शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें


यदि लोग विशाल ह्रदय से इस्लाम का अध्ययन करें तो समझ में आ जाए कि वह जिस धर्म का विरोद्ध कर रहे थे वह उनकी धरोहर थी।

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कुछ सज्जन कहते हैं कि धर्म की बात छोड़ो इनसानियत की बात करो। क्या इनसानियत बिना धर्म के शान्तिपूर्ण जीवन बिता सकती है। मैं कहता हूं नहीं। लेकिन बंधुओ! मानव को उस धर्म की खोज करने की आवश्यकता है जो मानवीय ज़रूरत है।

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शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने की सामग्रियाँ हमें प्राप्त हैं परन्तु आत्मा की आवश्यकताओं को पूरा करने की सामग्रियाँ हमारे पास नहीं हैं, इसके लिए हमें ईश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ती है। परन्तु यह काम मानव ने किया जिसके कारण विभिन्न धर्म उत्पन्न हो गए। आज उस धरोहर की खोज करने की आवश्यकता है जो ईश्वर( अल्लाह) की ओर से आई है सम्पूर्ण संसार के लिए...

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 इस्लाम धर्म इतना ही पुराना है जितना कि मानव। यही वह धर्म है जिसकी शिक्षा प्रथम मनुष्य को दी गई थी। और मुहम्मद सल्ल0 इस्लाम के संस्थापक नहीं अपितु इस्लाम के अन्तिम संदेष्टा हैं, अब उनके बाद कोई संदेष्टा और क़ुरआन के बाद कोई ग्रन्थ आने वाला नहीं कि उनका संदेश सुरक्षित और सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है।

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क्या आप जानते हैं कि पूरे संसार विशेष रूप में अमेरिका और युरोप में सब से अधिक फैलने वाला धर्म इस्लाम है ? क्यों ? इस लिए कि यह प्राकृतिक धर्म है। मानव बुद्धि को अपिल करने वाला धर्म। मात्र एक ईश्वर( अल्लाह ) की पूजा और मानव समानता पर इस्लाम बल देता है। जब हमारा पैदा करने वाला एक और हम एक ही माता पिता से पैदा भी हुए तो हमारा धर्म अलग अलग कैसे हो जाएगा।

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ईश्वर को पहचान लेने से आदमी हर प्रकार की गुलामी से मुक्त हो जाता है। आज अधिकांश लोगों का रिश्ता ऊपर वाले से कट चुका है, इस लिए वह हज़ारों दरवाज़े पर सर टेक रहे हैं। इस्लाम ने कहा कि तुम्हारा माथा मात्र एक अल्लाह के सामने झुकना चाहिए, इसे किसी अन्य के सामने झुकाना इस शरीर के सृष्टिकर्ता का अपमान है।
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इस्लाम शान्ति का धर्म था, है और महा-प्रलय के दिन तक शान्ति का धर्म रहेगा कि यह मानव जाति के लिए आया है। यह विश्वव्यापी धर्म है, अन्य धर्मों के समान किसी जाति की ओर नहीं अपितु (1) सबका ईश्वर एक तो पूज्य भी एक ही होना चाहिए। (2) और सारे मानवजाति एक ही माता पिता की संतान हैं...तो जातिवाद क्यों कर।

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लोग इस्लाम का विरोद्ध क्यों करते हैं हालाँकि यह उन्हीं का धर्म है। मेरे ख्याल में ऐसा वह अज्ञानताक के कारण करते हैं।क्यों कि जब वह सत्य को समझ लेते हैं तो अपने किए पर पछताते हैं। यह प्रमाण है इस बात का कि... वह अपने ईश्वर का नाम तो लेते हैं परन्तु उसको पहचानते नहीं।

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