बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

कुरआन के संख्यात्मक चमत्कार

क़ुरआन ईश्वर की ओर से अवतरित सम्पूर्ण मानव के लिए एक उत्तम उपहार और रहती दुनिया तक के लिए एक महान चमत्कार है। क़ुरआन स्वयं घोषणा करता हैः "आप कह दीजिए कि यदि प्रत्येक मानव तथा सारे जिन्नात मिल कर इस क़ुरआन के समान लाना चाहें तो उन सब के लिए इसके समान लाना असम्भव है। यधपि वह (परस्पर) एक दूसरे के सहायक भी बन जाएं।" (सूरः बनी इस्राईल 17 आयत 88)
क़ुरआन उस अल्लाह की वाणी है जो संसार का उत्पत्तिकर्ता, शासक और ज्ञानी है। जो लोगों के वर्तमान अतीत और भविष्य का जानने वाला है। क़रआन का चमत्कार रहती दुनिया तक बाक़ी रहेगा।
प्रतिदिन नवीन शौध के आधार पर क़ुरआन से सम्बन्धित अदभूत प्रकार की चमत्कारियाँ हमारे समक्ष प्रकट हो रही हैं। उन चमत्कारियों में से एक कुरआन के शब्दों में संख्यात्मक समानताओं का पाया जाना है जो स्पष्ट प्रमाण हैं कि कुरआन पृथ्वी व आकाश के सृष्टिक्रता की ओर से अवतरित किया हुआ महान ग्रन्थ है।
क़ुरआनी शब्दों में समानताओं और चमत्कारियों का पाया जाना वास्तव में बड़ा आश्चर्यजनक विषय है। मुसलमान विद्वानों ने नवीनतम सांख्यिकीय उपकरण और कंप्यूटर के माध्यम से आज के आधुनिक युग में इस गणितीय चमत्कार को मानव के सामने पेश किया है।
यह चमत्कार संख्या पर आधारित है और आँकड़े स्वयं बालते हैं जिसे न चर्चा का विषय बनाया जा सकता है और न ही इसका इनकार किया जा सकता है। अल्लाह ने चाहा कि शब्दों का यह चमत्कार आज के युग में उदित हो ताकि प्रगतिशिल लोगों के लिए क़ुरआन विश्वास का आधार बने। क़ुरआन कहता हैः " हम अवश्य उन्हें अपनी निशानियाँ धरती व आकाश में देखाएंगे और स्वयं उनकी अपनी ज़ात में भी यहाँ तक कि उन पर खुल जाए कि सत्य यही है।" ( हा मीम सज्दा 41 आयत 53)
तो लीजिए यह हैं कुछ क़ुरआन के संख्यात्मक आंकड़ेः
क़ुरआन में कुछ शब्द ऐसे हैं जो अपने समान शब्द अथवा अपने से विलोम शब्द के साथ दोहराए गए हैं उदाहरण के लिए देखिएः
हयात (जीवन) 145 बार दोहराया गया है .......... तो मौत 145 बार ही दोहराया गया है।
सालिहात (नेकियाँ) 167 बार दोहराया गया है ....... तो सय्येआत (बुराइयाँ) 167 बार ही दोहराया गया है।
दुनिया 115 बार दोहराया गया है......... तो आखिरत 115 बार ही दोहराया गया है।
मलाईकः (स्वर्गदूतों) 88 बार दोहराया गया है .......... तो शैतान 88 बार ही दोहराया गया है।
मुहब्बः (प्यार) 83 बार दोहराया गया है...........तो ताअत ( आज्ञाकारिता) 83 बार ही दोहराया गया है।
हुदा (मार्गदर्शन) 79 बार दोहराया गया है ...........तो रहमत (दया) 79 बार ही दोहराया गया है।
शिद्दत (तीव्रता) 102 बार दोहराया गया है .......... तो सब्र (धैर्य) 102 बार ही दोहराया गया है।
अस्सलाम (शांति)50 बार दोहराया गया है .......... तो तय्येबात (पाकीज़गियाँ) 50 बार ही दोहराया गया है।
इब्लीस (शैतान) 11 बार दोहराया गया है ......... तो अल्लाह से शरण मांगना 11 बार ही दोहराया गया है।
जहन्नम (नरक) और उसके डेरिवेटिव 77 बार दोहराया गया है ....... तो जन्नत (स्वर्ग) और उसके डेरिवेटिव 77 बार ही दोहराया गया है।
अर्र-जुल (पुरुष) 24 बार दोहराया गया है ......... तो अल-मरअः (स्त्री) 24 बार ही दोहराया गया है।
क़ुरआन में कुछ शब्द ऐसे हैं जिनके बीच संतुलित और सटीक रूप में सांख्यिकिय बराबरी पाई जाती हैः उदाहरण-स्वरूप
साल में 12 महीने होते हैं ............ तो शह्र ( महीना) 12 बार ही दोहराया गया है
साल में 365 दिन होते हैं तो शब्द यौम (दिन) 365 बार ही दोहराया गया है।
अब हमें बताईए कि क़ुरआन के शब्दों की संख्याओं में भी इस प्रकार संतुलन का पाया जाना क्या यह स्पष्ट प्रमाण नहीं कि यह ग्रन्थ मानव रचित नहीं अपितु संसार के सृष्टा की ओर से अवतरित किया हुआ है।

संदर्भ: (1) मोजज़तुल-अरक़ाम वत्तरक़ीम फील क़ुरआनिल करीम- (पवित्र कुरआन के संख्यात्मक चमत्कार) अब्दुल रज्जाक नौफल - - दारल-किताब अल-अरबी 1982
(2) अलइजाज़ अल-अददी लिलक़ुरआन अल-करीम (पवित्र कुरआन के संख्यात्मक चमत्कार) : अब्दुल रज्जाक

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