शनिवार, 28 नवंबर 2009

हज्ज और क़ुर्बानी के नायक (तीसरा भाग)

तब ईब्राहीम अलै0 ने अपने दिल में यह ठान ली कि उनकी मुर्तियों का कुछ न कुछ अवश्य इलाज किया जाए। आपने सोचा कि उनके त्योहार का दिन निर्धारित है, उसी दिन यह काम भलि-भांति पूर्ण रूप में सम्पन्न हो सकता है। त्योहार के दिन जब उन से त्योहार में भाग लेने का अनुरोध किया गया तो उन्हों ने कहा कि "मैं बिमार हूं"। जब सब लोग त्योहार मनाने के लिए निकल गए तो एक तेज़ कुल्हारी लिए देवता-वास में प्रवेश किया और प्रत्येक मूर्तियों को टूकड़े टूकड़े कर दी, मात्र बड़ी मूर्ति को रहने दिया ताकि उनके मन मस्तिष्क में यह ख्याल पैदा हो कि शायद बड़ी मूर्ति ने छोटी मूर्तियों को नष्ट कर दिया है।
जब लोग त्योहार से लोट कर आए तो यह देख कर आश्चर्यचकित हो गए कि सारी छोटी मूर्तियां मुंह के बल गिरी हुई हैं। बल्कि उनके पैरों से ज़मीन खिसक गई और कहने लगे कि यह कौन ज़ालिम था जिसने हमारी मूर्तियों का अपमान किया? कुछ लोगों ने कहा कि हमने इब्राहीम को इन पूज्यों के प्रति अपशब्द बोलते सुना है। समुदाय के लोगों ने पारस्परिक परामर्श के बाद यह निर्णय लिया कि सब लोगों के समक्ष इब्राहीम को बुला कर उसे सज़ा दी जाए। अतः जब सब लोग आ गए तो इब्राहीम अलै0 - जो अपराधी के रूप में वहाँ उपस्थित थे - से पूछा गयाः हमारे पूज्यों के साथ यह अपमानजनक कर्म किसने किया है ? उस पर इब्राहीम अलै0 ने कहाः "बल्कि यह काम इस बड़ी मूर्ति ने किया है, तुम अपने इन पूज्यों से ही पूछ लो, यदि यह बोलते हों"। अभिप्राय यह था कि लोग स्वयं समझ लें कि यह पत्थर क्या बोलेंगे, और जब वह इतने विवश हैं तो वह पूज्यनीय कैसे हो सकते हैं?। इस ठोस उत्तर ने उन्हें थोड़ी देर के लिए हिला कर रख दिया, निराशाजनक शैली में कहने लगे कि हमने स्वयं ग़लती की, अपने पूज्यों के पास सुरक्षा-दल रखे बिना त्योहार मानाने चले गए। फिर चिंतन मनन के पश्चात यह बात बनाई कि "तुम जो यह कहते हो कि हम उन से पूछ लें.... तो क्या तुम्हें पता नहीं कि वह बोलते नहीं हैं?...."।
अब इब्राहीम अलै0 को अपने संदेश के परिचय का शुभ अवसर मिल गया, अति दयालू होने के बावजूद तनिक ठोस स्वर में उनको सम्बोधित कियाः "खेद है कि तुम उनकी पूजा करते हो जो न तुम्हें कुछ भी लाभ पहुंचा सकें, न हानि। धिक्कार है तुम पर और तुम्हारे उन देवताओं पर जिनकी तुम ईश्वर को छोड़ कर पूजा करते हो, यह तो गूंगे और बहरे हैं, बोलने तक की क्षमता से वंचित हैं तो तुम्हारी सहायता कैसे करेंगे, क्या तुम कुछ भी बुद्धि नहीं रखते?"।
नियम यह है कि जब एक व्यक्ति प्रमाण से निरुत्तर हो जाता है तो भलाई उसे घसेट लती है अथवा बुराई उसपर अधिकार प्राप्त कर लेती है। यहाँ उन लोगों को उन के दुर्भाग्य ने घेर लिया और अपने दबाव का प्रद्रशन करने के लिए ईब्राहीम अलै0 को आग में जलाने का लिर्णय ले बैठे। लकड़ियाँ एकत्र की गईं, पृथ्वी में एक गहरा कुवां खोदा गया, लकड़ियों से उसे भर दिया गया। फिर उसमें आग लगा दी गई। आसमान से बातें कर रही अग्नि में ईब्राहीम अलै0 को डाल दिया गया। जिस समय आपको अग्नि में डाला गया आपने मात्र यह शब्द बोला कि "अल्लाह हमारे लिए काफी है और वह उत्तम सहायक है"। उसी समय ईश्वर की ओर से अग्नि को आदेश मिला कि "हे आग! ठण्डी हो जा और सलामती बन जा इब्राहीम पर" हर ओर से अग्निशिखा निकल रही थी परन्तु आग ने आपको छुआ तक नहीं और वह अहानिकारक बन कर रह गया। (जारी)

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