हमारे देश भारत में हर धर्म एवं पथ के मानने वालों का अनेकता में एकता का प्रदर्शन करना हर्ष का विषय है परन्तु खेद की बात यह है कि एक दूसरे के प्रति हमारा ज्ञान सुनी सुनाई बातों, दोषपूर्ण विचार तथा काल्पनिक वृत्तांतों पर आधारित है। आज पारस्परिक प्रेम हेतु धर्म को उसके वास्तविक स्वरूप में जानने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य के अन्तर्गत यह ब्लौग आपकी सेवा में प्रस्तुत है। हमें आशा है कि पाठकगण निष्पक्ष हो कर अपनी भ्रांतियों को दूर कर के सही निर्णय लेंगे।
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2 टिप्पणियां:
मान्यवर मेरे साथ भी ऐसा हुआ था। मेरे सभी
रिश्तेदारों एवं मित्रों से तो गणेश जी ने दूध पी
लिया, किन्तु मुझसे नहीं।
लोग मुझे नास्तिक एवं काफिर कहने लगे, मैंने
इस विषय पर गहन चिन्तन किया तथा सभी धर्म-
ग्रंथों का सामान्य अध्ययन किया। जिससे मुझे
ज्ञात हुआ कि जो तर्क एवं बुद्धि के आधार पर सत्य
को स्वीकार करे, वह सच्चा नास्तिक एवं काफिर
है तथा जो बिना तर्क एवं बुद्धि के किसी भी बात
को इसलिये स्वीकार लेते हैं कि वह हमारे धर्म या
मजहब में है या हमारे धर्म गुरू या हमारे पूर्वजों ने
कही है। हमें वह हर हाल में स्वीकार करना है,चाहे
वह सही हो या गलत, धार्मिक या आस्तिक हैं।
यदि मेरी सोच गलत हो तो कृपया मार्ग-दर्शन
करें। आपका आभार व्यक्त करूँगा।
आपने बिल्कुल सही कहा कि आज लोग सांसारिक कामों में बड़ी बुद्धि खपाते हैं परन्तु धर्म के मआमले में अंथविश्वास के शिकार हैं। बल्कि गर्व से कहते हैं कि धर्म के सम्बन्ध में बुद्धि को त्याग दो... पर इस्लाम हमें सब से पहले बुद्धि से काम लेने की ताकीद करता है। आप इस्लाम का कोई भी आदेश बुद्धि के विपरीत नहीं पाएंगे। इस्लाम का अध्ययन कर के देखें।
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