गुरुवार, 1 नवंबर 2012

कहानी एक क्रान्तिकारी अनाथ की


एक अनाथ बच्चा जो अंधकार युग में पैदा हुआ, पैदा होने से पहले पिता का देहांत हो गया, 6 वर्ष के हुए तो माता भी चल बसीं,अनाथ थे पर समाज में दीप बन कर जलते रहे, आचरण ऐसा था कि लोगों ने उनको सादिक़ " सत्यवान" और अमीन " अमानतदार" की अपाधि से रखी थी।
चालीस वर्ष के हुए तो समाज सुधार की जिम्मेदारी सर पर डाल दी गई। जब सत्य की ओर आमंत्रन शुरू किया तो दोस्त दुश्मन बन गए, सच्चा और अमानतदार कहने वाले पागल और दीवाना कहने लगे, गालियाँ दीं, पत्थर मारा, रास्ते में कांटे बिछाए, सत्य को अपनाने वालों को कष्टदायक यातनाएं दीं,  3 वर्ष तक सामाजिक बहिष्कार किया जिसमें जान बचाने के लिए वृक्षों के पत्ते तक चबाने की नौबत आ गई, सांसारिक भोगविलास और धन सम्पत्ति की भी लालच दी, पर उन सब को ठुकरा दिया और सत्य की ओर बुलाते रहे।
 जब अपनी धरती बांझ सिद्ध हुई तो निकट शहर के लोगों को सत्य की ओर बुलाया, परन्तु शहर वालों ने उन पर पत्थर बरसाए, पूरा शरीर खून से तलपत हो गया और बेहोश हो कर गिर पड़े। फिर भी उनकी भलाई की प्रार्थना करते रहे, एक दिन और दो दिन की बात न थी निरंतर 13 वर्ष तक देश वालों ने उनको टार्चर किया, यहाँ तक कि उनको और उनके साथियों को अपने ही देश से निकाला, उनके घर बार और सम्पत्ति पर क़ब्ज़ा कर लिया। जन्मभूमि से निकालने के बाद भी उनकी शत्रुता में कमी न आई, दस वर्ष में 27 बार युद्ध किया, उनके पूरे जीवन में उन पर 17 बार जानलेवा आक्रमण किया। पर सत्य को अपनाने वालों की संख्या धीरे धीरे बढ़ती ही रही।
अंततः जिस जन्मभूमि से उनको निकाल दिया गया था 8 वर्ष के बाद उस पर विजय पा लिया। ज़रा सोचिए वह  इनसान जिन को निरंतर 21 वर्ष तक चैन से रहने नहीं दिया जाता है आज अपने शत्रुओं पर क़ाबू पा ले रहा है... दुनिया का क़ानून यही कहेगा कि 21 वर्ष के शत्रुओं को कष्टदाइक सज़ा मिलनी चाहिए थी। पर उस सज्जन ने उन सब की सार्वजनिक क्षमा की घोषणा कर दी। जिसका परिणाम क्या हुआ...? 
लोग समझ गए कि यह स्वार्थी न था.. हर ओर से लोग इस सत्य को अपनाने लगे...दो वर्ष के बाद जब उनका देहांत हुआ तो उस से पहले उनके अनुयाई एक लाख चवालिस हज़ार की संख्या में उनके साथ एकत्र हुए थे। क्या आप जानते हैं इस महा पुरुष को....? 

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