इस्लाम हमें उस ईश्वर और अल्लाह से मिलाता है
जो अकेला है, उस का कोई साझीदार नहीं, वह अद्वितीय है, अनादी है, अनन्त है और
अविनाशी है, उसी ने इस पूरी सृष्टि की रचना की, वह किसी काम के
लिए किसी का मुहताज नहीं है, प्रकृती और जीव भी अपने आप नहीं हैं, उनको भी अल्लाह
ही ने उत्पन्न किया है। उसी की आज्ञानुसार सब कुछ होता है । वह न खाता है, न पिता है, और न सोता है।
वही रोगी को अच्छा करता है, वही तकलीफों को दूर करता है । वह किसी का
मुह़ताज नहीं और न उसे किसी चीज़ की ज़रुरत । वही अकेला इबादत और प्रार्थाना का
अधिकारी है, बाक़ी सब उसके पुजारी और उपासक हैं, चाहे वह कैसा ही
गुणवान हो ।वह पिता पुत्र पति पत्नी जैसे संम्बन्धों से मुक्त है, उसी प्रकार वह
किसी भी प्राणी का रुप धारण नहीं करता, न वह किसी कार्य के लिए शरीर धारण करने पर बाध्य
है । उसने केवल अपनी इच्छा शक्ति से इतने बढे सृष्टि की रचना कर दी तो किसी कार्य
के लिए उसको शरीर धारण करने की क्या आवश्यकता, यह उसकी
पवित्रता के विरुद्ध है । इस्लाम हमारे माथे का सम्मान करता है कि उसे केवल
अल्लाह के सामने ही झुकना चाहिए जिसने हमें, हमारे पूर्वजों को और संसार के
प्रत्येक जीव को पैदा किया, हम पर हर प्रकार के उपकार किए तो स्वाभाविक रूप में पूजा
भी तो उसी एक अल्लाह की होनी चाहिए। क़ुरआन कहता हैः
"ऐ लोगो! अपने उस पालनहार की इबादत करो जिसने तुम को और तुम से पहले के लोगों को पैदा किया ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ। जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिछावन और आकाश को छत बनाया, और आकाश से वर्षा की और उस से फल पैदा कर के तुम्हें जीविका प्रदान की। अतः यह जानते हुए किसी को अल्लाह का भागीदार न बनाओ।" (सूरः2 आयत 21-22)
"ऐ लोगो! अपने उस पालनहार की इबादत करो जिसने तुम को और तुम से पहले के लोगों को पैदा किया ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ। जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिछावन और आकाश को छत बनाया, और आकाश से वर्षा की और उस से फल पैदा कर के तुम्हें जीविका प्रदान की। अतः यह जानते हुए किसी को अल्लाह का भागीदार न बनाओ।" (सूरः2 आयत 21-22)
1 टिप्पणी:
श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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