बुधवार, 7 जनवरी 2009

नव-वर्ष एक चिन्ताजनक विषय

अभी हम सब इसवी कैलेंडर के अनुसार 2009 में प्रवेश कर चुके हैं। वास्तविकता यह है कि पिछला वर्ष विश्व के लिए बहुत ही हानिकारक और चिंताजनक रहा
वैश्विक अर्थव्यवस्था में ऐसी आग लगी कि उसकी लौ से अब तक इनसान परीशान है, कितने बेंक्स बन्द हो गए, कितने लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, कितने लोगों ने आत्म हत्या कर लिया, और कितने लोग मानसिक दबाव के शिकार हैं।
कितने भूकंप आए और उसमें मानव के जान व माल की तबाही हुई, बिहार के भुकंप अब तक हमारी नज़रों के सामने हैं
आतंकवाद की ऐसी लहर चली कि इनसान शैतान बन गया, हर जगह इंसानों के खून की होली खेली गई। राक्षसों ने ऐसी दरिंदगी का प्रदर्शन किया कि जंगली पशुओं को भी पसेना आ गया होगा। जी हाँ एक जानवर भी अपने ही जिंस के जानवरों का शिकार नहीं करता लेकिन मानव अपने ही भाई बन्धुओं को गाजर और मूली के समान चबाता रहा और अब तक चबाता आ रहा है। कहाँ गई मानवता? कहाँ कई इनसानियत? कहाँ गई शराफत?
क्या यही इनसानियत है कि अपने ही जैसे लोगों को मारो, काटो, और उन्हें मिटाने का फिक्र में लग जाओ। आज गज्जा में इस्राईली दरिंदों ने जो दरिंदगी मचा रखी है वह खून के आँसू रोलाने वाला मंज़र है। लेकिन सारी दुनिया चुप है। मानो ज़बान पर ताला लगा दिया गया हो। 570 से ज्यादा इनसान मारे जा चुके और दो हज़ार से ऊपर ज़ख़मी हैं लेकिन किसी इस्राईली दरिंदे हम्ला रोकने का नाम नहीं ले रहे हैं।

4 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

shukriya safat for comments,aapne sahi kaha jiska saransh main samajhta hun yahi hai ki insan men insaniyat sabse zaroori hai chahe duniya ka koi desh ho, kona ho.swapn

विवेक ने कहा…

ये खामोशी ही तो खतरनाक है आलम साहब...हम सब इतने स्वार्थी हो गए हैं कि किसी और का दर्द हमें महसूस ही नहीं होता...सही कहा आपने...कमजोर के लिए कौन बोलेगा

hem pandey ने कहा…

'क्या यही इनसानियत है कि अपने ही जैसे लोगों को मारो, काटो, और उन्हें मिटाने का फिक्र में लग जाओ।'

आपने यह महसूस किया एक अच्छी बात है. जब बहुत सारे लोग इसी तरह सोचने लगेंगे तो बदलाव आयेगा.

Aadarsh Rathore ने कहा…

बदलाव ज़रूरी है