रविवार, 18 अक्तूबर 2009

ईश्वर की महिमा ( एक प्रवचन)

हज़रत अबू ज़र ग़िफारी रज़ि0 का कथन है, कि अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल० ने बयान किया कि अल्लाह (ईश्वर) फरमाता हैः
· «ऐ मेरे दासो! मैंने स्वयं पर अन्याय को वर्जित कर लिया है,और तुम्हारे बीच भी इसे वर्जित कर दिया है इस लिए परस्पर एक दूसरे पर अन्याय न करो।
· हे मेरे दासो! तुम में से हर व्यक्ति पथभ्रष्ट है सिवाए इसके जिसका मैंने मार्गदर्शन कर दिया, अतः तुम मुझ से मार्गदर्शन का अनुरोध करो मैं तेरा मार्गदर्शन करुंगा।
· हे मेरे दासो! तुम में से हर व्यक्ति भूखा है, सिवाए उसके जिसे मैं ने खिलाया, तुम मुझ से खाना माँगो मैं तुम्हें खिलाऊंगा।
· हे मेरे दासो! तुम में से हर एक नंगा है,सिवाए उसके जिसे मैंने पहनाया,तुम मुझसे पोशाक माँगो, मैं तुझे कपड़े पहनाऊंगा।
· हे मेरे दासो! तुम रात और दिन पाप पर पाप किए जाते हो,और मैं तुम्हारे पापों को क्षमा करता रहता हूं,तुम मुझसे अपने पापों की क्षमा माँगो, मैं तुम्हारे पापों को क्षमा कर दूंगा।
· हे मेरे दासो! तुम न तो इस बात की क्षमता रखते हो कि मुझे हानि पहुंचा सको, न इस बात की क्षमता रखते हो कि मुझे लाभ पहुंचा सको।
· हे मेरे दासो! अगर तुम्हारे प्रथम से अन्तिम तक मानव से लेकर जिन्न तक प्रत्येक लोग इस विश्व के सब से "बड़े संयम" व्यक्ति के समान हो जाएं तो इस से मेरी बादशाही मैं कुछ भी वृद्धि न होगी।
· हे मेरे दासो! यदि तुम्हारे प्रथम से अन्तिम तक, मानव से लेकर जिन्न तक, सब के सब इस विश्व के सब से "बड़े पापी" व्यक्ति के समान हो जाएं तो इस से मेरी बादशाही मैं कुछ भी कमी न आएगी।
· हे मेरे दासो! यदि तुम्हारे प्रथम से अन्तिम तक, मानव से लेकर जिन्न तक, सब के सब एक मैदान में एकत्र हो जाएं, और मुझ से माँगते जाएं तथा मैं हर एक की आवश्यकताओं की पूर्ति कर दूं , इस से मेरे ख़ज़ाने में इतनी भी "कमी" नहीं आएगी जितना कि "सुई" को समुद्र में डबोने से समुद्र के जल में कमी आती है।» (सहीह मुस्लिम)

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर व्याख्या की है।
सुन्दर पोस्ट। बधाई!