प्रश्नः इस दुनिया में हिन्दू तो पहले से हैं,लेकिन मुसलमान बाद में क्यों बने...???
उत्तरःमानव इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि इस धरती पर अलग अलग विभिन्न मानव नहीं बसाए गए अपितु एक ही मानव से सारा संसार फैला है। निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान दें, आपके अधिकांश संदेह खत्म हो जाएंगे।
उत्तरःमानव इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि इस धरती पर अलग अलग विभिन्न मानव नहीं बसाए गए अपितु एक ही मानव से सारा संसार फैला है। निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान दें, आपके अधिकांश संदेह खत्म हो जाएंगे।
सारे मानव का मूलवंश एक ही पुरूष तक पहुंचता है, ईश्वर ने सर्वप्रथम विश्व के एक छोटे से कोने धरती पर मानव का एक जोड़ा पैदा किया जिनको आदम तथा हव्वा के नाम से जाना जाता है। उन्हीं दोनों पति-पत्नी से मनुष्य की उत्पत्ति का आरम्भ हुआ जिन को कुछ लोग मनु और शतरूपा कहते हैं तो कुछ लोग एडम और ईव जिनका विस्तारपूर्वक उल्लेख पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन(230-38) तथा भविष्य पुराण प्रतिसर्ग पर्व खण्ड 1 अध्याय 4 और बाइबल उत्पत्ति (2/6-25) और दूसरे अनेक ग्रन्थों में किया गया है। उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम कहते हैं जो आज तक सुरक्षित है।
ईश्वर ने मानव को संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य से अवगत करने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें। वह हर देश और हर युग में भेजे गए, उनकी संख्या एक लाख चौबीस हज़ार तक पहुंचती है, वह अपने समाज के श्रेष्ट लोगों में से होते थे तथा हर प्रकार के दोषों से मुक्त होते थे। उन सब का संदेश एक ही था कि केवल एक ईश्वर की पूजा की जाए, मुर्ति-पूजा से बचा जाए तथा सारे मानव समान हैं, उनमें जाति अथवा वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
परन्तु उनका संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि मानव ने इतनी प्रगति न की थी तथा एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध नहीं था। उनके समर्थन के लिए उनको कुछ चमत्कारियां भी दी जाती थीं, जैसे मुर्दे को जीवित कर देना, अंधे की आँखें सही कर देना, चाँद को दो टूकड़े कर देना आदि।
लेकिन यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि पहले तो लोगों ने उन्हें ईश्दूत मानने से इनकार किया कि वह तो हमारे ही जैसा शरीर रखने वाले हैं। फिर जब उनमें असाधारण गुण देख कर उन पर श्रृद्धा भरी नज़र डाली तो किसी समूह ने उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया तो किसी ने उन्हें ईश्वर की सन्तान मान कर उन्हीं की पूजा आरम्भ कर दी। उदाहरण स्वरूप गौतम बुद्ध को देखिए बौद्ध मत के गहरे अध्ययन से केवल इतना पता चलता है कि उन्हों ने ब्रह्मणवाद की बहुत सी ग़लतियों की सुधार की थी तथा विभिन्न पूज्यों का खंडन किया था परन्तु उनकी मृत्यु के एक शताब्दी भी न गुज़री थी कि वैशाली की सभा में उनके अनुयाइयों ने उनकी सारी शिक्षाओं को बदल डाला और बुद्ध के नाम से ऐसे विश्वास नियत किए जिसमें ईश्वर का कहीं भी कोई वजूद नहीं था। फिर तीन चार शताब्दियों के भीतर बौद्ध धर्म के पंडितों ने कश्मीर में आयोजित एक सभा में उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया।
बुद्धि की दुर्बलता कहिए कि जिन संदेष्टाओं नें मानव को एक ईश्वर की ओर बोलाया था उन्हीं को ईश्वर का रूप दे दिया गया।
इसे यूं समझिए कि यदि कोई पत्रवाहक एक व्यक्ति के पास उसके पिता का पत्र पहुंचाता है तो उसका कर्तव्य बनता है कि पत्र को पढ़े ताकि अपने पिता का संदेश पा सके परन्तु यदि वह पत्र में पाए जाने वाले संदेश को बन्द कर के रख दे और पत्रवाहक का ऐसा आदर सम्मान करने लगे कि उसे ही पिता का महत्व दे बैठे तो इसे क्या नाम दिया जाएगा....आप स्वयं समझ सकते हैं।
ऐसा ही बिल्कुल संदेष्टाओं के साथ भी हुआ।
ऐसा ही बिल्कुल संदेष्टाओं के साथ भी हुआ।
जब सातवी शताब्दी में मानव बुद्धि प्रगति कर गई और एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध बढ़ने लगा तो ईश्वर ने अलग अलग हर देश में संदेश भेजने के नियम को समाप्त करते हुए विश्वनायक का चयन किया। जिन्हें हम मुहम्मद सल्ल0 कहते हैं, उनके पश्चात कोई संदेष्टा आने वाला नहीं है, ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा और आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है । उनके समान धरते ने न किसी को देखा न देख सकती है। वही कल्कि अवतार हैं जिनकी हिन्दु समाज में आज प्रतीक्षा हो रही है।
प्रश्नः अल्लाह ने सभी को अपने मज़हब का क्यों नहीं बनाया...???
उत्तरः इसका उत्तर क़ुरआन ने विभिन्न स्थानों पर दिया है क़ुरआन में कहा गयाः "(ऐ मुहम्मद) यदि आपका रब चाहता तो सब लोगों को एक रास्ते पर एक उम्मत कर देता, वे तो सदैव मुखालफ़त करने वाले ही रहेंगे। सिवाए उनके जिन पर आपका रब दया करे, उन्हें तो इसी लिए पैदा किया है। " (सूरः हूद 118) यही विषय सूरः यूनुस 96,सरः माईदा 48,सूरः शोरा 8,सूरः नहल 93 और अन्य विभिन्न आयतों में बयान किया गया है।
यह संसार परीक्षा-स्थल है परिणाम स्थल नहीं। यहाँ हर व्यक्ति को एक विशेष अवधि के लिए बसाया गया है ताकि उसका पैदा करने वाला देखे कि कौन अपने रब की आज्ञाकारी करके उसका प्रिय बनता है और औन उसकी अवज्ञा करके उसके प्रकोप का अधिकार ठहरता है। इसके लिए उनसे संदेष्टाओं द्वारा अपना संदेश भेजा और सत्य को खोल खोल कर बयान कर दिया है। फिर इनसान को उसे अपनाने की आज़ादी भी दे दी है कि चाहे तो उसके नियम को अपना कर उसके उपकारों का अधिकार बने और चाहे तो उसके नियमों का उलंधन कर के उसके प्रकोप को भुगतने के लिए तैयार हो जाए। यही है जीवन की वास्तविकता।
इस बिन्दु को क़ुरआन की यह आयत स्पष्ट रूप में बयान करती हैः "और यदि आपका रब चाहता तो धरती के सभी लोग ईमान ले आते, तो क्या आप लोगों को ईमान लाने के लिए मजबूर करेंगे" (सूरः यूनुस 99)
प्रश्नः बहुत से सवाल ऐसे हैं, जिनके जवाब हम बचपन से तलाश रहे हैं...मसलन ….अल्लाह ने संसार की सृष्टि करके इसे हिन्दुओं के हवाले क्यों कर दिया...??? हिन्दुओं के दौर में भी संसार आगे बढ़ा... कई सभ्यताएं आईं...
उत्तरः इसका उत्तर ऊपर दिया जा चुका है कि पहले लोग एक ही धर्म पर थे, बाद में अलग अलग धर्मों में बट गए, वही प्रथम धर्म आज इस्लाम के नाम से जाना जाता है।
उत्तरः इसका उत्तर ऊपर दिया जा चुका है कि पहले लोग एक ही धर्म पर थे, बाद में अलग अलग धर्मों में बट गए, वही प्रथम धर्म आज इस्लाम के नाम से जाना जाता है।
प्रश्नः दूसरे मज़हब के लोगों को किसने पैदा क्या है...??? अगर अल्लाह ने... तो फिर क्यों अल्लाह को मानने वाले 'मुसलमान' दूसरे मज़हबों के लोग को 'तुच्छ' समझते हैं... क्या अपने ही अल्लाह की संतानों (दूसरे मज़हब के लोगों) के साथ ऐसा बर्ताव जायज़ है...???
उत्तरःजी हाँ! सारे इनसानों को अल्लाह ही ने पैदा किया परन्तु उन्हें जो चलने का नियम दिया उसे अधिकांश लोगों ने अपने सवार्थ हेतु परिवर्तित कर के विभिन्न धर्मों में विभाजित हो गए, आज वह अपने सृष्टिकर्ता के नियमानुसार नहीं चल रहे हैं हालाँकि जिस उद्देश्य के अनतर्गत परमेश्वर ने मानव की रचना की थी उसकी वह प्रतिदिन अवहेलना कर रहा है ज़रा कल्पना कीजिए कि एस कर्मचारी किसी कम्पनी में बहाल होता है, कम्पनी उसे वेतन देती है परन्तु वह काम किसी दूसरी कम्पनी में जा कर करने लगे तो कम्पनी के मनेजर को उस पर अवश्य क्रोध होगा। फिर भी एक मुसलमान किसी धर्म के मानने वाले को तुच्छ नहीं समझता और न ही उसके साथ अलग व्यवहार करता है। जो लोग ऐसी मानसिकता रखते हैं वह इस्लामी नियम से अवगत नहीं।
उत्तरःजी हाँ! सारे इनसानों को अल्लाह ही ने पैदा किया परन्तु उन्हें जो चलने का नियम दिया उसे अधिकांश लोगों ने अपने सवार्थ हेतु परिवर्तित कर के विभिन्न धर्मों में विभाजित हो गए, आज वह अपने सृष्टिकर्ता के नियमानुसार नहीं चल रहे हैं हालाँकि जिस उद्देश्य के अनतर्गत परमेश्वर ने मानव की रचना की थी उसकी वह प्रतिदिन अवहेलना कर रहा है ज़रा कल्पना कीजिए कि एस कर्मचारी किसी कम्पनी में बहाल होता है, कम्पनी उसे वेतन देती है परन्तु वह काम किसी दूसरी कम्पनी में जा कर करने लगे तो कम्पनी के मनेजर को उस पर अवश्य क्रोध होगा। फिर भी एक मुसलमान किसी धर्म के मानने वाले को तुच्छ नहीं समझता और न ही उसके साथ अलग व्यवहार करता है। जो लोग ऐसी मानसिकता रखते हैं वह इस्लामी नियम से अवगत नहीं।
प्रश्नः क्या दूसरे मज़हबों के धार्मिक ग्रंथों और उनके ईष्ट देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक बातें करने से... उनका दिल दुखाने से अल्ल्लाह ख़ुश होगा...???
उत्तरः हमें पूर्ष विश्वास है कि अन्य धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ या तो मानव रचित हैं अथवा किसी युग में ईश्वरीय ग्रन्थ थे परन्तु आज वह सुरक्षित न रहे और उनमें देवी देवताओं की बातें भी सम्मिलित हो चुकी हैं लेकिन क़ुरआन आज तक पूर्ण रूप में सुरक्षित है स्वयं उसकी आधुनिक शैली इस पर प्रमाण है।
इन स्पष्ट तथ्यों के बावजूद इस्लाम दूसरे धर्मों के बारे में अपमानजनक बातें कहने की अनुमति कदापि नहीं देता। देखिए सूरः अनआम 108 " जो लोग अल्लाह के अतिरिक्त अन्य की पूजा करते हैं उनकों बुरा भला मत कहो कि वह अज्ञानता के कारण अल्लाह को बुरा भला कहेंगे।"
उत्तरः हमें पूर्ष विश्वास है कि अन्य धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ या तो मानव रचित हैं अथवा किसी युग में ईश्वरीय ग्रन्थ थे परन्तु आज वह सुरक्षित न रहे और उनमें देवी देवताओं की बातें भी सम्मिलित हो चुकी हैं लेकिन क़ुरआन आज तक पूर्ण रूप में सुरक्षित है स्वयं उसकी आधुनिक शैली इस पर प्रमाण है।
इन स्पष्ट तथ्यों के बावजूद इस्लाम दूसरे धर्मों के बारे में अपमानजनक बातें कहने की अनुमति कदापि नहीं देता। देखिए सूरः अनआम 108 " जो लोग अल्लाह के अतिरिक्त अन्य की पूजा करते हैं उनकों बुरा भला मत कहो कि वह अज्ञानता के कारण अल्लाह को बुरा भला कहेंगे।"
प्रश्नः 'मुसलमानों' की अपने मज़हब को श्रेष्ठ समझने और दूसरे मज़हबों को 'तुच्छ' समझने की मानसिकता ने बहुत से विवादों को पैदा कर दिया है... इनमें सबसे अहम है दहशतगर्दी... जिससे आज कई मुल्क जूझ रहे हैं... इससे इनकार नहीं किया जा सकता...
उत्तरः जी नहीं! हमें कहने दिया जाए कि एक सच्चा मुसलमान सच्चा मानव होता है क्योंकि वह विश्व भाईचारा पर विश्वास रखता है। वह सारे संसार के लोगों को अपना भाई समझता है। इस लिए एक सच्चा मुस्लिम कभी किसी अन्य धर्म के मानने वाले को अकारण हीनि नहीं पहुंचा सकता। और दहशतगर्दी का इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं और हाँ! मात्र इस्लाम में नहीं अपितु हर धर्म में दहशतगर्द पाए जाते हैं जिसका इनकार नहीं किया जा सकता।
उत्तरः जी नहीं! हमें कहने दिया जाए कि एक सच्चा मुसलमान सच्चा मानव होता है क्योंकि वह विश्व भाईचारा पर विश्वास रखता है। वह सारे संसार के लोगों को अपना भाई समझता है। इस लिए एक सच्चा मुस्लिम कभी किसी अन्य धर्म के मानने वाले को अकारण हीनि नहीं पहुंचा सकता। और दहशतगर्दी का इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं और हाँ! मात्र इस्लाम में नहीं अपितु हर धर्म में दहशतगर्द पाए जाते हैं जिसका इनकार नहीं किया जा सकता।
प्रश्नःजब अल्लाह ने सभी को 'मुसलमान' पैदा नहीं किया तो फिर क्यों मज़हब के ठेकेदार सभी कौमों को 'मुसलमान' बनाने पर तुले हुए हैं...???
बहन जी ! कोई भी मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम को मुसलमान बनाने का प्रयास नहीं करता है, इस्लाम का सम्बन्ध दिल से है, एक व्यक्ति स्वयं अपने दिल से इसे अपनाता है। ऊपर तो आपने क़ुरआन की यह आयत पढ़ ही ली है कि "क्या आप लोगों को ईमान लाने के लिए मजबूर करेंगे" (सूरः यूनुस 99) इसी लिए अगर कोई सौ बार भी कलमा पढ़ ले और स्वयं को मुसलमान कहे लेकिन यह दिल से नहीं है तो वह मुसलमान नहीं हो सकता। तात्पर्य यह कि एक मुस्लिम किसी को मुसलमान बनाता नहीं है बल्कि उनकी धरोहर का उनके समक्ष परिचय कराता है और बस। यही तो असल मानवता है कि अपने भाई को उसके वास्तविक पूज्य से परिजीत करा दिया जाए मानना न मानना उसके हाथ में है।
बहन जी ! कोई भी मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम को मुसलमान बनाने का प्रयास नहीं करता है, इस्लाम का सम्बन्ध दिल से है, एक व्यक्ति स्वयं अपने दिल से इसे अपनाता है। ऊपर तो आपने क़ुरआन की यह आयत पढ़ ही ली है कि "क्या आप लोगों को ईमान लाने के लिए मजबूर करेंगे" (सूरः यूनुस 99) इसी लिए अगर कोई सौ बार भी कलमा पढ़ ले और स्वयं को मुसलमान कहे लेकिन यह दिल से नहीं है तो वह मुसलमान नहीं हो सकता। तात्पर्य यह कि एक मुस्लिम किसी को मुसलमान बनाता नहीं है बल्कि उनकी धरोहर का उनके समक्ष परिचय कराता है और बस। यही तो असल मानवता है कि अपने भाई को उसके वास्तविक पूज्य से परिजीत करा दिया जाए मानना न मानना उसके हाथ में है।
प्रश्नःइस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद (सल्लल.) से पहले जो एक लाख 24 हज़ार नबी हुए हैं... वो किस मज़हब को मानते थे...???
उत्तरः यहाँ इस गलतफ़हमी को दूर कर लीजिए कि इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद सल्ल0 नहीं बल्कि वह इस्लाम के अन्तिम संदेष्टा हैं जिसका विस्तृत बयान ऊपर हो चुका है। और मानव मार्गदर्शन हेतु एक लाख चौबीस हज़ार नबी जो आए वे सब के सब इस्लाम के मानने वाले थे जैसा कि यह बात ऊपर बताई जा चुकी है। एक बार फिर ऊपर की व्याख्या को पढ़ लिया जाए। धन्यवाद।
उत्तरः यहाँ इस गलतफ़हमी को दूर कर लीजिए कि इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद सल्ल0 नहीं बल्कि वह इस्लाम के अन्तिम संदेष्टा हैं जिसका विस्तृत बयान ऊपर हो चुका है। और मानव मार्गदर्शन हेतु एक लाख चौबीस हज़ार नबी जो आए वे सब के सब इस्लाम के मानने वाले थे जैसा कि यह बात ऊपर बताई जा चुकी है। एक बार फिर ऊपर की व्याख्या को पढ़ लिया जाए। धन्यवाद।
अंत में हम अल्लाह (ईश्वर) से प्रार्थना करते हैं कि हे अल्लाह! हे ईश्वर! तू हमें अपने सत्य नियम से अवगत करा। क्योंकि हमें एक दिन मरना है, तेरे पास पहुंचना हैं और अपने कर्मों का लेखा जोखा देना है। हे अल्लाह! तू ही हमारा मार्गदर्शन कर सकता है तेरे अतिरिक्त कोई ऐसा नहीं जो हमारा मार्गदर्शन कर सके। आमीन
4 टिप्पणियां:
न पहले हिन्दु था न मुसलमान था।
केवल और केवल इन्सान था।।
न पहले खुदा था न भगवान था।
केवल और केवल इन्सान था।।
भाई दिनेश अग्रवाल साहब !
हमें बताया जाय कि जब सबसे पहले इंसान है तो फिर इंसान कैसे आया ? जबके हम जानते हैं कि कोई भी चीज़ बिना बनाय नहीं बनती
भाई दिनेश अग्रवाल साहब !
मैं समझता हूँ की आपके मन में अधार्मि इस कारण पैदा हुई है कि आपने अपने समाज में मूर्तियों की पूजा होते देखा जिसे वास्तव में बुद्धि सवीकार नहीं करती. रहा एक ईश्वर की पूजा जो मात्र इस्लाम का सार है तो यह बिलकुल बुद्धि संगत है.
Sar aapke kehne ka matlab ye hai ki Hindu Dharam me murti pooja hoti hai to ye adharmi hone ka karan hai.
Or aap kehte ho ki aake jitne bhi nabi hue hai wo sab ISLAM ko maante the to aapko bata du ki aapke islam ISA se 1500 years pehle aaya ye islam ki history khud kehti Kahi ye nahi likha ki Islam Duniya ka pehla dharam hai. Mujhe Kisi dharam se kisi tarah ka koi Problem Nahi but koi dharam jab khud ko bada kehta hai to mujhe achha nahi lagta chahe wo Hindu ho ya Muslim ya Christan. Aap kehte ho ki Quran me bohat saare chamatkar kiye gaye to Or bhi Dharam me bhi to kiye gaye hai Yahudi dharam me bhi or hindu Dharam me bhi. ye Dunia Chamatkaro se bhari padi sir. Mujhe ye maanane me koi pareshaani nahi ki Quran Bhagwaan ki likhi hui kitab hai Or isme Changes nahi hue hai hai. Par Ye manana ki isne chamatkar kiya hai isliye ye mahan kitab hai to Phir aapko bata du ki MAHABHARAT. Me 124000 Sholok the kya ye koi bhi likh sakta hai apne pure jeevan me. Rigwed jo ki dunia ki sabse old book hai india ki hai. World ki oldest Language Sanskrit INDIA ki hai. China ki language bhi bohot old hai. Aapka manana hai ki Quran me science ke baare me jo bhi baate kahi gahi hai usse pehle koi nahi jaanta tha but, Misrr ne usse kahi pehle Chemestry ko Kahi behter Devlop kar liya the Or India me bhi Planetes ki chall or sor mandal ke baare me bohot pehle bata diya tha. Rahi baat Chamatkaaro ki to India me Aaj bhi Bohot saari Jagah hai jaha chamatkaar hoti rehti hai chaahe wo mandir me ho masjid me.
Sach to ye hai ki God hamaari astha me hai. or jaha aapne murti pooja ki baat ki hai wahi aapko bata du ki sabse zyada chamatkar murtion ne hi kaha hai
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