मैंने कुरआन तथा वेदों का अध्ययन किया तो पाया कि दोनों की शिक्षायें एक ही हैं और वह यह कि केवल एक ईश्वर की पूजा की जाए जिस ईश्वर के सम्बन्ध में आप ने लिखा है। यही धर्म इस्लाम कहें या सनातन धर्म । लेकिन शर्त यह है कि उस धर्म में केवल एक ईश्वर की पूजा होती हो, न कि विभिन्न भगवानों की क्योंकि मैंने यही शिक्षा क़ुरआन , बाइबल तथा वेदों में पाया है---- पर आज लोग ऐसा कर नहीं रहे हैं । क़ुरआन के जैसे ही वेदों ने मूर्ति पूजा का खंडन किया है, एक दो जगह नहीं वल्कि सैकरों जगह । बल्कि जिस प्रकार इस्लामी कलमा यह है कि ( अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं ) उसी प्रकार हिन्दू धर्म के वेदान्त का ब्रह्मसुत्रा यह है ( एकम ब्रह्मम द्वितीय नास्ते:नहे ना नास्ते किंचन अर्थात ईश्वर एक है दूसरा नहीं है , नहीं है , नहीं है, कदापि नहीं है) यही नहीं बल्कि यजुर्वेद (32/3) में है न तस्य प्रतिमा अस्ति अर्थात जिस प्रभू का बड़ा प्रसिद्ध यश है उसकी कोई प्रतिमा नहीं ।
हमारे देश भारत में हर धर्म एवं पथ के मानने वालों का अनेकता में एकता का प्रदर्शन करना हर्ष का विषय है परन्तु खेद की बात यह है कि एक दूसरे के प्रति हमारा ज्ञान सुनी सुनाई बातों, दोषपूर्ण विचार तथा काल्पनिक वृत्तांतों पर आधारित है। आज पारस्परिक प्रेम हेतु धर्म को उसके वास्तविक स्वरूप में जानने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य के अन्तर्गत यह ब्लौग आपकी सेवा में प्रस्तुत है। हमें आशा है कि पाठकगण निष्पक्ष हो कर अपनी भ्रांतियों को दूर कर के सही निर्णय लेंगे।
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3 टिप्पणियां:
आप ने जो कुछ भी लिखा है एकदम सच है हम लोग अपने पूर्वाग्रह के कारन इन प्रश्नों के जवाब देने से हमेशा कतराते है और एक बात और मैं कहना चाहूँगा की आज फिर से जरुरत है सरे धर्मं ग्रन्थों, वेदों, उपनिषदों का फिरसे वैज्ञानिक द्रष्टिकोण रखते हुए अध्यन और अध्यापन करना चाहिए, हम हिन्दू या मुस्लमान. जैन, सिख और ईसाई क्यों बहस नहीं करते उन दक्यानुसी विचार धाराओ पर जो मानव समाज को गर्त मैं लेजा रही है मैं जिम्मेदार मानता हु उन महात्मा या मोल्वियो या पादरीयो को की वो धर्मं ग्रन्थों मं लिखी बैटन को क्यों नहीं समझाते हमारे समाज को वो ये ही क्यों बताते हैं की मंदिर और मस्जिद के लिए चंदे की जरुरत है या धर्मं के नाम पर जन देने या लेने से जन्नत नसीब होगी या मस्जिद तोड़ने और मंदिर बनाने के नाम पर जान देने पर स्वर्ग मिलेगा क्यों करते है वो ऐसा???????
Main jab bhi kkisi muslim ka blog dekhta hoon to hut phir kar ye hi pata hoon ki woh baat to sabhi dharmo ki samanta ki karta hai lekin har blog entry me ye sabit karne ki koshish se baaz nahin aata ki muslim dharm, muhammad, kuraan sabse upar hai. Inhi vichron ki wajah se hi aur dharmon ke log, khas kar hindu unke paas nahin aate. Tum apni badhai hi kare jaoge to kese chalega. kalki avtar ko paigamber se milane walon ko ye batana jaroori hai ki, aise hi kutsit vicharo se, jisme kuraan, muslim, muhhamad ko hindu ya isai bataya gaya hai, net aur kitaben bhari padi hai. Main dono ko hi galat manta hoon. Tum muhammad ko sirf muhammad hi rahne do use kuchch aur sabit kar ke us ki baizzati na karo. Aise tum hindu ko nicha nahin dikha rahe khud muhammd ko nicha dikha rahe ho.Mujhe to muhammd ko koi hindu avtaar sabit karke dikhane mein koi interest nahin hai.
Kuraan ek achi pustak hai. Isme samye ke anusar kuchch chain ho jate to aur achi ho jati. Ise allah ka likha hua bataya jata hai parantu shuru hoti hai "Bismillah ul rahmano rahim se" yani aarbh sath nam allah ke jo kshma karne wala aur dyalu hai. Allah apne hi naam se kaise shuru karta hai is bare mein koi gyani sajjan mujhe jagruk karwaye ya ye bataye ki meri soch mein kaya kami hai. Duniya mein aur bhi achi pustke hain jo mene padhi hain. bahut si mujhe kuraan se kafi darje zyada achchi lagi to tum mujhe batane wale kaun ki kuraan hi sabse achi hai ya koi hindu ye kyon sabit kare ki Gita se bhadkar kuchch nahin. Agar samaj ko unnat karna hai to is sub se upar uthna hoga
भाई Sanjeev साहिब!
जी हाँ मुस्लिम हर धर्म का सम्मान करता है, उनके गुरुओं को भी बुरा भला नहीं कहता लेकिन सत्य को बताने से भी नहीं चुकता क्यों कि यदि सत्य को न बताया जाए तो लोग अंधकार में पड़े रहेंगे। इस सम्बन्ध में ध्यान दें-
(1) इस्लाम ही सत्य है क्योंकि यही सारे संसार का धर्म है, हर युग में संदेष्टा इसी की ओर बोलाने हेतु आते थे, जिसे लोग अपनी अपनी भाषा में जानते थे, अरबी में आज उसी धर्म का नाम इस्लाम है। इस धर्म का मूल सार है एक ईश्वर की पूजा...और यह पूजा आज के युग में अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुआ नियमानुसार होगी।
(2) आपका कहना कि मुहम्मद को मुहम्मद ही रहने दो उनके समर्थन के लिए अन्य धार्मिक ग्रन्थों का हवाला न पेश करो... तो इस सम्बन्ध में जानने की बात यह है कि वह अन्तिम अवतार हैं... जिनके आने की भविष्यवाणी केवल हिन्दू ग्रन्थ ही नहीं अपितु प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी। क्योंकि ईश्वर ने एक लाख चौबीस हज़ार संदेष्टाओं को अलग अलग देशों में एक ही संदेश पहुंचाने के लिए मात्र इस लिए भेजा था कि उस समय मानव अलग अलग टोलियों में बटे हुए थे, यातायात के साधन भी नहीं थे, एक देश का दूसरे देश से सम्पर्क भी नहीं था...एक दूसरे की भाषा को सीखने का प्रचन भी नहीं था। अतः आवश्यकता थी कि ईश्वर मानव के मार्गदर्शन हेतु हर भाषा तथा हर देश में अलग अलग संदेष्टा भेजे...परन्तु सब का संदेश एक ही रहा। और सारे संदेष्टाओं ने अपने अपने अनुयाइयों को अन्तिम अवतार के आने की सूचना दी जो अब तक उनके ग्रन्थों में मौजूद है। जब सातवी शताब्दी ईसवी में भौतिक, सामाजिक और राजनीतिक उन्नति ने दुनिया को एक कर दिया तो सब से अन्त में ईश्वर ने मुहम्मद सल्ल0 पर अन्तिम संदेश उतारा। इसी लिए वह जगत गरु हैं, सारे धर्मों के गुरू। मेरे भाई! स्वयं निष्पक्ष हो कर इस्लाम का अध्ययन करने की ज़रूरत है पता चल जाएगा कि यह हमारी धरोहर है जिसका हम विरोद्ध करने बैठे हैं। हम आपके शुभचिंतक हैं,स्वार्थी नहीं, हमें इस से आखिर क्या लाभ होने वाला है, बस हमें सहानुभूति प्रिय है, सच्ची हमदरदी का हक़ अदा करना हमारा कर्तव्य है। मानना न मानना आपके हाथ में है।
(3) कुरआन ईश्वर की वाणी है यह मानव रचना नहीं, न हो सकता है,क्योंकि आज तक क़ुरआन स्वयं चैलेंज कर रहा है (यदि तुम क़ुरआन के सम्बन्ध में संदेह में पड़े हो तो उसके समान एक सूरः ही ले आओ यदि तुम सच्चे हो )(2:23) पर इतिहास साक्षी है कि आज तक कोई क़ुरआन के समान न एक टूकड़ा बना सका है और न बना सकता है। जबकि मुहम्मद सल्ल0 जिन पर क़ुरआन उतरा न लिखना जानते थे न पढ़ना। मुहम्मद सल्ल0 की बातें जिनको हदीस कहा जाता है उनमें और क़रआन में आसमान और ज़मीन का अंतर है। ज्ञात यह हुआ कि क़ुरआन कोई मानव रचना नहीं कि उसमें समयानुसार परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़े क्यों कि इंसान अपने युग के अनुसार सोचता है इसी लिए मानव रचित ग्रन्थों में इसकी आवश्यकता पड़ सकती है लेकिन क़ुरआन उस ईश्वर की वाणी है जो स्वयं संसार का सृष्टा है। और आज उसका एक एक शब्द भी सुरक्षित है।
आपका यह संदेह कि यदि क़ुरआन ईश्वर की वाणी होती तो बिस्मिमिल्लाह से शुरू न किया जाता... यह जान लें कि यहाँ ईश्वर ने अपने शब्दों में मानव को सिखाया है कि उसकी प्रशंसा कैसे की जाए ताकि मानव उसी प्रकार ईश्वर की प्रशंसा करें।
ईश्वर की आप पर दया हो।
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