यदि देखा जाए तो आज इस धरती पर जितने भी धर्म पाए जाते हैं उनके हाँ उपवास का प्रचलन अवश्य पाया जाता है परन्तु इस्लामी रोज़ा तथा अन्य धर्मों के रोज़ा में बहुत अन्तर है । उदाहरण स्वरूपः
(1) इस्लामी रोज़े में हर प्रकार के खान-पान से रोक दिया जाता है जब कि अन्य धर्मों के कुछ उपवास में साधारण खाने से रोक दिया जाता है प्रत्येक खोनों से नहीं, अर्थात् अन्न छोड़ कर फल सब्ज़ी आदि खा सकते हैं।
2. इस्लामी रोज़ा बालिग़ तथा बुद्धिविवेक रखने वाले हर एक मुस्लिम पुरुष एवं स्त्री पर अनिवार्य है जब कि दूसरे धर्मों में रोज़ा गुरुओं तथा पंडितों पर अनिवार्य होता है, सामान्य लोगों पर नहीं।
(3) इस्लामी रोज़ा में अनुमानतः 14 घंटा भूखा रहना पड़ता है, यह अवधि न इतनी कम होती है कि रोज़े का अनुभव ही न हो सके, न इतनी लम्बी कि एक व्यक्ति अपने कर्त्त्वयों को छोड़ कर जीवन को जटिलताओं में डाल दे। जब कि अन्य धर्मों में कुछ रोज़ों के अन्दर जल एवं दूध का प्रयोग वैध होने के कारण उपवास का अनुभव भी नहीं होता। और कुछ उपवासों का समय इतना लम्बा होता है कि सांसारिक कर्तव्यों को त्याग कर स्वयं को कठोर जटिलताओं के हवाले करना पड़ता है।
सन् 1964 में Drenik और उसके सहायकों ने निरंतर 31 और चालीस दिन से अधिक रोज़ा रखने वालों के अन्दर विभिन्न भयंकर रोगों का पता लगाया।
4. इस्लामी रोज़े का सब से मूल गुण यह है कि यह मात्र एक अल्लाह के लिए ही उपवास रखने का आदेश देता है, यदि किसी ने ज्ञान रखते हुए अल्लाह के अतिरिक्त किसी दिवी देवता कके नाम रोज़ा रखा वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।
5 टिप्पणियां:
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
उस एक की इबादत
कोई कैसे भी करे
हम कौन होते है
कि कौन उसको कैसे करे
कोई भी इबादत
इबादत ही होती है
कोई जल्दी कोई देर
तक उस तक
पहुँचती है !!
सब पन्थो के हैं यहाँ, अपने रीति-रिवाज।
धर्म आचरण से बने, उन्नतिशील समाज।।
शुरू में जब सबका धर्म एक था , तब सबको याद था कि उपासना भी एक ईश्वर की करनी है और उपवास भी एक ही ईश्वर के अनुग्रह के लिए रखना है. सबका मालिक एक ही है.
आपका लेख अच्छा है. इसे फेसबुक पर शेयर किया जाता है.
शुक्रिया.
बहुत अच्छा आलेख भावनाएं सब की एक जैसी बस स्वरुप बदल गए हैं
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