पहला नाम खुदा का दूजा नाम रसूल।
तीजा कलमा पढ़ नानका दरगे पावें क़बूल।
डेहता नूरे मुहम्मदी डेगता नबी रसूल।
नानक कुदरत देख कर दुखी गई सब भूल
ऊपर की पंक्तियों को गौर से पढ़िए फिर सोचिए कि स्पष्ट रूप में गुरू नानक जी ने अल्लाह और मुहम्मद सल्ल0 का परिचय कराया है। और इस्लाम में प्रवेश करने के लिए यही एक शब्द बोलना पड़ता है कि मैं इस बात का वचन देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। औऱ मैं इस बात का वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 अल्लाह के अन्तिम संदेष्टा और दूत हैं।
न इस्लाम में प्रवेश करने के लिए खतना कराने की आवशेकता है और न ही गोश्त खाने की जैसा कि कुछ लोगों में यह भ्रम पाया जाता है। यही बात गरू नानक जी ने कही है और मुहम्मद सल्ल0 को मानने की दावत दी है। परन्तु किन्हीं कारणवश खुल कर सामने न आ सके और दिल में पूरी श्रृद्धा होने ते साथ मुहम्मद सल्ल0 के संदेष्टा होने को स्वीकार करते थे।
(2) संत प्राणनाथ जीः ( मारफत सागर क़यामतनामा ) में कहते हैं-
आयतें हदीसें सब कहे, खुदा एक मुहंमद बरहक।
और न कोई आगे पीछे, बिना मुहंमद बुजरक ।
अर्थात् क़ुरआन हदीस यही कहती है कि अल्लाह मात्र एक है और मुहम्मद सल्ल0 का संदेश सत्य है इन्हीं के बताए हुए नियम का पालन करके सफलता प्राप्त की जा सकती है। मुहम्मद सल्ल0 को माने बिना सफलता का कोई पथ नहीं।
(3) तुलसी दास जीः
श्री वेद व्यास जी ने 18 पुराणों में से एक पुराण में काक मशुण्ड जी और गरूड जी की बात चीत को संस्कृत में लेख बद्ध किया है जिसे श्री तुलसी दास जी इस बात चीत को हिन्दी में अनुवाद किया है। इसी अनुवाद के 12वें स्कन्द्ध 6 काण्ड में कहा गया है कि गरुड़ जी सुनो-
यहाँ न पक्ष बातें कुछ राखों। वेद पुराण संत मत भाखों।।
देश अरब भरत लता सो होई। सोधल भूमि गत सुनो धधराई।।
अनुवादः इस अवसर पर मैं किसी का पक्ष न लूंगा। वेद पुराण और मनीषियों का जो धर्म है वही बयान करूंगा। अरब भू-भाग जो भरत लता अर्थात् शुक्र ग्रह की भांति चमक रहा है उसी सोथल भूमि में वह उत्पन्न होंगे।
इस प्रकार हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की विशेषताओं का उल्लेख करने के बाद अन्तिम पंक्ति में कहते हैं-
तब तक जो सुन्दरम चहे कोई।
बिना मुहम्मद पार न कोई।।
यदि कोई सफलता प्राप्त करना चाहता है तो मुहम्मद सल्ल0 को स्वीकार ले। अन्यथा कोई बेड़ा उनके बिना पार न होगा।
14 टिप्पणियां:
Ha Ha HA HA HA ha ha ha HA HA GA GA GA GA JA JA JA
nice
बेहतरीन जानकारी दी है आपने!
मेरा ब्लॉग
खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
Tarkeshwar Giri जी, यह आपने जो लिखा है Ha Ha HA HA HA ha ha ha HA HA GA GA GA GA JA JA JA इसका क्या मतलब हुआ? कुछ समझ में नहीं आया. या फिर इतनी अच्छी बातें सुन कर आपके मुंह से यूँ ही मदहोशी में निकल गया?
कुछ गलत कहा हो तो माफ़ी चाहता हूँ.
सिख धर्म के आधे अधूरे प्रमाण प्रस्तुत ना करे...लगता है आप को सिख धर्म की जानकारी नही है....सिख धर्म का जन्म ही मुसलमानों के अत्याचारो से मुक्ति दिलाने के लिए हुआ था।
आपने जो उपरोक्त तुलसीदास जी के नाम से संस्कृ्त श्लोक और दोहे का उल्लेख किया है...क्या आप स्पष्ट करेंगें कि ये दोहा और श्लोक किस ग्रन्थ, किस पुराण में वर्णित है...या फिर यूँ ही निज स्वार्थपूर्ती हेतु कुछ का कुछ बनाया गया है!
दूसरी बात ये कि बाबा नानक की उस वाणी में आपने अल्लाह और पैगम्बर का नाम तो देख लिया लेकिन क्या आप ये जानकारी भी रखते हैं कि आगामी पंक्ति में लिखे "डेहता" और "डिगता" शब्द क्या मायने रखते है ?
गर पता हो तो बताएं...ओर यदि स्वयं जानकारी न हो तो चाहे किसी से पूछ के बता दीजिए....
बेहतरीन पोस्ट
भई अभी तक आकाओं से जवाब नहीं मिला :) कहो तो हम बता दें. ये फालतू का पाखंड रचना बन्द कीजिए और कुछ ढंग का काम करें तो जीवन सुधरे...सिर्फ सिर पर टोपी पहन लेने से ही मुसलसल्ल ईमान नहीं आ जाता :)
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी !आपने बिल्कुल सही कहा कि सिर पर टोपी पहनने से ईमान नहीं आ जाता। जी हाँ! इस्लाम का सम्बन्ध हृदय से है,और इस्लाम मानव की धरोहर है, इसका सम्बन्ध किसी जाती विशेष से नहीं, हमारा 100 प्रतिशत विश्वास है कि ईश्वर की ओर से आया हुआ नियम सुरक्षित रूप में आज हमारे पास मात्र इस्लाम है। इसी का पालन कर के मानव मरने के बाद मुक्ति पा सकते हैं इसके अतिरिक्त मुक्ति का कोई और साधन नहीं।
लेकिन हम सन्तों अथवा अन्य धर्मों का जो हवाला दे रहे हैं इस्लाम की सत्यता को सिद्ध करने के लिए नहीं अपितु यह बताने के लिए कि आज दुनिया अंधकार में जी रही है। आशा है कि प.डी. जी मेरी बात पर चिंतन मनन करेंगे।
पं.डी.के.शर्मा"वत्स जी !
जहाँ तक हवाले की बात है तो हमें अपने आकाओं से सम्पर्क करने की आवश्यकता नहीं है मेरे पास स्वयं हवाला मौजूद है। मैं प्रतिदिन ब्लोग नहीं देखता इसलिए उत्तर देने में ताखीर हुई........हाँ तो नोट कीजिए हवाला... संग्राम पुराण,स्कंद 12 कांड 6)
गुरू नानक जी को हम इस्लाम का समर्थक नहीं कहते और न उनका इस्लाम से कोई सम्बन्ध है परन्तु उनकी बातों में इस्लाम का वर्णन आया है इस लिए हम ने इसका हवाला दिया।
बेनामी जी!
जहाँ तक गुरू नानक जी के धर्म की बात है तो यह बिल्कुल सही नहीं, हाँ गुरु नानक जी के हिन्दू धर्म को छोड़ कर अलग धर्म बनाने का अभिप्राय हिन्दू धर्म में विभिन्न गलत आस्थाओं का प्रचलन था।
हाँ यह सही है कि गुरू नानक जी इस्लाम से प्रभावित हुए और एक ईश्वर की कल्पना दिया पर स्पष्ट रूप में ईश्वर को समझा न सके क्योंकि यह मानव का प्रयास था। कुरआन ईश्वर की ओर से अवतरित ग्रन्थ आज अपनी वास्तविक रूप में मौजूद है जो ईश्वर का सही परिचय कराता है।
आशा है कि आपके संदेह का निवारण हो गया होगा।
सलाम अलैकुम
बहुत ही अच्छी बात कही सफात भाइ आप ने
assalamu alykum.
Jo guru nanak ne likha k . Pehla name khuda ka. Wo kaha par likha puri dalel dejiye
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