सोमवार, 19 अप्रैल 2010

शान्ति...शान्ति...शान्ति

इस्लाम का उद्देश्य पूरे संसार में शान्ति स्थापित करना है। इस्लाम हर धर्म का सम्मान करता है। क़ुरआन में इनसानी जानों का सम्मान इतना किया गया है कि उसने किसी एक व्यक्ति (चाहे उसका धर्म कुछ भी हो) की हत्या को सारे संसार की हत्या सिद्ध करता हैः “जो कोई किसी इनसान को जबकि उसने किसी की जान न ली हो अथवा धरती में फसाद न फैलाया हो, की हत्या करे तो मानो उसने प्रत्येक इनसानों की हत्या कर डाला और जो कोई एक जान को ( अकारण कत्ल होने से) बचाए तो मानो उसने प्रत्येक इनसानों की जान बचाई” (सूरः माईदा आयत न0 32) और मुसलमान जिस नबी को अपनी जान से अधिक प्रिय समझते हैं वह प्रत्येक संसार के लिए दयालुता बन कर आए थे (हे मुहम्मद)हमनें आपको सम्पूर्ण संसार के लिए दयालुता बना कर भेजा है ” (सूरः अंबिया 107)
मुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों में आता है जो कोई इस्लामी शासन में रहने वाले गैर मुस्लिम की हत्या कर दे वह स्वर्ग की बू तक न पाएगा” (सही बुख़ारी)

देखा! यह है इस्लाम की शिक्षा… और एक मुसलमान इसी पर 100 प्रतिशत विश्वास रखता है। एक मुस्लिम कभी किसी गैर-मुस्लिम को गैर-मुस्लिम होने के नाते किसी प्रकार का कष्ट कदापि नहीं पहुंचा सकता इसलिए कि वह जानता है कि सारे इनसान एक ही माता पिता की सन्तान हैं।
ज़रा आप मुहम्मद सल्ल0 की आदर्श जीवनी का अध्ययन कर के देख लीजिए उनके शत्रुओं ने उनको और उनके अनुयाइयों को निरंतर 13 वर्ष तक मक्का में हर प्रकार की यातनाएं दीं। उनके गले में रस्सी डाल कर मक्का की गलियों में घसेटा गया, अरब की तपती हुई भूमि पर,दहकते कोइले पर लिटान कर उनकी छाती पर पत्थर रखा गया। जब अत्याचार बर्दाश्त से बाहर हो गया तो कुछ लोग देश त्याग कर के हबशा में शरण ली। मुहम्मद सल्ल0, आपके अनुयाइयों तथा आपके सहायक पारिवारिक व्यक्तियों का सामाजिक बाइकाट किया तो उन्हें तीन वर्ष तक नगर से बाहर एक पहाड़ी की घाटी में शरण लेनी पड़ी। मुसलमानों को देश निकला दिया और सारे के सारे मुसलमान अपनी सारी सम्पत्ति छोड़ कर मदीना में जा बसे। यहाँ तो कम से कम शत्रुओं को चैन से रहने देना चाहिए था लेकिन मक्का आने के बाद भी आठ वर्ष तक मुसलमानों के विरोद्ध युद्ध ठाने रखा।
लेकिन आप और आपके अनुयाई इन सब को सहन करते रहे यहाँ तक कि 21 वर्ष तक अत्याचार सहते सहते जब अन्त में मक्का पर विजय पा चुके तो सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर दी। जिसका परिणाण यह हुआ कि मक्का विजय के वर्ष उनके अनुयाइयों की संख्या 10 हज़ार थी तो दो वर्ष में ही एक अन्तिम हज के अवसर पर एक लाख चालीस हज़ार हो गई। क्यों वह सोचने पर विवश हुए कि जिस इनसान को हमने 21 वर्ष तक चैन से रहने नहीं दिया हम पर क़ाबू पाने के बाद हमारी क्षमा की घोषणा कर रहा है, मानो यह स्वार्थी नहीं बल्कि हमारी भलाई चाहता है।
आज तालबान अथवा उनके सहयोगी जो इस्लाम के नाम पर लोगों की हत्या कर रहे हैं इस्लाम इसकी अनुमति कदापि नहीं देता। और हम उनकी कट्टरता का पूर्ण रूप में विरोद्ध करते हैं। हमारी वही आस्था है जिसकी ओर क़ुरआन ने संकेत किया कि एक इनसान की हत्या मानो सम्पूर्ण इनसान की हत्या है।  

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

nice post

Ayaz ahmad ने कहा…

NICE POST

Ayaz ahmad ने कहा…
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Ayaz ahmad ने कहा…

NICE POST

बेनामी ने कहा…

सिर्फ तालिबान ही नहीं जो अमेरिका इराक मे कर रह है जो अफ्गानिस्तान मे हो रहा है जो फिलिस्तीन मे हो रहा है जो लेब्नान मे हो रहा उन सब की कट्टरता का हम विरोध करते है