एक सज्जन ने बड़ा अच्छा प्रश्न किया कि क्यों ईश्वर ने एक लाख चौबीस हज़ार संदाष्टाओं को भेजा? शायद प्रमात्मा पहली बार सही धर्म न भेज पाया, क्यों नबियों का संदेश अधोरा रहा ? यह एक संदेह है जिसका निवारण होना चाहिए ताकि सत्य खुल कर सामने आ सके। इसी उद्देश्य के अन्तर्गत आपकी सेवा में हम यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं।
यह सत्य है कि इस्लाम उसी समय से है जिस समय से मानव है। प्रथम मानव को इस्लाम ही की शिक्षा दी गई थी। औऱ इसी शिक्षा को मानव तक पहुचाने के लिए हर युग में संदेष्टा आते रहे। शुरु में हर एक जाति में अलग-अलग संदेशवहाक आते थे,उनकी शिक्षायें उनकी जाति तक ही सीमित रहती थीं। और उन्हें एक पूर्ण जीवन व्यवस्था भी नही दिया जाता था। उसका कारण यह था कि उस समय प्रत्येक जातियाँ एक दूसरे से अलग थीं। उनके बीच अधिक मेल जूल न था। भाषायें विभिन्न होती थीं, जिन्हें सीखने की ओर लेग बहुत कम ध्यान देते थे। मानव बुद्धि भी बहुत सीमित थी, ऐसी स्थिती में एक ही शिक्षा का प्रत्येक जातियो में फैलाना अत्यन्त कठिन था, क्यों कि मानव जाति की प्रगति उसी प्रकार हुई है जिस प्रकार एक बच्चे की प्रगति होती है। बाल्यावस्था से किशोरावस्था फिर युवावस्था। इस प्रकार ईश्वरीय संदेश का भी उसी युग के अनुसार होना आवश्यक था। अतएवं ईश्वर ने रोगी की सामर्थ्य के अनुकुल औषधि का भी चयन किया और मानव जाति को इतने ही आदेश दिए जिसकी वह शक्ति रखती हो।इसी लिए उनको पूर्ण-जीवन व्यवस्था नहीं दिया गया। यह उस तत्वदर्शी ईश्वर की तत्वदर्शीता थी।
जबकि हम देखते हैं कि सातवीं शताब्दि ई0 मे ऐसी स्थिती नहीं थी। यातयात के साधन बहुत हद तक ठीक हो गए थे। व्यापार, कला-कौशल, की उन्नति के साथ साथ जातियों में परस्पर सम्बन्ध का़यम हो गये थे। चीन और जापान से लेकर यूरोप और अफ्रीक़ा के देशों तक जलीय तथा स्थलीय यात्राओं की शुरुआत हो गई थी,बडे़ बडे़ विजेताओ ने कई कई देशो को एक राजनीतिक व्यवस्था से जोड़ दिया था। इस प्रकार वह दूरी और जुदाई जो पहले मानव जाति के बीच पाई जाती थी धीरे धीरे कम होती गई और यह सम्भव हो गया कि इस्लाम की एक ही शिक्षा और एक ही धर्म विधान प्रत्येक संसार के लिए भेजा जाय़े। इस संक्षिप्त विवरण से शायद संदेह का निवारण हो गया होगा ।
यह सत्य है कि इस्लाम उसी समय से है जिस समय से मानव है। प्रथम मानव को इस्लाम ही की शिक्षा दी गई थी। औऱ इसी शिक्षा को मानव तक पहुचाने के लिए हर युग में संदेष्टा आते रहे। शुरु में हर एक जाति में अलग-अलग संदेशवहाक आते थे,उनकी शिक्षायें उनकी जाति तक ही सीमित रहती थीं। और उन्हें एक पूर्ण जीवन व्यवस्था भी नही दिया जाता था। उसका कारण यह था कि उस समय प्रत्येक जातियाँ एक दूसरे से अलग थीं। उनके बीच अधिक मेल जूल न था। भाषायें विभिन्न होती थीं, जिन्हें सीखने की ओर लेग बहुत कम ध्यान देते थे। मानव बुद्धि भी बहुत सीमित थी, ऐसी स्थिती में एक ही शिक्षा का प्रत्येक जातियो में फैलाना अत्यन्त कठिन था, क्यों कि मानव जाति की प्रगति उसी प्रकार हुई है जिस प्रकार एक बच्चे की प्रगति होती है। बाल्यावस्था से किशोरावस्था फिर युवावस्था। इस प्रकार ईश्वरीय संदेश का भी उसी युग के अनुसार होना आवश्यक था। अतएवं ईश्वर ने रोगी की सामर्थ्य के अनुकुल औषधि का भी चयन किया और मानव जाति को इतने ही आदेश दिए जिसकी वह शक्ति रखती हो।इसी लिए उनको पूर्ण-जीवन व्यवस्था नहीं दिया गया। यह उस तत्वदर्शी ईश्वर की तत्वदर्शीता थी।
जबकि हम देखते हैं कि सातवीं शताब्दि ई0 मे ऐसी स्थिती नहीं थी। यातयात के साधन बहुत हद तक ठीक हो गए थे। व्यापार, कला-कौशल, की उन्नति के साथ साथ जातियों में परस्पर सम्बन्ध का़यम हो गये थे। चीन और जापान से लेकर यूरोप और अफ्रीक़ा के देशों तक जलीय तथा स्थलीय यात्राओं की शुरुआत हो गई थी,बडे़ बडे़ विजेताओ ने कई कई देशो को एक राजनीतिक व्यवस्था से जोड़ दिया था। इस प्रकार वह दूरी और जुदाई जो पहले मानव जाति के बीच पाई जाती थी धीरे धीरे कम होती गई और यह सम्भव हो गया कि इस्लाम की एक ही शिक्षा और एक ही धर्म विधान प्रत्येक संसार के लिए भेजा जाय़े। इस संक्षिप्त विवरण से शायद संदेह का निवारण हो गया होगा ।
6 टिप्पणियां:
sahi kaha apne.
saleem khan
lucknow
सहमत हूँ!
अल्लाह तआला ने फरिश्तों को क्यों हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करो
कृपया मेरे इस जिज्ञासा का समाधान करें - अल्लाह तआला ने फरिश्तों को क्यों हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करो !
PRADEEP साहिब !
सर्वप्रथम हम आपका अपने ब्लौग पर स्वागत करते है और इसके बाद में हमें आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।
रहा आपका प्रश्न कि अल्लाह तआला ने फरिश्तों को क्यों हुक्म दिया कि आदम के आगे सज्दा करे ? तो सब से पहले तो यह जान लें कि अल्लाह ने प्रथम मानव आदम को पैदा किया जो हम सब के आदि पिता ठहरते हैं। क़ुरआन के अनुसार मानव अल्लाह की दृष्टि में श्रेष्ठ प्राणी है उसे सारी जातियों पर प्रधनता प्राप्त है। इसी लिए जब आदम को पैदा किया तो फरिश्तों (angels) को आदेश दिया कि आदम को सज्दा करें। अतः सारे फरिश्तों ने सज्दा किया। यह सज्दा पूजा के समान नहीं था बल्कि सम्मान के रूप में था जो आदम के समय में वैध था परन्तु आज सम्मान का सज्दा भी वर्जित कर दिया गया।
PRADEEP साहिब !आशा है कि आपके जिज्ञासा का समाधान मिल गया होगा।
यहाँ पर हम यह भी बताते चलें कि ईश्वर एक है, उसका संदेश भी एक है, जो हर युग में संदेष्टाओं के माध्यम से आता रहा,सारे संदेष्टा एक ईश्वर की पूजा ही की ओर बोलाते थे परन्तु उनके युग के अनुसार उनको धर्म-शास्त्र प्रदान किया जाता था। यह भी याद रखें कि उन संदेष्टाओं की शिक्षाएं अपने ही समाज तक सीमित होती थीं। जब सातवीं शताब्दी में संसार सामाजिक, भौगोलिक और सांसारिक रूप में प्रगति कर गया तो अल्लाह ने जगत गुरू को मक्का की धरती पर भेजा और उन पर क़ुरआन उतारा जो अल्लाह की वाणी है, जिब्रील फरिश्ते के माध्यम से मुहम्मद सल्लसल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अवतरित हुआ। इस अन्तिम संदेश क़ुरआन में इस सज्दा को भी वर्जित क़रार दिया गया।
एक टिप्पणी भेजें