अल्लाह ने रोज़ी का वितरण अपने हाथ में रखा है, कुछ लोगों को अधिक से अधिक दिया तो कुछ लोगों को कम से कम, हर युग में और हर समाज में मालदारा और गरीब दोनों का वजूद रहा है, सवाल यह है कि आखिर अल्लाह ने अमीरी और गरीबी की कल्पना क्यों रखी?
इसका उत्तर यह है कि ऐसा अल्लाह ने बहुत बड़ी तत्वदर्शिता के अंतर्गत किया। ताकि एक वर्ग दूसरे वर्ग के काम आ सके, प्रत्येक की आवश्यकताएं एक दूसरे से पूरी होती रहें। अल्लाह ने फरमायाः
इसका उत्तर यह है कि ऐसा अल्लाह ने बहुत बड़ी तत्वदर्शिता के अंतर्गत किया। ताकि एक वर्ग दूसरे वर्ग के काम आ सके, प्रत्येक की आवश्यकताएं एक दूसरे से पूरी होती रहें। अल्लाह ने फरमायाः
"और एक को दूसरे पर प्रधानता प्रदान किया ताकि तुम्हें आज़माए उन चीज़ों में जो तुम को दी है. (सूरः अनआन 165)मान लें कि यदि सभी लोग मालदार हो जाते तो लोगों का जीवन बिताना कठिन होता, एक का काम दूसरे से हासिल नहीं हो सकता था, और हर एक दूसरे पर आगे बढ़ने की कोशिश करता, इस प्रकार देश और समाज का विनाश होता. जबकि लोगों के स्तर में अंतर होने के कारण अल्लाह ने जिसे कम दिया है उसे कल महाप्रलय के दिन यदि वह ईमान वाला रहा तो वहां की नेमतों से मालामाल करने का वादा किया है।
उसी प्रकार निर्धनों को कुछ ऐसी हार्दिक शान्ति प्रदान की है जिस से मालदारों का दामन खाली है। इसके साथ साथ अल्लाह ने उनके प्रति लोगों के मन में दया-भाव, शुभचिंतन, सहानुभूति की भावना पैदा की, और मानव समाज का अंग सिद्ध किया ताकि धनवान उनका ख्याल करें, यही नहीं अपितु मालदारों को गरीबों पर खर्च करने का आदेश दिया, और उनके मालों में गरीबों का अधिकार ठहराया। अल्लाह तआला ने फरमायाः
यह है अल्लाह की वह हिकमत जिस से हमें समाज में निर्धनों के वजूद के प्रति संतुष्टी प्राप्त होती है परन्तु यह कहना कि वह हीन अथवा तुच्छ हैं या उनके पापों का परिणाम है, या उनको किसी विशेष जाकि की सेवा हेतु पैदा किया गया है, बुद्धिसंगत बात नहीं लगती।
आज भारतीय समाज में यही विचार फैलने के कारण कुछ वर्ग पशुओं के समान जीवन बिता रहे हैं। उनको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है और स्वयं उन्हों ने भी इस प्रथा को स्वीकार कर लिया है जो मावन जाति पर बहुत बड़ा अत्याचार है।
इस्लाम ऐसे वर्गों की हर प्रकार से सहायता करने का आदेश देते हुए मालदारों के मालों में उनका अधिकार रखता है और उनको निर्धन होने के कारण किसी भी मानवीय अधिकार से वंचित नहीं रखता। यह है मानव स्वभाव से मेल खाने वाला इस्लाम का प्राकृतिक नियम...
अल्लाह के माल में से तुम उन्हें (निर्धनों को) दो जो उसने तुम्हें दिया है। (कुरआनः सूरः नूरः 33)पता यह चला कि इंसान के पास जो कुछ है उसका अपना नहीं है बल्कि अल्लाह का दिया हुआ है, इस लिए यदि मनुष्य कुछ पैसे अल्लाह के रास्ते में खर्च करता है तो उसे इस पर गर्व का कोई अधिकार नहीं है।
यह है अल्लाह की वह हिकमत जिस से हमें समाज में निर्धनों के वजूद के प्रति संतुष्टी प्राप्त होती है परन्तु यह कहना कि वह हीन अथवा तुच्छ हैं या उनके पापों का परिणाम है, या उनको किसी विशेष जाकि की सेवा हेतु पैदा किया गया है, बुद्धिसंगत बात नहीं लगती।
आज भारतीय समाज में यही विचार फैलने के कारण कुछ वर्ग पशुओं के समान जीवन बिता रहे हैं। उनको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है और स्वयं उन्हों ने भी इस प्रथा को स्वीकार कर लिया है जो मावन जाति पर बहुत बड़ा अत्याचार है।
इस्लाम ऐसे वर्गों की हर प्रकार से सहायता करने का आदेश देते हुए मालदारों के मालों में उनका अधिकार रखता है और उनको निर्धन होने के कारण किसी भी मानवीय अधिकार से वंचित नहीं रखता। यह है मानव स्वभाव से मेल खाने वाला इस्लाम का प्राकृतिक नियम...
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