शनिवार, 29 जनवरी 2011

क़ुरआन के व्यवहारिक रूप की सुरक्षा

प्रिय मित्रो ! क़ुरआन का एक बहुत बड़ा चमत्कार यह है कि इसके शब्द और अर्थ की सुरक्षा के साथ साथ इसके व्यावहारिक रूप की सुरक्षा का भी पूरा पूरा प्रबन्ध किया गया। वह इस प्रकार कि क़ुरआन मुहम्मद साहब पर जिस शब्द में अवतरित होता आप सल्ल0 उसका अर्थ अपने साथियों को प्रकाशना द्वारा समझाते, फिर समझाने ही पर बस नहीं करते अपितु उसे व्यवहारिक रूप देकर बताते भी थे जिसे आज की भाषा में थ्यूरी (Theory) के साथ साथ परेक्टिकल (Practical) कहा जाता है।
क़ुरआन जिस वातावरण में अवतरित हुआ, जिस सन्दर्भ में आयतें उतरीं उस संदर्भ को भी सुरक्षित कर दिया गया। यहाँ तक कि अवतरण के संदर्भ पर विशेष रूप में पुस्तकें लिखी गई हैं जिस से आयतों के संदर्भ का सरलतापूर्वक ज्ञान होता है। इस विषय को क़ुरआन के विशेषज्ञों ने " अस्बाबे नुज़ूल " ( अवतरण के कारण) का नाम दिया है। अर्थात् आयत के अवतरित होने का कारण और संदर्भ।
फिर जिस संदेष्टा अर्थात् मुहम्मद सल्ल0 पर क़ुरआन का अवतरण हुआ उनकी जीवनी को पूर्ण रूप में सुरक्षित कर दिया गया क्योंकि मुहम्मद सल्ल0 ने क़ुरआनी आदेशों का पालन कर के उनके बीच अपना आदर्श छोड़ा था ताकि कल आकर कोई ऐसा न कहे कि मैं क़ुरआनी आदेशों को अपने व्यवहारिक जीवन में जगह देने की क्षमता नहीं रखता।
इसी लिए जब एक बार मुहम्मद सल्ल0 की पत्नी हज़रत आइशा रज़ि0 से पूछा गया कि मुहम्मद सल्ल0 का आचार व्यवहार कैसा था ? तो आपने उत्तर दिया : क्या तुमने क़ुरआन नहीं पढ़ा। कहाँ: हाँ, तो उन्होंने फरमाया: "आपका आचार व्यवहार क़ुरआन था।" अर्थात् आप क़ुरआन का चलता फिरता आदर्श थे।
जहाँ कोई आदेश आया सर्वप्रथम उसे व्यवहारिक रूप दिया। आज भी कोई व्यक्ति मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी को खंगाल कर देश ले उसे आप सल्ल0 क़ुरआन का पूर्ण व्यवहारिक आदर्श देखाई देंगे जिस से वह समझ सकता है कि क़ुरआन एक Theory है और मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी Practical।
मुहम्मद सल्ल0 ने बाल्यावस्था से ले कर अन्तिम सांस तक जो कुछ किया और बोला उसे उनके साथियों ने कंठस्थ किया और कुछ लोगों ने उसे लिखा फिर बाद की पीढियों तक उसे पहुंचाया, जिनकी संख्या लाखों तक पहुंचती है फिर सुनने वालों ने दूसरों को सुनाया यहाँ तक कि उसे लिपिबद्ध कर दिया गया। जैसे फ़लाँ ने फलाँ से कहा और फलाँ ने फलाँ से............. कहा कि मैंने अपने कानों से मुहम्मद सल्ल0 को यह कहते हुए सुना है।
जिन व्यक्तियों द्वारा यह खबरें दूसरों तक पहुंचती हैं उनको रावी कहते हैं। इस्लामी विद्वानों ने उन रावियों की पूरी जीवनी लिखी है। यदि उन में से कोई कभी सामान्य लोगों के साथ झूठ बोलते पाया गया अथवा उसकी स्मरण-शक्ति कम्ज़ोर थी तो उसके माध्यम से बयान किए गए प्रवचनों को रद्द कर दिया गया। ताकि मुहम्मद सल्ल0 का प्रवचन और उनकी जीवनी हर प्रकार से संदेहों से पवित्र रहे।
इस प्रकार देखा जाए तो आज मानव इतिहास में मुहम्मद सल्ल0 ही वह महान व्यक्ति हैं जिनके जीवन का एक एक वाक्य - बाल्यावस्था से लेकर मृत्यु तक- हम तक सर्वथा सुरक्षित रूप में पहुंचा है।
आज इस धरती पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रन्थ पाए जाते हैं जो सर्वथा प्रमाणित नहीं , चे जाए कि वह व्यवहारिक रूप में सुरक्षित हों। यह मात्र क़ुरआन का चमत्कार है कि एक ओर क़ुरआन थ्यूरी (Theory) है तो दूसरी ओर मुहम्मद साहब की जीवनी उसका परेक्टिकल (Practical) रूप।

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