शनिवार, 24 जनवरी 2009

मानव मार्गदर्शन कैसे ?

जब ईश्वर ने ही सारे संसार की रचना की और मानव को पृथ्वी पर बसाया, तो ईश्वर उसको क्यो पैदा किया था? इस से अवगत करने के लिए उसकी महिमा को यह बात तुच्छ सिद्ध करती थी कि वह स्वयं मानव रूप धारण करके पृथ्वी पर आए। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि ईश्वर ने मानव का मार्गदर्शन कैसे किया ? आइए इसे जानते हैं-
जिस प्रकार कोई कम्पनी किसी वस्तु को ढ़ालती या बनाती है तो उसके प्रयोग करने का तरीक़ा भी बताती है ठीक इसी प्रकार जब ईश्वर ने अपनी असीम दया से मानव की रचना की तो इनसान को उनके अंगों के प्रयोग करने का नियम भी बताया। ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु इन्सानों में से पवित्र एंव क्रान्तिकारी महापुरुषों को चयन करके उनके पास आकाशीय दूतों द्वारा अपनी प्रकाशना भेजी। हर देश और हर युग में अलग अलग दूत भेजे गए जिनकी संख्या 1 लाख 24 हज़ार तक पहुंचती है। कु़रआन में है ( और कोई ऐसी जाति नहीं हुई जिसमें कोई सचेत करने वाला न आया हो) सूरः फातिर, आयत 24
उनके मूल तीन गुण होते थेः
(1) वह सामान्य मनुष्य के समान होते थे उनके अन्दर कोई ईश्वरीय गुण न पाया जाता था।(2) वह अपनी क़ौम में नैतिक और बौधिक दृष्टि से श्रेष्ठ होते थे। उनकी नैतिकता पर कभी किसी ने आँख भी न उठाई होती थी।(3) उनको प्रमाण के रूप में कुछ चमत्कारियाँ भी दी जाती थीं। जैसे ईसा (जिसस) एक संदेष्टा गुज़रे हैं वह मृतक को ईश्वर की अनुमति से जीविक कर देते थी, जी हाँ वह ईश्वर नहीं थे पर ईश्वर की अनुमति से ऐसा करते थे। इसी लिए उनकी पूजा नहीं की जा सकती।यह सारे संदेष्टा अपने देश की भाषा में लोगों को ईश्वर का संदेश पहुंचाते थे। इन सारे संदेष्टाओं का संदेश भी एक ही था तथा सब ने एक ही धर्म की ओर लोगों को बोलाया था। संसार में कभी भी विभिन्न धर्म नहीं हुए। इसी धर्म को वैदिक काल में सर्व समर्पण धर्म कहा जाता है और अरबी में इस्लाम। सब से अन्त में सम्पूर्ण संसार के लिए एक ही संदेष्टा आए जिनको कल्कि अवतार अथवा मुहम्मद सल्ल0 कहा जाता है।
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि जब सारे संसार में एक ही धर्म आया तो लोग विभिन्न धर्मों में क्यों विभाजित हो गए ? इसे जानना चाहते हैं तो अगले पोस्ट की प्रतीक्षा करें

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