स्वामी विवेकानंद (विश्व-विख्यात
धर्मविद्)
‘‘...मुहम्मद (इन्सानी) बराबरी, इन्सानी भाईचारे और तमाम मुसलमानों के भाईचारे
के पैग़म्बर थे। ...जैसे ही कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है पूरा इस्लाम बिना
किसी भेदभाव के उसका खुली बाहों से स्वागत करता है, जबकि कोई दूसरा धर्म ऐसा नहीं
करता। ...हमारा अनुभव है कि यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने इस (इन्सानी) बराबरी को
दिन-प्रतिदिन के जीवन में व्यावहारिक स्तर पर बरता है तो वे इस्लाम और सिर्फ़
इस्लाम के अनुयायी हैं। —‘टीचिंग्स ऑफ विवेकानंद, पृष्ठ-214, 215, 217,
218) अद्वैत आश्रम, कोलकाता-2004
मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध
साहित्यकार)
यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इस (समता) के विषय में इस्लाम ने अन्य सभी सभ्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है। वे सिद्धांत जिनका श्रेय अब कार्ल मार्क्स और रूसो को दिया जा रहा है वास्तव में अरब के मरुस्थल में प्रसूत हुए थे और उनका जन्मदाता अरब का वह उम्मी (अनपढ़, निरक्षर व्यक्ति) था जिसका नाम मुहम्मद (सल्ल॰) है। मुहम्मद (सल्ल॰) के सिवाय संसार में और कौन धर्म प्रणेता हुआ है जिसने ख़ुदा के सिवाय किसी मनुष्य के सामने सिर झुकाना गुनाह ठहराया है...?’’
‘‘...कोमल वर्ग के साथ तो इस्लाम ने जो सलूक किए हैं उनको देखते हुए अन्य समाजों का व्यवहार पाशविक जान पड़ता है। किस समाज में स्त्रियों का जायदाद पर इतना हक़ माना गया है जितना इस्लाम में? ...हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। इस लिहाज़ से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।’’—‘इस्लामी सभ्यता’ साप्ताहिक प्रताप
विशेषांक दिसम्बर 1925
रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और
इतिहासकार)
‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद ने किया था...वह धर्म, सचमुच, स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे। उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’—‘संस्कृति के चार अध्याय’लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317
अन्नादुराई (डी॰एमके॰ के संस्थापक, भूतपूर्व मुख्यमंत्री
तमिलनाडु)
‘‘इस्लाम के सिद्धांतों और धारणाओं की जितनी ज़रूरत छठी शताब्दी में दुनिया को
थी, उससे कहीं बढ़कर उनकी ज़रूरत आज दुनिया को है, जो विभिन्न विचारधाराओं की खोज में
ठोकरें खा रही है और कहीं भी उसे चैन नहीं मिल सका है।जीवन-संबंधी इस्लामी दृष्टिकोण और इस्लामी जीवन-प्रणाली के हम इतने प्रशंसक क्यों हैं? सिर्फ़ इसलिए कि इस्लामी जीवन-सिद्धांत इन्सान के मन में उत्पन्न होने वाले सभी संदेहों ओर आशंकाओं का जवाब संतोषजनक ढंग से देते हैं।
अन्य धर्मों में शिर्व$ (बहुदेववाद) की शिक्षा मौजूद होने से हम जैसे लोग बहुत-सी हानियों का शिकार हुए हैं। शिर्क के रास्तों को बन्द करके इस्लाम इन्सान को बुलन्दी और उच्चता प्रदान करता है और पस्ती और उसके भयंकर परिणामों से मुक्ति दिलाता है।—‘मुहम्मद (सल्ल॰) का जीवन-चरित्रा’ पर भाषण 7 अक्टूबर 1957 ई॰
डॉ॰ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर (बैरिस्टर,
अध्यक्ष-संविधान निर्मात्री सभा)
‘‘...इस्लाम धर्म सम्पूर्ण एवं सार्वभौमिक धर्म है जो कि अपने सभी अनुयायियों से
समानता का व्यवहार करता है (अर्थात् उनको समान समझता है)। यही कारण है कि सात करोड़
अछूत हिन्दू धर्म को छोड़ने के लिए सोच रहे हैं और यही कारण था कि गाँधी जी के पुत्र
(हरिलाल) ने भी इस्लाम धर्म ग्रहण किया था। यह तलवार नहीं थी कि इस्लाम धर्म का
इतना प्रभाव हुआ बल्कि वास्तव में यह थी सच्चाई और समानता जिसकी इस्लाम शिक्षा देता
है...।’’
—‘दस स्पोक अम्बेडकर’ चौथा खंड—भगवान दास
पृष्ठ 144-145 से उद्धृत
पृष्ठ 144-145 से उद्धृत
पेरियार ई॰
वी॰ रामास्वामी (राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत, द्रविड़ प्रबुद्ध विचारक, पत्रकार,
समाजसेवक व नेता, तमिलनाडु)
‘‘...हमारा शूद्र होना एक भयंकर रोग है, यह कैंसर जैसा है। यह अत्यंत पुरानी शिकायत
है। इसकी केवल एक ही दवा है, और वह है इस्लाम। इसकी कोई दूसरी दवा नहीं है। ‘‘...इस्लाम की स्थापना क्यों हुई? इसकी स्थापना अनेकेश्वरवाद और जन्मजात असमानताओं
को मिटाने के लिए और ‘एक ईश्वर, एक इन्सान’ के सिद्धांत को लागू करने के लिए हुई,
जिसमें किसी अंधविश्वास या मूर्ति-पूजा की गुंजाइश नहीं है। इस्लाम इन्सान को
विवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने का मार्ग दिखाता है...।’’
—‘द वे ऑफ सैल्वेशन’
पृ॰ 13,14,21 से उद्धृत
(18 मार्च 1947 को तिरुचिनपल्ली में दिया गया भाषण)
अमन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1995 ई॰
पृ॰ 13,14,21 से उद्धृत
(18 मार्च 1947 को तिरुचिनपल्ली में दिया गया भाषण)
अमन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1995 ई॰
4 टिप्पणियां:
yeh jaankari behad aham hai,isase' musalman aur deegar majhub waloN ko aapsee saamanjasya banane mai madad milegi'.
Nice post.
Apki ek post yahan bhi bahut pasand ki ja rahi hai. Aap ise Facebook par share bhi kar sakte hain.
Link yh hai-
नमाज़ का समय निर्धारित होता है
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%A8%E0%A4%AE-%E0%A4%9C-%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%AF-%E0%A4%A8-%E0%A4%B0-%E0%A4%A7-%E0%A4%B0-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9
संभवत: मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गई हैं.कृप्या इसे प्रकाशित करें|
बहुत बहुत धन्यवाद डा0 अनवर जमाल साहब
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