीं रखती
(2) सारे मानव एक ही ईश्वर की रचना हैं क्योंकि उनकी रचना एक ही माता पिता से हुई अर्थात आदि पुरुष जिनसको कुछ लोग मनु कहते हैं और सतरोपा कहते हैं तो कुछ लोग आदम और हव्वा, वह प्रथम मनुष्य ने जो धरती पर बसाए गए, उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम अथवा सनातन धर्म कहते हैं ।
(3) मुहम्मद सल्ल0 ने शताब्दियों से मन में बैठी हुई जातिवाद का खण्डन किया जो लोगों के हृदय में बैठ चुका था और प्रत्येक मनुष्य को समान क़रार दिया।
और जब मुहम्मद सल्ल0 ने वही संदेश दिया जो संदेश हर युग में संदेष्टा देते रहे थे।
इस लिए इस्लाम को नया धर्म कहना ग़लत होगा।
फिर यह भी याद रखें कि इस्लाम में 6 बोतों पर विश्वास रखने का आदेश दिया गया है जिस पर सारे मुसलमानों का विश्वास रखना आवश्यक है। उसे हम ईमान के स्तम्भ कहते हैं यदि कोई मुसलमान उनमें से किसी एक का इनकार कर देता है तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा उनमें से एक है ईश्वर के भेजे हुए संदेष्टाओं पर विश्वास करना – अर्थात इस बात पर विश्वास करना कि ईश्वर ने हर युग तथा देश में मानव मार्गदर्शन हेतु संदेष्टाओं को भेजा जिन्होंने मानव को एक ईश्वर की पूजा की ओर बोलाया और मूर्ति जूजा से दूर रखा, पर उनका संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि मानव ने इतनी प्रगति न की थी तथा एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध नहीं था।
जब सातवी शताब्दी में मानव बुद्धि प्रगति कर गई और एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध बढ़ने लगा को ईश्वर ने अलग अलग हर देश में संदेश भेजने के नियम को समाप्त करते हुए विश्वनायक का चयन किया।
वह विश्व नायक कौन हैं इस सम्बन्ध में आप जानना चाहते हैं तो आपको डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय की पुस्तक कल्की अवतार और मुहम्मद सल्ल0 तथा डा0 एम ए श्री वास्तव की पुस्तक ( मुहम्मद सल0 और भारतीय धर्म ग्रन्थ) का अध्ययन करना होगा जिसमें इन महान विद्वानों ने सत्य को स्वीकार करते हुए हिन्दुओं को आमंत्रन दिया है कि हिन्दू धर्म में जिस कल्कि अवतार तथा नराशंस के आने की प्रतीक्षा हो रही है वह सातवीं शताब्दी में आ गए और वही मुहम्मद सल्ल0 हैं ।
अंततः ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा, आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है ।
मुहम्मद सल्ल0 ने कभी यह दावा नहीं किया कि वह कोई नया धर्म लेकर आए हैं, वही इस्लाम जिसकी शिक्षा आदि पुरुष आदम (मनू ) ने दिया था उसी को पूर्ण करने के लिए मुहम्मद सल्ल0 भेजे गए। आज मानव का कल्याण इस्लाम धर्म ही में है क्यों कि इस्लाम उन्हीं का है, क़ुरआन उन्हीं का है तथा मुहम्मद सल्ल0 उन्हीं के लिए आए हैं। लेकिन अज्ञानता का बुरा हो कि लोग आज उन्हीं का विरोद्ध कर रहे हैं जो उनके कल्याण हेतु भेजे गए। मैं इस बात को भी स्वीकार करता हूँ कि ग़लती हमारी हैं कि हम हिन्दू मुस्लिम भारत में शताब्दियों से रह रहे हैं पर हमने सत्य को आप से छुपाए रखा। और ज्ञात है कि यदि इनसान किसी चीज़ की सत्यता को नहीं जानता है तो उसका विरोद्ध करता ही है। अतः आप से निवेदन है कि मेरी बातों पर विशाल हृदय से निष्पक्ष हो कर चिंतन मनन करेंगे। तथा इस्लाम का अध्ययन आरम्भ कर दें।
हालांकि यह बात सत्य के बिल्कुल विरोद्ध है, मुहम्मद सल्ल0 अवश्य सातवीं शताब्दी में पैदा हुए परन्तु उन्होंने इस्लाम की स्थापना नहीं किया बल्कि उसी संदेश की ओर लोगों को आमंत्रित किया जो सारे संदेष्टाओं के संदेशों का सार रहा।
ईश्वर ने मानव को पैदा किया तो एसा नहीं है कि उसने उनका मार्गदर्शन न किया जिस प्रकार कोई कम्पनी जब कोई सामान तैयार करती हैं तो उसके प्रयोग का नियम भी बताती है उसी प्रकार ईश्वर ने मानव का संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य ने अवगत करने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें परन्तु सब से अन्त में ईश्वर ने मुहम्मद सल्ल0 को भेजा।
अब आप पूछ सकते हैं कि उन्हों ने किस चीज़ की ओर बुलाया ? तो इसका उत्तर यह है कि उन्होंने मानव को यह ईश्वरीय संदेश पहुंचाया कि
(1) ईश्वर केवल एक है केवल उसी ईश्वर की पूजा होनी चाहिए उसके अतिरिक्त कोई शक्ति लाभ अथवा हान का अधिकार नहीं रखती
(2) सारे मानव एक ही ईश्वर की रचना हैं क्योंकि उनकी रचना एक ही माता पिता से हुई अर्थात आदि पुरुष जिनसको कुछ लोग मनु कहते हैं और सतरोपा कहते हैं तो कुछ लोग आदम और हव्वा, वह प्रथम मनुष्य ने जो धरती पर बसाए गए, उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम अथवा सनातन धर्म कहते हैं ।
(3) मुहम्मद सल्ल0 ने शताब्दियों से मन में बैठी हुई जातिवाद का खण्डन किया जो लोगों के हृदय में बैठ चुका था और प्रत्येक मनुष्य को समान क़रार दिया।
और जब मुहम्मद सल्ल0 ने वही संदेश दिया जो संदेश हर युग में संदेष्टा देते रहे थे।
इस लिए इस्लाम को नया धर्म कहना ग़लत होगा।
फिर यह भी याद रखें कि इस्लाम में 6 बोतों पर विश्वास रखने का आदेश दिया गया है जिस पर सारे मुसलमानों का विश्वास रखना आवश्यक है। उसे हम ईमान के स्तम्भ कहते हैं यदि कोई मुसलमान उनमें से किसी एक का इनकार कर देता है तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा उनमें से एक है ईश्वर के भेजे हुए संदेष्टाओं पर विश्वास करना – अर्थात इस बात पर विश्वास करना कि ईश्वर ने हर युग तथा देश में मानव मार्गदर्शन हेतु संदेष्टाओं को भेजा जिन्होंने मानव को एक ईश्वर की पूजा की ओर बोलाया और मूर्ति जूजा से दूर रखा, पर उनका संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि मानव ने इतनी प्रगति न की थी तथा एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध नहीं था।
जब सातवी शताब्दी में मानव बुद्धि प्रगति कर गई और एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध बढ़ने लगा को ईश्वर ने अलग अलग हर देश में संदेश भेजने के नियम को समाप्त करते हुए विश्वनायक का चयन किया।
वह विश्व नायक कौन हैं इस सम्बन्ध में आप जानना चाहते हैं तो आपको डा0 वेद प्रकाश उपाध्याय की पुस्तक कल्की अवतार और मुहम्मद सल्ल0 तथा डा0 एम ए श्री वास्तव की पुस्तक ( मुहम्मद सल0 और भारतीय धर्म ग्रन्थ) का अध्ययन करना होगा जिसमें इन महान विद्वानों ने सत्य को स्वीकार करते हुए हिन्दुओं को आमंत्रन दिया है कि हिन्दू धर्म में जिस कल्कि अवतार तथा नराशंस के आने की प्रतीक्षा हो रही है वह सातवीं शताब्दी में आ गए और वही मुहम्मद सल्ल0 हैं ।
अंततः ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा, आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है ।
मुहम्मद सल्ल0 ने कभी यह दावा नहीं किया कि वह कोई नया धर्म लेकर आए हैं, वही इस्लाम जिसकी शिक्षा आदि पुरुष आदम (मनू ) ने दिया था उसी को पूर्ण करने के लिए मुहम्मद सल्ल0 भेजे गए। आज मानव का कल्याण इस्लाम धर्म ही में है क्यों कि इस्लाम उन्हीं का है, क़ुरआन उन्हीं का है तथा मुहम्मद सल्ल0 उन्हीं के लिए आए हैं। लेकिन अज्ञानता का बुरा हो कि लोग आज उन्हीं का विरोद्ध कर रहे हैं जो उनके कल्याण हेतु भेजे गए। मैं इस बात को भी स्वीकार करता हूँ कि ग़लती हमारी हैं कि हम हिन्दू मुस्लिम भारत में शताब्दियों से रह रहे हैं पर हमने सत्य को आप से छुपाए रखा। और ज्ञात है कि यदि इनसान किसी चीज़ की सत्यता को नहीं जानता है तो उसका विरोद्ध करता ही है। अतः आप से निवेदन है कि मेरी बातों पर विशाल हृदय से निष्पक्ष हो कर चिंतन मनन करेंगे। तथा इस्लाम का अध्ययन आरम्भ कर दें।
8 टिप्पणियां:
सतरोपा नहीँ - शतरुपा -- मनु की पत्नी थीँ -- जिसे आदम की पत्नी हैव्वा भी कहते हैँ - और आप दूसरोँ को ईस्लाम धर्म समजने और पढने के लिये कह रहे हैँ तो क्या आपने दूसरे धर्मोँ को पूरी तरह समझा और जाना है ?
हिन्दू मुस्लिम दोनोँ धर्म अच्छे हैँ पर उन्के पालन करने के नियम एकदूसरे से बहुत अलग हैँ - आप मूर्ति पूजा को नहीँ मानते, हिन्दू मानते हैँ ईसाई भी क्रोस पर लटके जीज़स को पूजते हैँ - यहूदी डेवीड के सितारे को पूजते हैँ -
आप और ईसाई मुस्लीम और यहूदी गौ माँस खा लेते हो और हिन्दू नहीँ खाते ..
आप तीनोँ धर्म, अपने मरे हुए के शव को दफनाते हो जबकि हिन्दू जलाते हैँ
ये बहुत बडे बडे फर्क हैँ -
आप ईस्लाम को मानिये ..दूसरोँ पर अपनी बात मनवाने की जिद्द ना करीये --
आपका ये तरीका गलत है -
आप खुश रहीये -- पर दूसरे धर्म का भी आदर करीये -
इतना ही कहना है -
धन्यवाद !
बहन जी ! आपका धन्यवाद आपने हमारी शाब्दिक त्रुटि की सुधार की। आपने हमें यह कहा है कि आपको दूसरे धर्मों के सम्बन्ध में नहीं बोलना चाहिए तो ज्ञात होना चाहिए कि मैं किसी धर्म पर आपत्ति नहीं करता न उसके मानने वालों को दोषी ठहराता हूं, मेरी वैसी मानसिकता नहीं है बस मैं युनूस भाई से निवेदन कर रहा था कि जब वह मुसलमान हैं तो उन्हें इस्लामी नियम का पालन करना चाहिए हमें आशा है कि आप भी मेरी बात का समर्थन करेंगी, और उनको शायद इस्लाम के सम्बन्ध में पता नहीं है इस लिए वह अन्य भगवानों का गुण गा रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं कि मैं मुसलमान अन्य पूज्यों को बुरा समझते हैं बल्कि क़ुरआन ने तो यहाँ तक रोका कि जो लोग ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा करते हैं उनको बुरा न कहो क्योंकि उनके हृदय को चोट लगेगा, इसके बावजूद इस्लाम ने सब से बड़ा पाप यह बताया कि मुर्ति पूजा न किया जाए क्योंकि जिस ईश्वर ने हमारी रचना की है, हम पर हर प्रकार का उपकार किया है तथा कर रहा है (जिसे कुछ लोग- ऊपर वाला- कहते हैं ) वही वास्तविक पूज्य है। अब यिद इस्लाम का मूल आदेश नही है जिसे न जानने वाले को बता दिया तो मैंने कौन सा पाप किया? मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं बहन जी, पर उसका क्या करें गे कि यदि मैं भी एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी सासांरिक भगवान की पूजा करने लगूं तो इस्लाम की सीमा से निकल जाऊंगा।
बहन जी ! जहाँ तक धर्मों के अध्ययन की बात है तो मैंने अनुमानतः अपनी आयु के दस वर्ष इसी की खोज में बीताया है। जिससे इस परिणाम पर पहुंचा कि आरम्भ से मानव का धर्म एक ही रहा है, परन्तु लोगों ने अंधविश्वास मैं पड़ कर अलग अलग धर्म बना लिया फिर भी ईश्वर का अवतरित किया हुआ धर्म आज तक अपने पूर्ण रूप में बाक़ी है।वह धर्म कौन है ? आवश्यकता मात्र उसके खोज करने की है,
आपने जो यह कहा कि इस्लाम तथा अन्य धर्मों में क्या अंतर है ? तो इस सम्बन्ध में मेरी खोज यह कहती हैं कि
(1) इस्लाम केवल एक ईश्वर की ओर बोलाता है उस ईश्वर की ओर जो सारे मनुष्य का श्रृष्टिकर्ता है, उसका कोई रूप नहीं तथा वह मानव रूप में अवतरित नहीं होता
(2) इसमें सारे मानव समान हैं उन्हें जाति तथा वंश के आधार पर विभाजित नहीं किया गया है।
(3) इस्लाम के अन्तिम दूत मुहम्मद सल्लद की जीवनी का एक एक क्षण लिखित रूप में सुरक्षित है जिसके द्वारा आपके लाए हुए नियम को पूरे रूप में समझा जा सकता है।
(4) इस्लाम एक बुद्धि संघत धर्म है, उसने औरत को पर्दा करने का आदेश दिया ताकि समाज को पवित्र रखा जा सके , उसने सासांरिक कर्तव्य को भी ईश्वर की आज्ञाकारी क़रार दिया और मुक्ति के लिए परिवार त्याग की शर्त न रखी, उसने दान का नियम पेश किया जिसको आज व्यवहारिक रूप दिया जाए तो समाज में कोई निर्धन बाक़ी न रहे, उसने एक ईश्वर की पूजा की ओर बोलाया जो सारे संसार का स्वामी है। यदि मुहम्मद सल्ल0 की पूजा की जाती होती तो हम अवश्य कहते कि इस्लाम अरबों का धर्म है लेकिन इस्लाम ही मात्र वह धर्म है जिसने समानता का संदेश देने के साथ साथ मानव को उसके ईश्वर से मिलाया।
बहन जी ! इस बयान का अर्थ कदापि नहीं कि मैं किसी पर आपत्ति कर रहा हूं बल्कि मेरा अभिप्राय यह है कि हम इस्लाम के सम्बन्ध में भ्रम में न रहें , उसके वास्तविक स्वरूप को जान लें । यदि आप की इच्छा हो तो मैं बताऊंगा कि मानव कैसे एक ही धर्म का पालन कर रहा था और किस प्रकार वह विभिन्न धर्म में विभाजित हो गए। धन्यवाद
agar maine kuch bola aur aap ke hisab se islam k khilaf ho gai to kahin mere khilaf koi fatwa na de
ki iska sir kat lo
भाई जान ऐसा न सोचें मुसलमान शांतिवादी होता है और उसका कर्तव्य होता है शान्ति स्थापित करना ....समाज से दुष्कर्मों को समाप्त करना
app ne dharam ke bare me kush nahi jana hai ab tak na app dharam par chal rahe ho bhayi parmatma ke darbar me dharam ki vichar nahi hoti ki tum kis dharam se relation rakhte ho app ne to apni jindgi barbad kar li hai is dharam ke chakar me pad kar jo dharam par chal raha hota hai uski bato se hi pta chalta hai wo dharami hai app is sab khojo me pad kar je sabit karna chahate ho ki islam hi ek saacha dharam hai baki sab jhoot apki to jindi hi dharam pe nahi dost
kyu faltu bak bak kr rhe ho jo b hai sab k samne h apna kam karo jo jis dhram ko manta h manne do
Bulkul sahi kaha aaapne
Bilkul shahi kaha aaapne
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