शनिवार, 29 जनवरी 2011

क्या क़ुरआन मानव रचिच है ? (1)

कुरआन के सम्बन्ध में हमने पिछले पोस्टों में जो तथ्य बयान किए हैं उन पर बिना किसी पक्षपात के एक दृष्टि डालने से ही ज्ञात होता है कि क़ुरआन मानव रचित ग्रन्थ नहीं हो सकता अपितु ऐसी कल्पना इतिहास तथा बुद्धि दोनों के प्रतिकुल है।
डा0 जी डबल्यू लिड्ज़ कहते हैः " प्रायः कहा जाता है कि पवित्र क़ुरआन के लेखक मुहम्मद सल्ल0 हैं और उसमें जो भी बातें हैं तौरात और ईंजील से ली गई हैं, यह ग़लत है, मेरा विश्वास है कि क़ुरआन ईश-वाणी है " ।
प्रिय मित्र ! यदि आप निम्नलिखित तथ्यों पर चिंचन मनन करेंगे तो स्वयं आप क़ुरआन को ईश्वर की वाणी मानने पर विवश होंगे।
(1) क़ुरआन की भाषा शैली:
क़ुरआन का सब से महान चमत्कार यह है कि इसकी शैली मानव शैली से सर्वथा भिन्न है। वह अरब जिसमें क़ुरआन का अवतरण हुआ था अपने शुद्ध साहित्यिक रसासवादन के लिए अति प्रसिद्ध थे, उनको अपनी भाषा शैली पर बड़ा गर्व था। ऐसे लोगों को क़ुरआन ने चुनौति दी -
" और यदि उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा है, तुम किसी संदेह में होतो उस जैसी कोई सूरः ले आओ और अल्लाह के हट कर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास है, यदि तुम सच्चे हो"। ( सूरः 2 आयत 23-24)
लेकिन इतिहास साक्षी है कि पूरे अरब उसके समान एक अध्याय तो क्या एक श्लोक भी पेश करने में असमर्थ्य रहे हालाँकि वह मुहम्मद सल्ल0 के विरोद्ध में पूरे साहसी थे और आपत्ति का ओई अवसर खोना नहीं चाहते थे तथा अरबी भाषा पर भी पूरी महारत रखते थे। यदि कुरआन मानव रचना होता तो कुछ लोग अवश्य उसके समान पेश कर सकते थे परन्तु न कर सके।
यह ग्रन्थ आज तक संसार वालों के लिए चुनौति बना हुआ है तथा रहती दुनिया तक बना रहेगा।
(2) उम्मी नबी पर क़ुरआन का अवरणः
यह भी एक सत्य है कि ईश्वर ने अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन के अवतरण के लिए ऐसे संदेष्टा का चयन किया जो न लिखना जानते थे न पढ़ना। मुहम्मद सल्ल0 के जन्म के पूर्व ही उनके पिता का देहांत हो गया। छः वर्ष की आयु हुई तो माता भी चल बसीं और आठ वर्ष के हुए तो दादा का साया भी सर से उठ गया कारणवश शिक्षा-दिक्षा से वंचित रहे और न ही उन्हें किसी विद्वान की संगति प्राप्त हुई थी आखिर ऐसे व्यक्ति से लिए यह कैसे सम्भव हो सकता था कि वह ऐसी अनुपम साहित्यिक पुस्तुक तैयार कर ले। यह ईश्वर की चाहत थी कि अन्तिम संदेष्टा पढ़े लिखे न हों ताकि कोई उन पर यह आरोप न लगाए कि वह क़ुरआन को अपनी ओर से बना कर अरबों की आखों में धूल झोंक रहे हैं।
आप अशिक्षित ( उम्मी ) होने के बावजूद लोगों में पवित्रता, सच्चाई और अमानतदारी से प्रसिद्ध थे यहाँ तक कि लोगों ने आपको सादिक़ (सच्चा) और अमीन (अमानतदार) की उपाधि से रखी थी। क्या ऐसा व्यक्ति जो लोगों के बीच सच्चाई और अमानदतारी से प्रसिद्ध हो अपनी बात ईश्वर की ओर सम्बन्धित कर सकता है? यह बात बुद्धिसंगत नहीं हो सकती । ज्ञात यह हुआ कि मुहम्मद सल्ल0 का पूरा ज्ञान ईश्वरीय ज्ञान था। ( शेष अगले पोस्ट में)

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